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वो आवाज जो लोगों के दिलों में धड़कनों की तरह बसती थी, जानिए कौन थे अमीन सयानी

'भाईयों और बहनों' शब्द का प्रयोग आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करीब-करीब अपने सभी भाषणों में करते हैं। यह शब्द तब लोकप्रिय हुआ जब सन 1952 में रेडियो सिलोन से अमीन सयानी ने 'बिनाका गीतमाला' प्रस्तुत किया था।

Written By: Malaika Imam @MalaikaImam1
Published : Feb 21, 2024 11:53 IST, Updated : Feb 21, 2024 12:02 IST
आवाज की दुनिया के फनकार अमीन सयानी - India TV Hindi
आवाज की दुनिया के फनकार अमीन सयानी

आज लोग चेहरे से अपनी पहचान बनाते हैं, लेकिन कुछ शख्सियत ऐसी भी रही हैं जिनका वजूद उनकी आवाज रही है। आजादी के बाद रेडियो सुनने का दौर आया। सत्तर, अस्सी और नब्बे का दशक ऐसा ही रहा, जब लोगों में रेडियो सुनने का क्रेज गजब का था। तब रेडियो सिर्फ आवाज नहीं, एहसास था। यह ना जाने किन-किन लम्हों का साथी भी रहा। आजादी के बाद जिन लोगों ने रेडियो को आम लोगों तक पहुंचाया, इसकी लोकप्रियता बढ़ाई, उनमें सबसे अव्वल नाम अमीन सयानी का आता है। एक दौर था, जब अमीन सयानी रेडियो की आवाज थे। रेडियो की आवाज मतलब अमीन सयानी थे। आज 'रेडियो किंग' अमीन सयानी का निधन हो गया। हार्ट अटैक से 91 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई।

'भाईयों और बहनों' का ताल्लुक

जिस 'भाईयों और बहनों' शब्द का प्रयोग आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करीब-करीब अपने सभी भाषणों में करते हैं। यह शब्द तब लोकप्रिय हुआ जब सन 1952 में रेडियो सिलोन से अमीन सयानी ने 'बिनाका गीतमाला' प्रस्तुत किया था। रेडियो पर जैसे ही उनका सुपर हिट प्रोग्राम 'बिनाका गीतमाला' शुरू होता, तो वक्त जैसे थम जाता था। बेहद जोश-व- खरोश और मेलोडियस अंदाज में रात 8:00 बजे रेडियो पर जब ये आवाज गूंजती “जी हां भाइयों और बहनों, मैं हूं आपका दोस्त अमीन सयानी और आप सुन रहे हैं बिनाका गीतमाला", तो एक जादू चल जाता था। लोग दिल थाम कर बैठ जाते थे। रेडियो सिलोन से एक भारी और दिलकश आवाज आती। श्रोताओं के साथ मजाक करते, उन्हें छेड़ते, उन्हें दिलचस्प वाकये सुनाते, कलाकारों के इंटरव्यू लेते और इन सब पर हिंदी फिल्मी गानों का तड़का लगाते हुए।

लोग आवाज के दीवाने हो गए 

30 मिनट चलने वाला 'बिनाका गीतमाला' प्रोग्राम साल 1952 में हर किसी का पसंदीदा बन गया और करीब आधे दशक तक छाया रहा। पहले इसका नाम था 'बिनाका गीतमाला', फिर बना 'हिट परेड' और 'सिबाका गीतमाला' बना। लोग अमीन सयानी की आवाज के दीवाने बन गए थे और उन्होंने श्रोताओं के साथ एक अपनेपन का रिश्ता बना लिया था। ऑल इंडिया रेडियो से अपना मुकाम बनाने वाले अमीन सयानी ने अपने करियर की शुरुआत साल 1952 में की थी। उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो के विविध भारती में 40 सालों से अधिक काम किया। शो प्रेजेंट करने का उनका तरीका और कलाकारों के इंटरव्यू लेने का तरीका, नाटक और एकांकी, संगीत के कार्यक्रम, क्विज, फिल्मों के प्रमोशन और ट्रेलर पेश करने का तरीका काफी अलग था।

