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Kamakhya Temple: कामख्या मंदिर में किस देवी-देवता की होती है पूजा? जानिए क्या है धार्मिक महत्व

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते दिन रविवार को गुवाहटी के वेटरनरी कॉलेज ग्राउंड में कामाख्या एक्सेस कॉरिडोर की आधारशिला रखी। इस परियोजना से दर्शनार्थियों को अच्छी सुविधा मिलेगी। आखिर असम के कामख्या मंदिर का धार्मिक महत्व क्या है और यहां किस देवी-देवता की पूजा की जाती है आइए जानते हैं।

Written By: Aditya Mehrotra
Published : Feb 05, 2024 14:50 IST, Updated : Feb 06, 2024 6:05 IST
Kamakhya Temple- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Kamakhya Temple

Kamakhya Temple: पीएम मोदी ने बीते दिन रविवार को अमस का दौरा किया था। इस दौरान उन्होंने 11 हजार करोड़ रुपये की परियोजनाओं की सौगात दी। प्रधानमंत्री मोदी ने असम के प्रसिद्ध मां कामख्या मंदिर के कॉरिडोर की आधारशिला रखी। मां कामख्या मंदिर के कॉरिडोर बन जाने से यहां दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं को बहतर सुविधा मिलेगी। आइए जानते हैं असम राज्य के गुवाहटी में स्थित इस प्रसिद्ध मंदिर के बारे में।

मां कामख्या मंदिर का महत्व

भारत के असम राज्य गुवाहटी शहर से  से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर मां कामख्या देवी का प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। यह देवी मां के 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहां प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में देवी मां के भक्त उनके दर्शन करने आते हैं। मंदिर की मान्यता है कि यहां जो भी भक्ति सच्चे मन से मां आदि शक्ति के दर्शन कर लेता है। उसे जीवन भर किसी भी संकट से नहीं गुजरना पड़ता है और उन भक्तों पर मां भगवती की सदैव कृपा बरसती है।

कामख्या देवी मंदिर से जुड़ी पौराणिक मान्यता

पौराणिक कथा के अनुसार मां सती के पिता दक्ष ने एक बार भरी सभा में शिव जी का अपमान किया था। उनसे यह अपमान सहा नहीं गया और उन्होंने अपने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ के अग्नि कुंड में कूदकर प्राणों कि आहुति दे दी थी। शिव जी मां सती के व्योग में उनका देह लेकर इधर-उधर घूमने लगे। इस दैरान भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से मां सती के देह पर प्रहार किया। प्रहार के कारण मां सती के अंग जहां-जहां गिरे वह शक्तिपीठ नाम से प्रसिद्ध हुए। मान्यता है कि देवी सती के देह की योनि का भाग यहां गिरा था। तब से यह स्थान मां कामख्या देवी के नाम से प्रसिद्ध है। 

मंदिर से जुड़ी कुछ प्रमुख बातें

  • मां कामख्या मंदिर में देवी मां की कोई भी प्रतिमा नहीं है। यहां एक कुंड को ही उनका स्वरूप मानकर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है।
  • यह तीर्थस्थान मां दुर्गा के 51 शक्तिपीठों में सम्मलित है।
  • मंदिर का मुख्य भाग्य जमीन से लगभग 20 फीट नीचे है। जमीन के नीचे एक विशाल गुफा भी है।
  • हर महीने इस मंदिर के पट तीन दिनों के लिए बंद किए जाते हैं। इस दौरान कोई भी मां के दर्शन नहीं करता है।
  • यह स्थान तंत्र साधना के लिए भी प्रसिद्ध है। सिद्धि पाने के लिए यहां मां कामाख्या की पूजा उनके भक्त करते हैं।

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