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स्टेनलेस स्टील उद्योग ने सरकार से फेरो-निकेल पर आयात शुल्क हटाने का आग्रह किया

उद्योग संगठन ने स्टेनलेस स्टील के बने चादरें समेत अन्य फ्लैट उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाकर 12.5 प्रतिशत करने और उसे कार्बन स्टील उत्पादों के स्तर पर लाने की मांग की है।

Edited by: India TV Paisa Desk
Published : December 20, 2020 19:49 IST
फेरो-निकेल पर आयात...- India TV Paisa
Photo:GOOGLE

फेरो-निकेल पर आयात शुल्क हटाने की मांग

नई दिल्ली। इंडियन स्टेनलेस स्टील डेवलपमेंट एसोसिएशन (आईएसएसडीए) ने बजट से पहले सरकार से फेरो-निकेल और स्टेनलेस स्टील कतरन (स्क्रैप) पर आयात शुल्क हटाने का आग्रह किया है। फिलहाल फेरो-निकेल और स्टेनलेस स्टील कतरन पर मूल सीमा शुल्क 2.5 प्रतिशत है। आईएसएसडीए ने वित्त वर्ष 2021-22 के बजट के लिये वित्त मंत्रालय को सौंपी गयी अपनी सिफारिशाों में ग्रेफेाइट इलेक्ट्रोड्स पर भी आयात शुल्क हटाने की मांग की है। संगठन ने कहा, ‘‘हमने फेरो निकेल और स्टेनलेस स्टील कतरन समेत कच्चे माल पर 2.5 प्रतिशत मूल सीमा शुल्क हटाने की अपील की है।’’ फिलहाल, दोनों कच्चे माल देश में उपलब्ध नहीं है। इससे इनका आयात करना जरूरी होता है। उद्योग की फेरो निकेल और स्टेनलेस स्टील कतरन पर शुल्क हटाने की लंबे समय से मांग है।

इस्पात मंत्रालय भी इन उत्पादों पर शून्य शुल्क की वकालत कर चुका है। स्टेनलेस स्टील उद्योग अपनी निकेल जरूरतों को फेरो-निकेल और स्टेनलेस स्टील कतरन के माध्यम से पूरा करता है। आईएसएसडीए ने ग्रेफाइट इलेक्ट्रोड्स पर भी मौजूदा 7.5 प्रतिशत आयात शुल्क हटाने की मांग की है। स्टेनलेस स्टील विनिर्माण के लिये यह महत्वपूर्ण कच्चा माल है। इसके अलावा उद्योग संगठन ने स्टेनलेस स्टील के बने चादरें समेत अन्य फ्लैट उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाकर 12.5 प्रतिशत करने और उसे कार्बन स्टील उत्पादों के स्तर पर लाने की मांग की है। आईएसएसडीए के अनुसार इन उपायों से न केवल घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहन मिलेगा बल्कि अवांछित स्टेनलेस इस्पात के आयात पर भी अंकुश लगेगा। संगठन के अध्यक्ष के के पहूजा के अनुसार इन सुझावों के अमल में लाने से घरेलू उद्योग की प्रतिस्पर्धी क्षमता मजबूत होगी और इससे एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यम) क्षेत्र को गति मिलेगी जिनका स्टेनलेस स्टील उद्योग में 40 प्रतिशत हिस्सेदारी है। उन्होंने कहा कि साथ ही इससे अनुचित आयात पर भी अंकुश लगेगा और घरेलू उद्योग को राहत मिलेगी जो कोविड-19 संकट के कारण 60 प्रतिशत क्षमता पर काम कर रहा है और वित्तीय दबाव में है।

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