Tuesday, April 23, 2024
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अखिलेश को झटका देकर यूपी के उपचुनाव में इसलिए अकेले उतर रही हैं मायावती!

लोकसभा चुनाव में मिली सफलता के बाद से यूपी में नंबर 2 की हैसियत मिलने से मायावती को लगने लगा है कि पार्टी उपचुनाव में भी बहुत ज्यादा सीटों पर सफलता हासिल कर लेगी।

IANS Reported by: IANS
Published on: June 11, 2019 10:39 IST
BSP Supremo Mayawati | PTI File- India TV Hindi
BSP Supremo Mayawati | PTI File

लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी (BSP) उपचुनाव के सहारे वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव का रास्ता तैयार करने की तैयारी में जुट गई है। लोकसभा चुनाव में मिली सफलता के बाद से यूपी में नंबर 2 की हैसियत मिलने से मायावती को लगने लगा है कि पार्टी उपचुनाव में भी बहुत ज्यादा सीटों पर सफलता हासिल कर लेगी और अगले विधानसभा चुनाव में भी बाजी मार सकती है। लोकसभा चुनाव की तरह ही विधानसभा के उपचुनाव में भी बीएसपी के लिए हारने को कुछ है नहीं, जीतने को सारा मैदान और लड़ने का भरपूर माद्दा भी है। 

मायावती का बेस वोट बरकरार

पिछले विधानसभा चुनाव में BJP की लहर और सपा-कांग्रेस गठबंधन से अकेले लोहा लेकर भी मायावती अपना 'बेस वोट' बचाने में सफल रही हैं। इसीलिए उन्होंने गठबंधन के बगैर ही उपचुनाव में अकेले हाथ अजमाने की सोची है। मायावती के पास उपचुनाव की 11 में से कम से कम 4 सीटों पर जीत की उम्मीदें सजाने का आधार जरूर है। राजनीतिक सूत्र बताते हैं कि गठबंधन में दोनों दलों के बीच यह सहमति बनी थी कि सपा लोकसभा चुनाव में मायावती को PM के तौर पर पेश कर अपनी रजामंदी देगी, जबकि BSP 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव को CM के पद का समर्थन करेगी। BSP केंद्र की राजनीति में रहेगी और सपा यूपी की सियासत को संभालेगी। इसीलिए गठबंधन भी बना था, लेकिन चुनाव परिणाम BJP के पक्ष में आने से दोनों के मंसूबों पर पानी फिर गया।

Mayawati and Akhilesh Yadav

मायावती से झटका खाने के बाद अखिलेश ने भी उपचुनावों में अकेले उतरने का ऐलान किया है | PTI File

सपा से हाथ मिलाने का विकल्प खुला!
हालांकि, भविष्य की राजनीति के लिए मायावती शायद अभी समीक्षा और संगठन की ताकत परखने के मूड में हैं। शायद इसीलिए उपचुनाव के लिए गठबंधन तोड़ने के बाद भी सपा से पूरी तरह ब्रेकअप न होने की बात कहकर फिर हाथ मिलाने का विकल्प खुला रखा है। उपचुनावों के नतीजे काफी हद तक एक इशारा कर ही देंगे कि अब अकेले सियासी सफर BSP के लिए मुश्किल होगा या सामान्य। BSP की इस समय विधानसभा में महज 19 सीटें हैं, जबकि पार्टी ने 403 सीटों पर चुनाव लड़ा था। पिछले विधानसभा चुनाव में SP और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था, जिसमें SP को 47 और कांग्रेस को महज 7 सीटें ही मिली थीं। BSP के नेताओं का कहना है कि उनके पास 2022 के चुनाव में रणनीति बनाने के लिए ठीकठाक वक्त है।

तो आसान हो जाएगा 2022 का रास्ता
राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल कहते हैं कि उपचुनाव में बहुजन समाज पार्टी को अगर मजबूती मिलती है, तो उसके लिए 2022 विधानसभा का रास्ता आसान हो जाएगा। अभी हाल में आए परिणामों में बसपा को जो सफलता मिली है वह उस उत्साह के साथ उपचुनाव में भाग लेने जा रही है। अभी बसपा के पास 19 विधायक हैं। ऐसे में वह चाहते हैं कि उपचुनाव के माध्यम से जो विधायक बढ़ सके वह बढ़ा ले, क्योंकि अभी ताजा-ताजा उन्होंने लोकसभा में सफलता पाई है। सपा की तुलना में बसपा की ज्यादा अच्छी तैयारी रहेगी। सकारात्मक सोच और भाजपा के लिए चुनौती में नंबर वन है। अगर बसपा के पास नंबर अच्छे आते हैं, तो विधानसभा में अपनी बात सशक्त तरीके से रख सकते हैं। उपचुनाव में अच्छी संख्या मिलने पर इनका मनोबल भी बढ़ जाएगा साथ ही मायावती का अपना लिटमस टेस्ट भी हो जाएगा।

Yogi Adityanath

मायावती का मजबूत होना 2022 में योगी की मुश्किलें बढ़ा सकता है | PTI File

सिर्फ एक ही क्षेत्रीय दल टिकेगा
उन्होंने कहा कि अगर अभी तक देखें तो देश में एक ही क्षेत्रीय दल मजबूत रहता है। उदाहरण के लिए महाराष्ट्र को देखें तो वहां से NCP चली गई, शिवसेना मजबूत हो गई। इसी प्रकार बिहार में JDU मजबूत हो गई और RJD कमजोर हो गया। हर राज्य में यह लागू हो रहा है। यूपी एक ऐसा राज्य था जहां दोनों क्षेत्रीय दल खुद को सशक्त बताने की लड़ाई लड़ रहा था। राजनीतिक सच होता है उसके चलते कोई एक ही दल दावेदार के रूप में बचेगा। बसपा एक सशक्त दल के रूप में उभर रहा है। सपा कमजोर होती जा रही है। यूपी में आगे चलकर एक ही क्षेत्रीय दल बचेगा। वर्ष 2022 का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है। जो योगी को चुनौती देगा, वह 2024 में देश में बड़ा चैलेंजर बनकर उभरेगा। इसीलिए अभी समय रहते सभी राजनीतिक दल समीक्षा की ओर आगे बढ़ रहे हैं।

चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग का इस्तेमाल
बसपा के एक नेता ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि बसपा इस बार भी चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग के प्रयोग को अपनाने वाली है। इसमें दलित मुस्लिम का गठजोड़ बनाने का प्रयास होगा। अधिक मात्रा में मुस्लिमों को सीटें भी दी जानें की बात सामने आ रही है। पार्टी ने बाकायदा सभी सांसदों को उनके क्षेत्र में आने वाली सभी विधानसभा सीटों पर मेहनत करने और समीकरणों को तलाशने के लिए कह दिया गया है। नेता की मानें तो अगर उनकी पार्टी सपा के इस खास वोटबैंक पर अपनी पकड़ मजबूत कर लेती है तो उसका रास्ता बहुत हद तक आसान हो जाएगा। बसपा का प्रयास है कि इस बार विधानसभा चुनाव में अपने बलबूते एक मजबूत सरकार बनाएं।

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