आवाज की दुनिया के फनकार अमीन सयानी

Image Source : FILE PHOTO
आवाज की दुनिया के फनकार अमीन सयानी

सिंगर बनना चाहते थे अमीन सयानी

अमीन सयानी ने मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज से अपनी तालीम मुकम्मल की थी। उन्होंने थिएटर भी किया। क्लासिकल म्यूजिक भी सीखा। वे बहुत अच्छा गाया करते थे। अमीन सयानी सिंगर बनना चाहते थे, लेकिन आगे चलकर उनकी आवाज फट गई और गाना मुश्किल हो गया। यही वजह है कि बाद में उन्होंने सिंगर बनने का इरादा छोड़ दिया। अमीन सयानी के बड़े भाई हामिद सयानी की सलाह पर अमीन सयानी ने ऑल इंडिया रेडियो में हिंदी ब्रॉडकास्टर के लिए आवेदन किया, लेकिन उनकी आवाज रेडियो के लिए रिजेक्ट कर दी गई थी। उन्हें यह कहकर रिजेक्ट कर दिया गया, "स्क्रिप्ट पढ़ने का आपका हुनर अच्छा है, लेकिन मिस्टर सयानी आपके तलफ्फुज में बहुत ज्यादा गुजराती और अंग्रेजी की मिलावट है, जो रेडियो के लिए अच्छी नहीं।"

उनकी आवाज रेडियो के लिए हुई रिजेक्ट

रेडियो के लिए रिजेक्ट किए जाने के बाद अमीन सयानी को काफी धक्का लगा। वे निराश हो गए। वो अपने बड़े भाई हामिद सयानी के पास पहुंचे, तो उन्होंने अमीन से रिकॉर्डिंग के दौरान रेडियो स्टेशन के हिंदी कार्यक्रमों को सुनने के लिए कहा। अमीन सयानी ने ब्रॉडकास्टिंग का फन सीखने और उसे फॉलो करने में अपना जी-जान लगा दिया और आगे चलकर वो रेडियो के एक बड़े नाम बन गए।

अमीन सयानी ने 54 हजार प्रोग्राम्स किए 

अमीन सयानी का जन्म 21 दिसंबर 1932 में एक ऐसे परिवार में हुआ था जिसने भारत की आजादी में बड़ी भूमिका निभाई थी। 14 साल तक वो अपनी मां कुलसुम सयानी को 'रहबर' नाम के एक पाक्षिक जर्नल के संपादन में मदद करते थे। उनके भाई हामिद सयानी एक मशहूर ब्रॉडकास्टर थे। उन्होंने ही अमीन सयानी को एक्टिंग, निर्देशन, एंकरिंग और ऑल इंडिया रेडियो से परिचय करवाया था। उनके भाई करीब दस सालों से ऑल इंडिया रेडियो, मुंबई से जुड़े हुए थे। उन्होंने अंग्रेजी में कई कार्यक्रम बनाए थे। 

अमीन सयानी ने भी कई कार्यक्रम बनाए जैसे- एस. कुमार का फ़िल्मी मुकदमा और फिल्मी मुलाकात जो पहले श्रीलंका ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन में और फिर विविध भारती पर बहुत लोकप्रिय हुआ। ऑल इंडिया रेडियो का पहला स्पॉन्सर्ड शो 'सैरेडॉन के साथी' उन्होंने 4 सालों तक प्रेजेंट किया। उनके द्वारा प्रेजेंट किए गए कुछ अन्य शो 'बोर्नविटा क्विज कांटेस्ट' और 'शालीमार सुपरलैक जोड़ी' थे। इनके अलावा उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय रेडियो शो जैसे मिनी इंसर्शन्स ऑफ फिल्मस्टार इंटरव्यूज, म्यूजिक फॉर द मिलियन, गीतमाला की यादें और हंगामे शामिल हैं। आवाज की दुनिया के फनकार अमीन सयानी ने करीब 54 हजार प्रोग्राम्स किए हैं। 

परिवार का महात्मा गांधी से सीधा ताल्लुक

अमीन सयानी का सीधा ताल्लुक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से भी था। अमीन सयानी के पिता के चचा रहमतुल्ला साहनी ने न सिर्फ महात्मा गांधी को वकील बनाने में मदद की, बल्कि वे उन्हें अपने साथ साउथ अफ्रीका भी ले गए थे। यही नहीं अमीन सयानी के नाना तजब अली पटेल, मौलाना आजाद के साथ-साथ गांधी के भी डॉक्टर थे। अमीन सयानी की मां कुलसुम साहनी भी महात्मा गांधी से काफी मुतास्सिर थीं। गांधी जी कुलसुम सयानी को अपनी बेटी की तरह मानते थे। कुलसुम सयानी ने खास तौर से औरतों की साक्षरता के लिए खूब काम किया। महात्मा गांधी उनके काम से बेहद प्रभावित हुए। गांधी जी के कहने पर ही कुलसुम सयानी ने देवनागरी, गुजराती और उर्दू जबान में एक मैगजीन शुरू की, जिसका नाम ‘रहबर’ था। अमीन सयानी उस वक़्त 10-11 साल के थे। वे भी मैगजीन के साथ पूरी तरह जुड़ गए। उस समय अमीन सयानी हिंदी ज्यादा नहीं जानते थे, क्योंकि उनकी शुरुआती तालीम गुजराती में हुई थी। 

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