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Shaniwar Ke Upay: शनि की ढैय्या, साढ़ेसाती से हैं पीड़ित तो जरूर करें इस स्तोत्र का पाठ, छप्परफाड़ बरसेगी शनि की कृपा

शनिवार के दिन शनि मंदिर में सैकड़ों की संख्या में भक्तों का जमावड़ा लगता है, भक्त शनिदेव की कृपा पाने के लिए पूजा-पाठ करते हैं, ऐसे में अगर जातक पर शनि की ढैय्या, साढ़ेसाती तो वे पूजा के साथ-साथ दशरथकृत शनि स्तोत्र का भी पाठ कर सकते हैं।

Written By: Shailendra Tiwari @@Shailendra_jour
Published : Jun 20, 2025 14:24 IST, Updated : