Friday, December 13, 2024
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क्यों 'गोल्ड माइन' कही जाती हैं ये गायें जिन्हें PM मोदी ने खिलाया चारा? जानें क्या है खासियत

PM मोदी ने मकर संक्रांति पर छोटी-छोटी गायों को चारा खिलाया, जो तस्वीरें सभी ने देखीं होंगी। लेकिन जिन गायों को PM ने चारा खिलाया, वो आखिर कहां पाई जाती है, इसका कद इतना बौना क्यों होता है और लोग इस गाय को गोल्ड माइन क्यों कहते हैं। ये जानने के लिए पढ़ें पूरी रिपोर्ट-

Reported By : T Raghavan Edited By : Amar Deep Published : Jan 16, 2024 14:27 IST, Updated : Jan 16, 2024 14:27 IST
पीएम मोदी ने पुंगनूर गायों को खिलाया चारा।- India TV Hindi
Image Source : PTI पीएम मोदी ने पुंगनूर गायों को खिलाया चारा।

चित्तूर: मकर संक्रांति के अवसर पर पीएम मोदी अपने आवास पर छोटे कद की गायों को चारा खिलाते नजर आए। ये तस्वीरें देखकर बहुत से लोगों को लगा कि ये गाय नहीं कोई बछड़ा है। लेकिन पीएम मोदी ने जिन गायों को चारा खिलाया उसे पुंगनूर गाय कहा जाता है। पुंगनूर नस्ल की ये गायें आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में पाई जाती हैं। एक समय में इन गायों की संख्या करीब 13 हजार थी, लेकिन बीच में ये घटकर 200 तक हो गई। वहीं अब पीएम मोदी ने जब इनकी तस्वीरों को पोस्ट किया तो लोग इस गाय के बारे में ज्यादा उत्सकता दिखा रहे हैं।

क्यों इनका नाम पड़ा पुंगनूर?

दरअसल, आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में पाई जाने वाली ये देसी गायें अपने छोटे कद के लिए मशहूर हैं। चित्तूर के ही पुंगनूर गांव के नाम पर इनका नाम पुंगनूर रखा गया है। आजादी से पहले इस गांव के जमींदार पुंगनूर नस्ल का पालन करते थे और इससे मिलने वाले पौष्टिक दूध का सेवन करते थे। बता दें कि इस गाय का अधिकतम कद 3 फीट ही होता है, इसीलिए इसकी गिनती दुनिया की सबसे छोटे कद की गायों में होती है। इन गायों के दूध में फैट और दूसरे मिनरल्स अन्य गायों से ज्यादा होता है। आम गायों के दूध में जहां 3.5 प्रतिशत फैट होता है, वहीं पुंगनूर के दूध में 8 प्रतिशत फैट पाया जाता है।

क्यों कही जाती हैं गोल्ड माइन?

पुंगनूर गाय के मूत्र और गोबर में भी मेडिसिनल वैल्यू होती है, इसीलिए इनका इस्तेमाल प्राकृतिक औषधियों और जैविक खाद के रूप में किया जाता है। यही वजह है कि इस गाय को स्थानीय लोग गोल्ड माइन भी कहते हैं। पुंगनूर गाय बहुत कम चारा खाती हैं। एक दिन में सिर्फ 5 किलो चारे से इनका गुजारा हो जाता है, इसीलिए इस नस्ल को सूखा प्रतिरोधी नस्ल की गाय भी कहा जाता है। इनका वजन 100-200 किलो के बीच होता है और ये एक दिन में अधिकतम डेढ़ लीटर दूध दे सकती हैं। 

समाप्ति की कगार पर पहुंची नस्ल

दूध की मात्रा कम होने की वजह से किसानों ने पुंगनूर गायों को पालना छोड़ दिया था, नतीजतन इनकी संख्या अचानक गिरने लगी। हालांकि साल 2014 में पीएम मोदी ने देसी नस्ल की गायों के संरक्षण के लिए मिशन गोकुल चलाया। इसी प्रोग्राम से मिलने वाले फंड और राजकीय कोष से फंड जोड़कर आंध्रप्रदेश की सरकार ने मिशन पुंगनूर चलाया। श्री वेंकटेश्वरा वेटेनरी यूनिवर्सिटी ने पुंगनूर के पास पलमनेर में कैटल रिसर्च स्टेशन बनाया है, जहां इस खास नस्ल की गाय पर लगातार शोध हो रहे हैं। साथ ही इनके संरक्षण और इनकी आबादी को बढ़ाने के लिए इस संस्थान में खास प्रयास किए जा रहे हैं।

पुंगनूर गायों की धार्मिक विशेषताएं

इन सबके अलावा पुंगनूर गायों का धार्मिक और आध्यामिक महत्व भी है। लोगों की मान्यता है कि इन गायों में महालक्ष्मी का वास होता है, इसीलिए दक्षिण भारत में लगभग सभी राज्यों में संपन्न लोग इन गायों को अपने घरों में रखते हैं रोज उनकी पूजा करते हैं। साथ ही इनका दूध बहुत ही पवित्र और पौष्टिक माना जाता है यही वजह है कि विश्व प्रसिद्ध तिरुपति बालाजी मंदिर सहित दक्षिण के कई प्रसिद्ध मंदिरों में भोग और क्षीराभिषेक के लिए पुंगनूर गाय के दूध का ही इस्तेमाल होता है। वहीं PM मोदी ने जब पुंगनूर गाय का वीडियो पोस्ट किया तो ये नस्ल एक बार फिर लाइम लाइट में आ गई है।

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