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मैच्योरिटी से पहले FD तोड़ने की आ गई नौबत, पेनल्टी से बचने के लिए अपनाएं ये ट्रिक

एफडी कराने के बाद समय से पहले निकासी पर बैंक पेनल्टी वसूलते हैं। इससे बचने के लिए क्या करें, हम बता रहे हैं।

Edited By: Alok Kumar @alocksone
Published : Apr 29, 2025 12:21 IST, Updated : Apr 29, 2025 12:21 IST
FD
Photo:FILE एफडी

भारतीय निवेशकों के बीच फिक्स्ड डिपॉजिट (FD), निवेश का सबसे पसंदीदा माध्यम है। इसकी वजह ​रिस्क फ्री और फिक्स रिटर्न है। इसके चलते छोटे से बड़े निवेश ​एफडी में पैसा लगाते हैं। हालांकि, जीवन की अनिश्चितताएं कभी भी आ सकती है। उस वक्त  निवेशकों को मैच्योरिटी से पहले FD तोड़ने की मजबूरी हो जाती है।  मैच्योरिटी से पहले एफडी तोड़ने पर बैंक कम रिटर्न और पेनल्टी भी लेते हैं। अगर आप भी एफडी कराते हैं तो इस तरह की परिस्थिति से बचने के लिए हम आपको कुछ ट्रिक दे रहे हैं। आप उनको फॉलो कर पेनल्टी के बोझ को कम कर सकते हैं। साथ ही कम रिटर्न के नुकसान की भरपाई कर सकते हैं। 

FD लैडरिंग का करें इस्तेमाल 

मैच्योरिटी से पहले निकासी पर पेनल्टी देने से बचने के लिए एफडी लैडरिंग का इस्तेमाल करें। इसमें पूरा पैसा एक ही एफडी में निवेश नहीं करें। पैसा को अलग-अलग परिपक्वता तिथियों के साथ कई FD में विभाजित कर निवेश करें। ऐसा करने पर आपके पास नियमित अंतराल पर अपने फंड के कुछ हिस्सों निकालने की सुविधा होगी। फिर आपको एफडी मैच्योरिटी से पहले तोड़ने की जरूरत नहीं होगी। 

स्वीप-इन सुविधा

कई बैंक स्वीप-इन अकाउंट प्रदान करते हैं, जहां एक तय रकम सेविंंग अकाउंट में होने पर वह स्वचालित रूप से FD में चली जाती है। ऐसे होने से एफडी में जमा राशि पर ज्यादा ब्याज मिलता है। साथ ही जब भी पैसे की जरूरत होती है, आसानी से निकालने की सुविधा होती है। 

FD पर लोन 

FD को मैच्योरिटी से पहले तोड़ने के बजाय, लोन लेना भी एक बेहतर विकल्प है। बैंक आमतौर पर FD राशि के 90 प्रतिशत तक लोन FD की ब्याज दर से थोड़ी अधिक ब्याज दरों पर देते हैं। यह विकल्प निवेश को बनाए रखते हुए दंड से बचने में मदद करता है।

सरकारी बैंक में करें एफडी

अगर आपको मैच्योरिटी से पहले पैसे निकालने पड़ सकते हैं तो आप अपनी एफडी सरकारी बैंकों में कराएं। समय से पहले एफडी निकासी के मामले में सरकारी बैंक आमतौर पर प्राइवेट बैंक के मुकाबले कम पेनल्टी वसूलते हैं। सरकारी बैंकों में, जुर्माना आम तौर पर 0.50 प्रतिशत से 1 प्रतिशत के बीच होता है। वहीं, प्राइवेट सेक्टर के बैंकों में यह 1 प्रतिशत से 1.5 प्रतिशत के बीच हो जाता है। 

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