Saturday, April 20, 2024
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दरक रहे दलित वोट बचाने की मायावती को सता रही चिंता

राज्यसभा चुनाव के दौरान हुई सियासी उठापटक का असर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के भविष्य की राजनीति पर भी पड़ने की संभावना है।

IANS Reported by: IANS
Published on: November 02, 2020 12:10 IST
Mayawati- India TV Hindi
Image Source : PTI दरक रहे दलित वोट बचाने की मायावती को सता रही चिंता

लखनऊ: राज्यसभा चुनाव के दौरान हुई सियासी उठापटक का असर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के भविष्य की राजनीति पर भी पड़ने की संभावना है। वैसे तो राजनीति में कोई भी घटनाक्रम ज्यादा स्थाई नहीं होता है। लेकिन जिस तरह से बसपा सुप्रीमो मायावती सपा पर हमलावर हुई हैं, भाजपा के लिए अपनी सहानभूति दिखायी देती है। यह उनके दरक रहे कोर दलित वोटर को बचाने की ओर संकेत कर रहे हैं।

यूपी में इन दिनों कांग्रेस से लेकर भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद तक बसपा के दलित वोटबैंक पर नजर गढ़ाए बैठे हैं। दूसरी तरफ बसपा के पुराने और दिग्गज नेता लगातार मायावती का साथ छोड़ रहे हैं। रही सही कसर अभी हाल में बसपा विधायकों की बगावत ने पूरी कर दी जो सपा से नजदीकियां बढ़ा रहे हैं।

चन्द्रशेखर इन दिनों पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलितों के मुद्दे उठाकर काफी बढ़त लेने में लगे हैं। सहारनपुर के आस-पास के जिलों में उन्होंने दलितों के बीच अपनी अच्छी पैठ भी बनायी है। इनकी राजनीति जाटव वोट को लेकर आगे बढ़ रही है। बसपा ने कहा है कि सपा के साथ मायावती को कोई लाभ नहीं हुआ। दलित और यादव वोट बैंक गठबंधन के साथ ट्रान्सफर नहीं हुआ।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो यूपी में दलितों की आबादी करीब 22 प्रतिशत है। यह दो हिस्सों में है -- एक, जाटव जिनकी आबादी करीब 14 फीसद है और मायावती की बिरादरी है। चंद्रशेखर भी इसी समाज से हैं। मायावती को इसी बात का भय है। मंडल आंदोलन में दलितों के जाटव वोट वाले हिस्से की राजनीति से बसपा मजबूत बनी है। ठीक वैसे ही जैसे ओबीसी में यादवों के समर्थन से सपा है।

उप्र में जाटव समुदाय बसपा का कोर वोट बैंक माना जाता है जबकि गैर-जाटव दलित वोटों की आबादी तकरीबन 8 फीसदी है। इनमें 50-60 जातियां और उप-जातियां हैं और यह वोट विभाजित होता है। हाल के कुछ वषों में दलितों का बसपा से मोहभंग होता दिखा है। दलितों का एक बड़ा धड़ा मायावती से कटा है। लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में गैर-जाटव वोट भाजपा के पाले में खड़ा दिखा है, लेकिन किसी भी पार्टी के साथ स्थिर नहीं रहता है। इस वोट बैंक पर कांग्रेस और सपा की भी नजर है।

पिछले कई वषों में बसपा के लिए हालात बहुत कुछ बदले हैं। विधानसभा से लोकसभा तक की हार ने मायावती के दलित वोट बैंक की मजबूती पर सवाल खड़े कर दिये हैं। ऐसे में मायावती को जातीय गणित ठीक करने के लिए बहुत सारी मशक्कत करनी पड़ रही है।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक राजीव श्रीवास्तव ने बताया कि मायावती को अपने दलित वोट बैंक की चिंता है। मायावती को पता है कि जाटव वोट अगर कांग्रेस की ओर शिफ्ट हो गया तो इन्हें अपने पाले लाने में मुश्किल होगी। क्योंकि कांसीराम के पहले यही मूल वोट बैंक कांग्रेस का रहा है। उनहोंने बताया कि दलित युवाओं में चन्द्रशेखर की आजाद समाज पार्टी का पश्चिमी यूपी में युवाओं के बीच बोलबाला बढ़ रहा है।

मायावती को बहुसंख्यक दलित के खिसकने का डर है। इसीलिए मायावती का भाजपा की ओर झुकाव बढ़ रहा है। लोकसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन का उन्हें लाभ नहीं मिला है। मायावती को यूपी की राजनीति में अपना स्थान बनाने के लिए अपने दलित वोट को बचाना होगा। ऐसा देखा गया है कि भाजपा के साथ गठबंधन करने पर मूल दलित वोट कहीं और शिफ्ट नहीं होता है। भाजपा के साथ हिन्दू वोट तो हो सकता है। लेकिन जाटव वर्ग कहीं नहीं जाता है। उपजतियां पासी, धानुक, खाटिक, वाल्मिकी जरूर हिन्दू बनकर भाजपा में आ जाता है। प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से मायावती को केन्द्र का दबाव रहता है।

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