Thursday, April 25, 2024
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Shani Jayanti 2020: सालों बाद बन रहा है ऐसा दुर्लभ योग, इस विधि से पूजा करके करें भगवान शनि को प्रसन्न

शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है। इसलिए इस दिन शनिदेव की श्रद्धा पूर्वक और विधिवत पूजा अर्चना करने से व्यक्ति के सभी मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि औ व्रत कथा।

India TV Lifestyle Desk Written by: India TV Lifestyle Desk
Published on: May 21, 2020 14:15 IST
शनि जयंती- India TV Hindi
Image Source : TWITTER/HARIVARA_INDIA शनि जयंती

ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की अमावस्या 22 मई को रात 11 बजकर 9 मिनट तक रहेगी| अमावस्या के दिन स्नान-दान और श्राद्ध आदि का बहुत महत्व है | अमावस्या के साथ इस दिन वट सावित्री व्रत के साथ शनि जंयती भी पड़ रही हैं।  माना जाता है अमावस्या के दिन भगवान शनि का जन्‍म हुआ था। जिसके कारण इस दिन को जयंती के रूप में मनाया जाता है। शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है। इसलिए इस दिन शनिदेव की श्रद्धा पूर्वक और विधिवत पूजा अर्चना करने से व्यक्ति के सभी मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि औ व्रत कथा। 

इस साल  शनि जयंती पर ग्रहों का दुर्लभ संयोग भी बन रहा है। इस दिन शनि की स्वराशि मकर में एक साथ तीन ग्रह विराजमान होंगे। मकर राशि में शनि के साथ-साथ गुरु और चंद्रमा की युति बन रही है। ऐसा संयोग काफी अरसे बाद हो रहा हैं। इस संयोग का असर हर राशि के जातकों पर पड़ेगा। 

शनि जयंती का शुभ मुहूर्त

अमावस्या तिथि प्रारम्भ – मई 21 को रात 9 बजकर 35 मिनट से शुरू

अमावस्या तिथि समाप्त – मई 22 को रात 11 बजकर 08 मिनट तक

शनि देव की पूजा विधि

शनि जयंती के दिन कई लोग व्रत  उपवास भी करते हैं। खासकर उपवास करने वाले लोगों को विधिवपूर्वक पूजा करनी चाहिए। पूजा करने के लिए साफ लकड़ी की चौकी पर काले रंग का कपड़ा बिछाकर उसके ऊपर शनिदेव की प्रतिमा को स्थापित करें। शनि देव को पंचामृत व इत्र से स्नान करवाने के बाद कुमकुम, काजल, अबीर, गुलाल, नीले या काले फूल अर्पित करें। इसके सात ही तेल से बनें पकवान अर्पित करें। इसके बाद भगवान शनि मंत्र की माला का जाप करना चाहिए। 

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शनि देव के मंत्र

ॐ शं शनैश्चराय नमः"

"ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः"

 "ॐ शन्नो देविर्भिष्ठयः आपो भवन्तु पीतये। सय्योंरभीस्रवन्तुनः।।"

शनि देव के जन्म की कथा

शनि जन्म के संदर्भ में स्कंदपुराण के काशीकंड में एक कथा मिलती है। जिसके अनुसार शनि, सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं। सूर्य देव का विवाह प्रजापति दक्ष की पुत्री संज्ञा से हुआ। कुछ समय बाद उन्हें तीन संतानों के रूप में मनु, यम और यमुना की प्राप्ति हुई। इस प्रकार कुछ समय तो संज्ञा ने सूर्य के साथ रिश्ता निभाने की कोशिश की, लेकिन संज्ञा सूर्य के तेज को अधिक समय तक सहन नहीं कर पाईं। इसी वजह से संज्ञा अपनी छाया संवर्णा को पति सूर्य की सेवा में छोड़कर वहां से चली चली गईं। संज्ञा ने अपनी छाया संवर्णा से कहा कि अब से मेरी जगह तुम सूर्यदेव की सेवा और बच्चों का पालन करते हुए नारीधर्म का पालन करोगी लेकिन यह राज सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच ही बना रहना चाहिये।

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अब संज्ञा वहां से चलकर पिता के घर पंहुची और अपनी परेशानी बताई तो पिता ने डांट फटकार लगाते हुए वापस भेज दिया लेकिन संज्ञा वापस न जाकर वन में चली गई और घोड़ी का रूप धारण कर तपस्या में लीन हो गई। उधर सूर्यदेव को जरा भी आभास नहीं हुआ कि उनके साथ रहने वाली संज्ञा नहीं सुवर्णा है। संवर्णा अपने धर्म का पालन करती रही उसे छाया रूप होने के कारण उन्हें सूर्यदेव के तेज से भी कोई परेशानी नहीं हुई। सूर्यदेव और संवर्णा के मिलन से भी मनु, शनिदेव और भद्रा (तपती) तीन संतानों ने जन्म लिया।           

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