Friday, April 26, 2024
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कांग्रेस नेताओं को पंजाब की उथल-पुथल के अन्य जगहों पर भी असर होने की आशंका

कांग्रेस नेता अब विभिन्न गुटों में बंटे राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पंजाब के घटनाक्रम के संभावित प्रभाव को लेकर “देखों और इंतजार करो” की नीति अपना रहे हैं। पंजाब के अलावा केवल यही दो राज्य हैं, जहां पार्टी अपने दम पर सत्ता में है।

Bhasha Written by: Bhasha
Updated on: September 20, 2021 15:07 IST
big problem for congress punjab like situation may arise in rajasthan chhattisgarh कांग्रेस नेताओं क- India TV Hindi
Image Source : PTI कांग्रेस नेताओं को पंजाब की उथल-पुथल के अन्य जगहों पर भी असर होने की आशंका

नई दिल्ली. पंजाब में तेजी से बदले घटनाक्रम का कांग्रेस पर व्यापक असर होने की आशंका है क्योंकि पार्टी के अंदरूनी सूत्रों को आशंका है कि अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री के रूप में जिस "अप्रिय" तरीके से बाहर किया गया वह अन्य राज्यों में असंतोष का आधार बन जाएगा। ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव और प्रियंका चतुर्वेदी सहित कई पार्टी नेताओं के बाहर निकलने के बाद से कांग्रेस में असंतोष के सुर मुखर होते जा रहे हैं।

कांग्रेस नेता अब विभिन्न गुटों में बंटे राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पंजाब के घटनाक्रम के संभावित प्रभाव को लेकर “देखों और इंतजार करो” की नीति अपना रहे हैं। पंजाब के अलावा केवल यही दो राज्य हैं, जहां पार्टी अपने दम पर सत्ता में है। पार्टी में बेचैनी को दर्शाते हुए, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने रविवार को उम्मीद जताई कि अमरिंदर सिंह “ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे जिससे कांग्रेस पार्टी को नुकसान हो” और जोर देकर कहा कि हर कांग्रेसी को देश के हित में सोचना चाहिए। 

कांग्रेस ने पिछले साल राजस्थान में सचिन पायलट द्वारा किये गए विद्रोह का डटकर मुकाबला किया और गहलोत के नेतृत्व वाली अपनी सरकार को बचाने में कामयाब रही, हालांकि राज्य इकाई में अब भी असंतोष व्याप्त है। एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “पंजाब के घटनाक्रम का अन्य जगहों पर असर होने की संभावना है। पार्टी के भीतर मतभेद बढ़ सकते हैं तथा इससे पार्टी और कमजोर होगी।”

एक अन्य नेता ने कहा कि पंजाब में लिए गए फैसले “आत्मघाती” हैं और इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।

पार्टी के एक दिग्गज नेता ने कहा, “नेताओं की आकांक्षाएं अक्सर पूरी किए जाने के लिहाज से बहुत अधिक होती हैं। यदि आप सभी आकांक्षाओं को समायोजित करने का प्रयास करते हैं, तो कांग्रेस के भीतर संघर्ष बढ़ेगा, जैसा कि पंजाब में विधायकों को मुख्यमंत्री के खिलाफ बोलने के लिए एक मंच देकर किया गया था।”

सूत्रों ने कहा कि अगस्त 2020 में पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी को पत्र लिखकर संगठनात्मक बदलाव की मांग करने वाले जी-23 नेताओं का समूह भी पंजाब में शुरू किए गए परिवर्तनों के परिणाम देखने के लिए इंतजार कर रहा है। ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के एक पूर्व पदाधिकारी ने कहा कि जब पार्टी का कोई दिग्गज नेता खुलेआम असंतोष जताता है तो ऐसे में स्थितियां और गंभीर हो सकती हैं। उनका इशारा अगले कुछ महीनों में होने वाले पंजाब विधानसभा चुनावों के लिए अमरिंदर सिंह द्वारा संभावित विद्रोह की ओर था।

