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Laws loud sound of music system: म्यूजिक सिस्टम की तेज आवाज को लेकर क्या है कानून, जा सकते हैं जेल

ध्वनि प्रदूषण अधिनियम नियम, 2000 के मुताबिक कमर्शिलय और रेजिडेंशियल इलाकों के लिए आवाज की सीमा तय की गई है। इसके मुताबिक इंडस्ट्रियल इलाकों के लिए दिन में 75 डेसिबल और रात में 70 डेसिबल आवाज की सीमा होनी चाहिए। कमर्शिलय इलाकों के लिए आवाज की सीमा दिन में 65  डेसिबल और रात में 55  डेसिबल होनी चाहिए। वहीं रेजिडेंशियल इलाकों के लिए दिन में 50 और रात में 40 डेसिबल की सीमा तय की गई है।   

Written by: Shashi Rai @km_shashi
Published : May 11, 2022 14:00 IST
ध्वनि प्रदूषण अधिनियम नियम, 2000 - India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO ध्वनि प्रदूषण अधिनियम नियम, 2000 

Highlights

  • भारतीय कानून में तेज गाना बजाना जुर्म की श्रेणी में आता है
  • आरोपी को जुर्माना देने के साथ जेल भी जाना पड़ सकता है
  • IPC की धारा 291 में जुर्माने के साथ 6 महीने की जेल की सजा का प्रावधान

Laws loud sound of music system: म्यूजिक एक ऐसी थेरेपी है जिससे तनाव दूर होता है। बीमारियां भी जल्दी पास नहीं आतीं। इससे मेंटल स्ट्रेस से छुटकारा मिलता है, लेकिन अगर इसको तेज आवाज में सुना जाए तो परेशानियां कम होने के बजाय बढ़ने लगती हैं। किसी शादी या समारोह में अकसर देखा जाता है कि लोग तेज आवाज में गाने बजाकर मस्ती करते हैं। कुछ वक्त मस्ती तो ठीक है, लेकिन अगर यह मस्ती देर तक चलती रहे तो आसपास के लोगों को काफी तनाव हो सकता है। उनको परेशानी हो सकती है। इसीको ध्यान में रखते हुए म्यूजिक सिस्टम की तेज आवाज को लेकर कानून बनाया गया है। भारतीय कानून में तेज गाना बजाना जुर्म की श्रेणी में आता है। ऐसा करने वाले को जुर्माना देना पड़ सकता है और जेल भी जाना पड़ सकता है। 

क्या है कानून?

भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 268 में ऐसा करने को पब्लिक न्यूसेंस माना जाता है। इस क्राइम के लिए IPC की धारा 290 में जुर्माना का प्रावधान किया गया है। वहीं दूसरी बार इस क्राइम को करने पर आरोपी को जुर्माना देने के साथ जेल भी जाना पड़ सकता है। ऐसे में अपराध को दोबारा करने पर IPC की धारा 291 में जुर्माने के साथ 6 महीने की जेल की सजा का प्रावधान है। शिकायत मिलने पर मजिस्ट्रेट स्तर का अधिकारी मामले की जांच करता है और अगर उसे लगता है कि किसी के लाउडस्पीकर बजाने से पब्लिक न्यूसेंस पैता होता है तो उसे हटाने का आदेश दे सकता है। दण्ड प्रक्रिया संहिता यानी CRPC की धारा 133 मजिस्ट्रेट को ऐसा आदेश देना का शक्ति प्रदान करती है। 

रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर प्रयोग की मनाही

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में जीवने जीने के अधिकार के तहत ध्वनि प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने के अधिकार को भी शामिल किया गया है। अभी देशभर में चल  रहे लाउडस्पीकर विवाद के बीच इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की थी, साथ ही मस्जिद पर लाउडस्पीकर लगाने की मांग को लेकर दाखिल याचिका भी खारिज कर दी थी। कोर्ट ने कहा था कि लाउडस्पीकर लगाना मौलिक अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के मुताबिक रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर का प्रयोग से मनाही है।

ध्वनि प्रदूषण को मापने का पैमाना डेसिबल होता है

जैसा कि हम जानते हैं कि ध्वनि प्रदूषण को मापने का पैमाना डेसिबल होता है। आमतौर पर यह माना जाता है कि 80 डेसिबल तक की आवाज आदमी की बर्दाश्त कर सकता है, इससे ज्यादा की आवाज ध्वनि प्रदूषण के दायरे में आती है और इसका खराब असर पड़ता है। एक सामान्य व्यक्ति 0 डेसिबल तक की आवाज़ सुन सकता है। यह आवाज पेड़ के पत्तों की सरसराहट जितनी आवाज़ होती है। वहीं हम घर में सामान्य तौर पर जो बातचीत करते हैं उस समय हमारी आवाज 30 डेसिबल के आसपास होती है।  एक लाउडस्पीकर सामान्य तौर पर 80 से 90 डेसिबल की आवाज पैदा करता है।

ध्वनि प्रदूषण अधिनियम नियम, 2000

ध्वनि प्रदूषण अधिनियम नियम, 2000 के मुताबिक कमर्शिलय और रेजिडेंशियल इलाकों के लिए आवाज की सीमा तय की गई है। इसके मुताबिक इंडस्ट्रियल इलाकों के लिए दिन में 75 डेसिबल और रात में 70 डेसिबल आवाज की सीमा होनी चाहिए। कमर्शिलय इलाकों के लिए आवाज की सीमा दिन में 65  डेसिबल और रात में 55  डेसिबल होनी चाहिए। वहीं रेजिडेंशियल इलाकों के लिए दिन में 50 और रात में 40 डेसिबल की सीमा तय की गई है। 

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