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महाराष्ट्र: 20 साल के झगड़े के बाद अब साथ आएंगे ठाकरे ब्रदर्स? "मिलन" जरूरी है या मजबूरी

महाराष्ट्र की राजनीति एक नए मोड़ की तरफ मुड़ती दिख रही है। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के बीच की बढ़ती नजदीकियां क्या ठाकरे ब्रदर्स के लिए आज जरूरी है या उनकी मजबूरी है, जानिए इस खास खबर में....

Written By: Kajal Kumari @lallkajal
Published : Apr 21, 2025 14:57 IST, Updated : Apr 21, 2025 14:57 IST
उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे
Image Source : FILE PHOTO उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे

जिस शिवसेना के लिए कभी बाला साहेब ठाकरे के परिवार में फूट पड़ी और दो भाइयों के बीच दरार पड़ी आज वो शिवसेना भी टूट गई है। बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना के उत्तराधिकारी बनने को लेकर 20 साल पहले दो भाइयों उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के रास्ते अलग हुए थे, वे दोनों ठाकरे ब्रदर्स के आज फिर से पास आने की चर्चा जोरों पर है। दोनों की बातों से लग रहा है कि लंबे अरसे से चल रहे झगड़े पर अब लगाम लग सकती है और जल्द ही दोनों भाइयों का मिलन हो सकता है।

ठाकरे ब्रदर्स का मिलन होगा?

दरअसल, अभिनेता और फिल्म निर्देशक महेश मांजरेकर के यूट्यूब चैनल पर शनिवार को प्रसारित हुए एक पॉडकास्ट में राज ठाकरे ने अपने भाई उद्धव के लिए कहा था ‘हमारे बीच राजनीतिक मतभेद हैं, विवाद हैं, झगड़े हैं, लेकिन यह सब महाराष्ट्र के आगे बहुत छोटी चीज हैं। महाराष्ट्र और मराठी लोगों के हित के लिए साथ आना कोई बहुत बड़ी मुश्किल नहीं है। सवाल केवल इच्छाशक्ति का है।’

राज ठाकरे की बात पर उद्धव ठाकरे ने भी सकारात्मक प्रतिक्रिया दी, लेकिन उन्होंने एक शर्त भी रखी। उद्धव ने कहा, ‘मैं छोटे-छोटे विवादों को दरकिनार करने के लिए तैयार हूं, लेकिन जो महाराष्ट्र के हितों के खिलाफ काम करते हैं, उनके साथ कोई संबंध नहीं रखूंगा।’

वहीं, उद्धव की शिवसेना के सांसद संजय राउत ने कहा कि उद्धव एक शर्त पर राज से बात को तैयार हैं, अगर राज महाराष्ट्र और शिवसेना, उद्धव के दुश्मनों को अपने घर में जगह न दें। साथ ही अंबादास दानवे ने भी कहा कि उद्धव और राज दोनों भाई हैं, लेकिन उनकी राजनीति अलग है, उनका तरीका अलग है। अगर दोनों साथ आना चाहते हैं तो दोनों भाइयों की आमने-सामने बात होनी चाहिए, टीवी पर ये सब नहीं होना चाहिए।

क्यों पड़ी साथ आने की जरूरत

महाराष्ट्र की राजनीति में अब मनसे प्रमुख राज ठाकरे की बात करें तो उनकी पार्टी कमजोर हो चुकी है और साथ ही दूसरी तरफ उद्धव की शिवसेना में दरार पड़ने और एकनाथ शिंदे के अलग होने से उनकी पार्टी भी कमजोर हो चुकी है। शिंदे और भाजपा की दोस्ती और अजीत पवार के साथ बना गठबंधन मजबूत है और विधानसभा चुनाव में मिली जीत के बाद उत्साहित भी है। अभी के परिप्रेक्ष्य में देखें तो बीएमसी के चुनाव आने वाले हैं और एनडीए के इस गठबंधन को मात देने के लिए ठाकरे ब्रदर्स का एक होना जरूरी है। अपना राजनीतिक जनाधार फिर से वापस पाने के लिए दोनों साथ आने का मन बना रहे हैं।

कैसे अलग हुए थे दोनों भाइयों के रास्ते

राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे दोनों भाई बालासाहेब के प्यारे दुलारे थे। एक तरफ राज ठाकरे जो बिल्कुल बाला साहेब जैसे दिखते हैं, उन्हीं की बोलते हैं, उतने ही आक्रामक हैं, उनकी ही तरह  बालासाहेब जैसे कार्टून बनाते हैं तो दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे जो कम बोलते हैं, शांत और शर्मीले स्वभाव के हैं। राज ठाकरे के तेवर और बालासाहेब ठाकरे की फोटो कॉपी कहे जाने के कारण सभी यही मान रहे थे कि वही शिवसेना के उत्तराधिकारी होंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 

  • 2002 में बालासाहेब ने बेटे उद्धव को मुंबई महानगर पालिका (BMC) के चुनाव की जिम्मेदारी दी और इस चुनाव में मिली जीत से पार्टी पर उद्धव की पकड़ मजबूत हो गई और राज ठाकरे का कद घट गया।
     
  • 2003 में राज ठाकरे पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष बन गए और राज ठाकरे की नाराजगी बढ़ी और वे पार्टी से दूर हो गए।
     
  • 2005 में राज ने अपने तेवर दिखाने शुरू किए। उन्होंने शिवसेना के नेता पद से इस्तीफा दे दिया लेकिन कहा कि बालासाहेब ठाकरे मेरे भगवान थे, हैं और रहेंगे। 
     
  • साल आया 2006, जब राज ठाकरे ने नई पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनाई और तभी से बाला साहेब की शिवसेना टूटकर दो भागों में बंट गई और राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के रास्ते अलग हो गए।
     
  • 17 नवंबर 2012 को बालासाहेब ठाकरे का देहांत हो गया और राज-उद्धव के बीच दरार और गहरी हो गई।      

साथ आना है जरूरी, दोनों की है बड़ी मजबूरी  

महाराष्ट्र में बीएमसी चुनाव आने वाले हैं और यह चुनाव कई मायनों में अहम होने वाला है लेकिन राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के लिए यह अस्तित्व बचाने की लड़ाई है। लेकिन अगर दोनों साथ आएंगे भी तो दोनों भाइयों की पार्टी के नेताओं को भी एकमत होना होगा और सबसे बड़ी बात होगी कि साथ आने के बाद शिवसेना का नया रूप क्या होगा और कमान किसके हाथ होगा। क्योंकि नेतृत्व को लेकर ही दोनों अलग हुए थे।

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