Friday, April 26, 2024
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Chhatrapati Shivaji Maharaj'Navy: ऐसी थी छत्रपति शिवाजी की नौसेना, बेड़े में इतने थे जंगी जहाज

Chhatrapati Shivaji Maharaj'Navy: शुक्रवार को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नौसेना को INS VIKRANT सौंप दिया। इसी के साथ भारतीय नौसेना को एक आधुनिक एयरक्रॉफ्ट मिल भी गई। इसकी सबसे खास बात है कि ये मेड इन इंडिया है यानी पूरी स्वदेशी एयरक्रॉफ्ट करियर है।

Ravi Prashant Edited By: Ravi Prashant @iamraviprashant
Updated on: September 03, 2022 14:36 IST
Chhatrapati Shivaji Maharaj'Navy- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Chhatrapati Shivaji Maharaj'Navy

Highlights

  • नौसेना का इतिहास तकरीबन 8 हजार साल पुराना है
  • ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में इंडियन मरीन की शुरुआत 1612 में की
  • पुर्तगाली, अंग्रेजों और डच के प्रभाव को खत्म करना चाहते थे

Chhatrapati Shivaji Maharaj'Navy: शुक्रवार को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नौसेना को INS VIKRANT सौंप दिया। इसी के साथ भारतीय नौसेना को एक आधुनिक एयरक्रॉफ्ट मिल भी गई। इसकी सबसे खास बात है कि ये मेड इन इंडिया है यानी पूरी स्वदेशी एयरक्रॉफ्ट करियर है। प्रधानमंत्री ने कार्यक्रम के दौरान शिवाजी महाराज का भी जिक्र किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि देश ने गुलामी के एक बोझ को सीने से उतार दिया है। पीएम मोदी ने कहा कि वह आईएनएस विक्रांत को मराठा योद्धा छत्रपति शिवाजी को समर्पित करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि 2 सितंबर 2022 की ऐतिहासिक तारीख को इतिहास बदलने वाला एक और काम हुआ है। हम जानेंगे कि आखिर प्रधानमंत्री ने छत्रपति शिवाजी महाराज का क्यों जिक्र का बार-बार किया। क्या है नौसेना से जुड़ी छत्रपति शिवाजी की कहानी।

वेदों में भी नौसेना का जिक्र

भारतीय इतिहासकारों के मुताबकि, हमारी नौसेना का इतिहास तकरीबन 8 हजार साल पुराना है। ऐसा कहा जाता है कि इसका जिक्र वेदों में भी है। आपकों बता दें कि ऋग्वेद में भी नौसेना के बारे में लिखा गया है। भगवान वरुण को समुद्र और नदियों का देवता माना जाता है। आपने रामायण में देखा होगा कि श्री राम ने भी लंका को पार करने के लिए वरुण देवता की आराधना किया था। ऐसा माना जाता है कि भगवान वरुण की सवारी एक जहाज रुपी यान था। 

शिवाजी ने समझ ली था अंग्रेजों की चाल 
ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में इंडियन मरीन की शुरुआत 1612 में की। जिसे बाद में बदलकर बंबई मरीन कर दिया गया था। 17वीं सदी में नौसेना में काफी तेजी से बदलाव हुए। उस समय भारत मुगलों और अंग्रजों का गुलाम था। कई राजा इन दोनों के खिलाफ लंबी लड़ रहे थे, इनमें से एक मराठा शासक शिवाजी थे। शिवाजी के किलों पर रिसर्च करने वाले प्रफुल्ल माटेगांवकर कहते हैं कि शिवाजी ने समझ लिया था कि जिसका राज समुद्र पर है वो कहीं भी राज कर सकता है। क्योंकि भारत में ब्रिटिश और पुर्तगाली समुद्र के मार्ग से भारत में आकर अपनी जगह बनाई थी। और उस समय समुद्र ही एक ऐसा मार्ग था जिसके जरिए व्यापार हो रहा था।

इन्हीं व्यापारों को चलाने के लिए पुर्तगाली और अंग्रेजों ने नौसेना का निर्माण किया था। शिवाजी ने यहीं सब देखकर अपनी समुद्री सेना तैयार किया। वो पुर्तगाली, अंग्रेजों और डच के प्रभाव को खत्म करना चाहते थे। इसके लिए शिवाजी ने सिद्धी राज्य के प्रभाव को रोकने के लिए उनके जंजीरा किले पर तीन बार आक्रमण किया था लेकिन शिवाजी को सफलता नहीं मिल पाई। माटेगांवकर आगे कहते हैं कि शिवाजी जी की सोच काफी आगे चलती थी। उन्होंने सागरी आर्मर की नींव रखी। जिसे संभाजी महाराज ने आगे बढ़ाया था।  

अंग्रेजों को जवाब देने के लिए बनाई थी पहली नेवी 
छत्रपति शिवाजी ने समुद्र में अपनी ताकत काफी मजबुत कर ली। उन्होंने दुश्मनों को जवाब देने के लिए नौसेना का बड़ा बेड़ा बनाया। सिधोजी गुजर और बाद में कन्होजी आंग्रे को एडमिनरल पद संभालाने का मौका मिला। आपको बता दें कि कान्होंजी ने नौसेना के जरिए डच, पुर्तगाली और अंग्रेजों का मुकाबला करते हुए कोंकण तट पर कब्जा कर लिया था। उस समय समुद्र सैनिकों में महज 5 हजार जवान थे। वहीं 60 जंगी जहाज भी थे। विदेशी ताकतों से समुद्री तट को बचाने के लिए ये पहली नौसेना बनाई गई थी। ऐसा कहा जाता है कि आंग्रे की मौत 1729 में हो गया था जिसके बाद समुद्री शक्ति में मराठाओं के ताकतों में कमी आंकी गई।  

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