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मैदानी इलाकों में बरस रही है आग, लू से तप रहीं पहाड़ों की वादियां, आखिर गर्मी से क्यों जल रहा है भारत?

भारत के कई राज्य भीषण गर्मी की चपेट में हैं। दिन हो या रात, गर्मी से राहत नहीं मिल पा रही है। मैदानी इलाकों में तो गर्मी है ही, इस बार पहाड़ों में भी लू ने परेशान कर दिया है। जानिए क्यों पड़ रही है इतनी गर्मी?

Edited By: Kajal Kumari @lallkajal
Published on: June 18, 2024 14:43 IST
severe heat wave in india- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO भारत में क्यों पड़ रही है इतनी गर्मी

भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने पिछले सप्ताह राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और आसपास के राज्यों में भीषण गर्मी के बीच दिल्ली, यूपी, हरियाणा और पंजाब के लिए रेड अलर्ट जारी किया है। उत्तराखंड, बिहार और झारखंड सहित पूरे उत्तर भारत में तापमान 46 डिग्री से ऊपर चल रहा है। बिहार में पिछले 24 घंटे में भीषण गर्मी और उमस के कारण 22 लोगों की मौत हो गई है। दिल्ली का तापमान वैसे तो 46 डिग्री है लेकिन यह 50 डिग्री सेल्सियस जैसा महसूस हो रहा है।

अगले कुछ दिनों में दिल्ली का अधिकतम तापमान 45 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहने की संभावना है, जो जून के सामान्य तापमान से 6 डिग्री अधिक है। आईएमडी के अनुसार, दिल्ली में हीट इंडेक्स या ऐसा महसूस होने वाला तापमान सोमवार को बढ़कर 50 डिग्री सेल्सियस हो गया था।

पहाड़ों में भी चल रही है लू

उत्तराखंड में, देहरादून में अधिकतम तापमान 43.1 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जबकि मसूरी में 43 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया। यहां तक ​​कि पिछले तीन महीनों में बहुत कम या बिल्कुल भी बारिश न होने के बाद पौडी और नैनीताल जैसे पहाड़ी शहरों में भी लू चल रही है। पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में तापमान 44 डिग्री दर्ज किया गया, जो औसत से 6.7 डिग्री अधिक है। जम्मू-कश्मीर में कटरा में अधिकतम तापमान 40.8 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जबकि जम्मू में पारा 44.3 डिग्री तक पहुंच गया है।

यूपी के प्रयागराज में अधिकतम तापमान 47.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है। बीते सालों तक पहाड़ों में इन दिनों प्री मानसून की बारिश हो जाती थी लेकिन इस बार मौसम ने रूख बदल रखा है और गर्मी कहर बनकर टूट रही है। कहा जा रहा है कि इस बार गर्मी ने बीते 122 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है, जिसका असर पहाड़ी इलाकों में भी पड़ रहा है।

अगले सप्ताह मिल सकती है राहत

हालांकि मौसम विभाग ने कहा है कि अगले सप्ताह में गर्मी से थोड़ी राहत मिलने की उम्मीद है। मौसम विभाग ने बताया कि इस सप्ताह भीषण गर्मी से राहत की उम्मीद थी, लेकिन अरब सागर के माध्यम से हवाओं में बदलाव के कारण मैदानी इलाकों में ठंडक में देरी हुई है। विभाग ने कहा, "दूसरा कारण यह है कि मानसून 1 जून से पश्चिम बंगाल में रुका हुआ है। जब तक मानसून इन क्षेत्रों को कवर नहीं करेगा, उत्तर भारत लगातार गर्मी की चपेट में रहेगा।"

मौसम कार्यालय के अनुसार, बुधवार के बाद एक ताजा पश्चिमी विक्षोभ उत्तर पश्चिम भारत की ओर बढ़ेगा, जो राष्ट्रीय राजधानी को भी प्रभावित करेगा और भीषण गर्मी से राहत दिलाएगा। राष्ट्रीय राजधानी में छिटपुट बारिश और धूल भरी आंधी के कारण बुधवार को थोड़ी राहत मिलेगी, लेकिन फिलहाल कोई दीर्घकालिक राहत नजर नहीं आ रही है।

अल नीनो का दिख रहा है असर

गर्मी बढ़ने का अहम कारण ग्लोबल क्लाइमेट चेंज है और इससे सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में तापमान बढ़ने की खबरें आ रही हैं। लंदन में भी हीटवेव के अलर्ट जारी किए गए हैं। भारत की बात करें तो नॉर्थ इंडिया में हीटवेव की स्थिति लगातार बनी हुई है। हर जगह वेदर पैटर्न में बदलाव हुआ है, अल नीनो भी इसका एक कारण है। अलनीनो की स्थिति में हवाएं उल्टी बहने लगती हैं और महासागर के पानी का तापमान भी बढ़ जाता है, जो दुनिया के मौसम को प्रभावित करता है। यही वजह है कि इससे तापमान में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

पहाड़ों में क्यों पड़ रही है इतनी गर्मी

पर्यावरण और मौसम के जानकार बता रहे हैं कि ये तो बस एक शुरुआत है, आने वाले सालों में तो और भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। पहाड़ों में बढ़ते तापमान के लिए ग्लोबल वार्मिंग तो बड़ी वजह है ही. साथ ही पेड़ों का अंधाधुंध कटना और कंस्ट्रक्शन का काम भी एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है। असल में बीते सालों में ऐसे पहाड़ी इलाकों में भी रोड कटी हैं. जहां आमतौर पर लोग कम थे। अब पहाड़ों में भी भीड़ बढ़ती जा रही है। पहाड़ अब कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो गए हैं। ये भ एक बड़ी वजह है कि सीमेंट के घर न तो गर्मी रोकने में कारगर साबित होते हैं, और ना ही पर्यावरण के फायदेमंद हैं।

पहाड़ों में जिस तेजी से पारा चढ़ रहा है, उससे ग्लेशियर की स्थिति में बहुत असर पड़ रहा है। मौसम के बदले मिजाज ने ईको सिस्टम को तो प्रभावित किया ही है, साथ ही ये जल संकट को भी बड़ी वजह बन रहा है। बारिश कम होने से जहां भू-गर्भीय जल स्तर नीचे गिर रहा है तो वहीं पारा चढ़ने से ग्लेशियर के गलने की रफ्तार भी बढ़ रही है।

 

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