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जानिए क्‍या है दुनिया का सबसे बड़ा फ्री ट्रेड एग्रीमेंट RCEP, भारत क्‍यों नहीं हुआ इसमें शामिल और चीन ने क्‍या कहा

RCEP में शामिल नहीं होने पर चीन ने अपनी खीज निकाली है। चीन के अखबारों ने लिखा है कि भारत ने रणनीतिक तौर पर एक भारी गलती की है।

Edited by: India TV Paisa Desk
Published : November 17, 2020 14:32 IST
 RCEP से भारत ने अपने आप को अलग कर लिया है- India TV Paisa
Photo:FILE PHOTO

 RCEP से भारत ने अपने आप को अलग कर लिया है। (चित्र प्रतीकात्‍मक)

नई दिल्‍ली। रीजनल कम्‍प्रेहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (the Regional Comprehensive Economic Partnership: RCEP) को दुनिया का सबसे बड़ा मुक्‍त व्‍यापार समझौता है, जिसपर रविवार को 15 देशों ने हस्‍ताक्षर किए हैं। दुनिया की कुल जीडीपी का 30 प्रतिशत हिस्सा इन 15 देशों के पास ही है, इस लिहाज से यह दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारिक समझौता है। भारत वर्ष 2013 से ही आरसीईपी की वार्ताओं में शामिल था, लेकिन कुछ मुद्दों पर असहमति होने के कारण पिछले साल नवंबर में ही इस समझौते से पीछे हट गया था।

इस समझौते को चीन के लिए बड़ी सफलता के तौर पर देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि इससे चीन का आर्थिक प्रभाव और बढ़ेगा। यही वजह है कि भारत आरसीईपी के सदस्य देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते की समीक्षा की बात भी कर रहा है। भारत को लगता है कि चीन के उत्पादों के लिए उसका बाजार मुक्त व्यापार के लिए खुल जाएंगे।

क्‍या है आरसीईपी

यह 15 देशों के बीच हुआ एक मुक्त व्यापार समझौता है और इससे सदस्य देशों के लिए एक-दूसरे के साथ व्यापार करना आसान हो जाएगा। इस समझौते के तहत सदस्य देशों को आयात, निर्यात पर लगने वाला टैक्स या तो भरना ही नहीं पड़ेगा या फिर बहुत कम भरना पड़ेगा। इस समझौते के तहत भविष्य में सदस्य देशों के बीच व्यापार से जुड़े शुल्क घट जाएंगे। समझौते पर हस्ताक्षर के बाद सभी देशों को RCEP को दो साल के दौरान अनुमोदित करना होगा, जिसके बाद यह लागू हो जाएगा। इसके सदस्य देशों में 10 आसियान देशों के अलावा चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं।

भारत क्‍यों हटा पीछे

भारत को लगता है कि इसमें आयात बढ़ने पर अंकुश लगाने के लिए पर्याप्त प्रावधान नहीं है। चीन के साथ भारत का व्यापारिक घाटा पहले ही अधिक है और आरसीईपी भारत की स्थिति को और खराब कर सकता था। भारत के किसान और व्यापारी संगठन भी इस समझौते का यह कहते हुए विरोध कर रहे थे कि अगर हम इसमें शामिल हुए तो पहले से ही परेशान ये वर्ग पूरी तरह से तबाह हो जाएंगे। एक पहलू यह भी है कि समझौता होने के बाद जिस तरह भारत की कंपनियों को एक बड़ा बाजार मिलता, वैसे ही दूसरे देशों की कंपनियों को भी भारत जैसा बड़ा बाजार मिलता।। ऐसे में चीन समेत सभी दूसरे देश सस्ती कीमतों पर अपना सामान भारतीय बाजार में बेचना शुरू कर देते और इससे घरेलू भारतीय उत्पादकों को परेशानी होती।

अमेरिका भी है इससे बाहर  

सबसे पहले 2012 में RCEP का प्रस्ताव किया गया था। इसमें आसियन के 10 देश- इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपीन, सिंगापुर, थाइलैंड, ब्रुनेई, वियतनाम, लाओस, म्यामांर और कंबोडिया के साथ चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं। अमेरिका इस समझौते में शामिल नहीं है।

चीन ने कहा भारत ने की गलती

RCEP में शामिल नहीं होने पर चीन ने अपनी खीज निकाली है। चीन के अखबारों ने लिखा है कि भारत ने रणनीतिक तौर पर एक भारी गलती की है। इसके लिए चीन की मीडिया ने strategic blunder जैसे शब्द का इस्तेमाल किया है और कहा है कि भारत आर्थिक रिकवरी करने से चूक जाएगा।  

भारत ने कहा, शर्तें हमारे पक्ष में नहीं

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत के इस कदम को सही बताया और कहा कि जरूरी नहीं कि सभी करार देश के लिए अच्छे ही हों। RCEP में हम वैश्विक प्रतिबद्धता में बंध जाते, इसकी कई शर्तें हमारे पक्ष में नहीं हैं, जो इस समझौते की तारीफ कर रहे हैं वो पूरी पिक्चर नहीं दिखा रहे हैं।

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