नाम न जाहिर करने की शर्त पर एक नेता ने कहा कि जिस तरह से पंजाब के मामलों को संभाला गया, उसे देख उन्हें पार्टी पर “तरस आता” है। अंदरूनी कलह का सामना कर रहे राज्यों में से एक के पूर्व मंत्री ने आशंका जताते हुए कहा, “इससे और अधिक आंतरिक असंतोष व गुटबाजी हो सकती है।”

एक अन्य नेता ने महसूस किया कि पंजाब का दांव बहुत बड़ा था, यह देखते हुए कि अगर कांग्रेस 2022 में अन्य चुनावों वाले राज्यों के साथ यह राज्य हार जाती है, तो पार्टी के लिए 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले खोई हुई जमीन को वापस पाना मुश्किल होगा। पार्टी नेतृत्व पर असंतोष को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए पार्टी के एक पुराने नेता ने अफसोस जताते हुए कहा, “आजकल कांग्रेस में योग्यता और वफादारी को नुकसानदेह माना जाता है।”

पार्टी के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने ट्वीट किया, “सेनापति बदले जा रहे हैं- उत्तराखंड, गुजरात, पंजाब...पुरानी कहावत है: सही समय पर उठाया गया एक छोटा कदम भविष्य की कई बड़ी समस्याओं से बचाता है, लेकिन क्या यह होगा?” उनका इशारा कांग्रेस शासित पंजाब में अचानक किए गए नेतृत्व परिवर्तन को लेकर था।

पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अमरिंदर सिंह की आहत भावनाओं को जल्द ही शांत किया जाएगा। “कैप्टन अमरिंदर सिंह का इस्तीफा एक अप्रिय और कठिन स्थिति थी। इसके प्रभाव अभी तक सामने नहीं आए हैं। कुमार ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “उम्मीद है कि पार्टी और राज्य में उनके योगदान को देखते हुए उनकी आहत भावनाओं को उनके कद और गरिमा के अनुरूप उपयुक्त तरीके से शांत किया जा सकता है। यह पार्टी के हित में होगा।”

पंजाब के घटनाक्रम का जिक्र करते हुए, पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा कि यह बहुत दुखद है कि अमरिंदर सिंह ने इस्तीफा दे दिया और उम्मीद जताई कि गतिरोध को हल करने के लिए कुछ किया जा सकता है। खुर्शीद ने कहा, “हम सभी एकता और आशा की दिशा में काम कर रहे हैं और प्रार्थना करते हैं कि हम अपने व्यक्तिगत मतभेदों को दूर करें और पार्टी को और मजबूत करें।”

छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव के बीच तनातनी खुलकर सामने आई है, जिसमें देव कांग्रेस की जीत के समय तय हुए “ढाई साल के मुख्यमंत्री” वाले फॉर्मूले को लागू करने की मांग कर रहे थे।

कांग्रेस छोड़ने वाले वरिष्ठ नेताओं की गाथा 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले शुरू हुई, जब पार्टी ने हरियाणा के दिग्गज वीरेंद्र सिंह और राव इंद्रजीत सिंह को भाजपा के खेमे में जाने दिया। असम कांग्रेस के दिग्गज नेता हिमंत बिस्वा सरमा 2015 में भाजपा में शामिल हुए और अब असम के मुख्यमंत्री हैं।

यूपीए शासन में कुछ अन्य प्रमुख कांग्रेस नेताओं और पूर्व केंद्रीय मंत्रियों ने पार्टी छोड़ दी और भाजपा में शामिल हो गए, उनमें एसएम कृष्णा और जयंती नटराजन शामिल हैं। कृष्णा कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं और नटराजन यूपीए में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री थी। उत्तराखंड से कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा, उत्तराखंड विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष यशपाल आर्य और पूर्व मंत्री सतपाल महाराज ने भी भाजपा में शामिल होने के लिए कांग्रेस छोड़ दी थी। 

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