भारतीय रेल ने पंजाब में लंबे समय से अटकी 40 किलोमीटर लंबी कादियां-ब्यास रेल लाइन पर फिर से काम शुरू करने का फैसला किया है। रेल राज्य मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू ने शनिवार को ये जानकारी दी। बिट्टू ने अधिकारियों को कादियां-ब्यास रेल लाइन प्रोजेक्ट को ‘डिफ्रीज’ करने का निर्देश जारी किया है। इस रेल लाइन को पहले संरेखण चुनौतियों, भूमि अधिग्रहण संबंधी बाधाओं और स्थानीय स्तर की राजनीतिक जटिलताओं की वजह से ‘फ्रीज’ कैटेगरी में डाल दिया गया था। रेलवे में किसी प्रोजेक्ट को ‘फ्रीज’ कैटेगरी में डालने का मतलब, उस प्रोजेक्ट पर काम बंद करना है, क्योंकि अधिकारी अलग-अलग वजहों से उस पर काम करने में असमर्थ होते हैं। वहीं, प्रोजेक्ट को ‘डिफ्रीज’ करने का मतलब सभी समस्याओं के दूर होने पर फिर से काम शुरू करने से है।
पंजाब में रेलवे प्रोजेक्ट के लिए पैसों की कोई कमी नहीं
रवनीत सिंह बिट्टू ने एक बयान में कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि पंजाब में रेलवे प्रोजेक्ट के लिए पैसों की कोई कमी नहीं है। उन्होंने कहा, “मैं नए प्रोजेक्ट शुरू करने, फंसे हुए प्रोजेक्ट को पूरा करने और अप्रत्याशित कारणों से रुके हुए प्रोजेक्ट को फिर से शुरू करने के लिए पूरी कोशिश कर रहा हूं। मोहाली-राजपुरा, फिरोजपुर-पट्टी और अब कादियां-ब्यास, मैं पूरी तरह से जानता था कि ये लाइन कितनी महत्वपूर्ण है।” बताते चलें कि कादियां गुरदासपुर जिले में है, जबकि ब्याज अमृतसर जिले में स्थित है।
जल्द से जल्द निर्माण कार्य शुरू करना चाहता है रेलवे
रेल राज्य मंत्री बिट्टू ने कहा, “मैंने अधिकारियों को सभी समस्याओं को दूर करने और निर्माण कार्य फिर से शुरू करने के निर्देश दिए हैं। ये नया ट्रैक पंजाब के ‘इस्पात नगर’ बटाला की संघर्षरत औद्योगिक इकाइयों को महत्वपूर्ण बढ़ावा देगा।” उत्तर रेलवे के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी (निर्माण) की ओर से जारी पत्र में कहा गया है, “रेलवे बोर्ड चाहता है कि कादियां-ब्यास लाइन को ‘डिफ्रीज’ किया जाए, विस्तृत अनुमान फिर से पेश किया जाए और उसे जल्द से जल्द मंजूरी दी जाए, ताकि निर्माण कार्य शुरू हो सके।”
1929 में ब्रिटिश सरकार ने स्वीकृत किया था प्रोजेक्ट
कादियां-ब्यास रेल लाइन प्रोजेक्ट को मूल रूप से 1929 में ब्रिटिश सरकार ने स्वीकृत किया था और उत्तर-पश्चिम रेलवे ने इसका काम अपने हाथ में लिया था। 1932 तक इसका लगभग एक-तिहाई काम पूरा हो चुका था, लेकिन बाद में प्रोजेक्ट को अचानक बंद कर दिया गया। रेलवे ने इसे “सामाजिक रूप से वांछनीय परियोजना” के रूप में वर्गीकृत किया और 2010 के रेल बजट में शामिल किया। हालांकि, तत्कालीन योजना आयोग की ओर से उठाई गई वित्तीय चिंताओं के कारण काम एक बार फिर रुक गया। “सामाजिक रूप से वांछनीय परियोजना” श्रेणी के तहत रेलवे किफायती, सुलभ परिवहन सेवाएं मुहैया कराके समावेशी विकास पर ध्यान केंद्रित करता है, भले ही ऐसे उपक्रम राजस्व-आधिरत न हों।



































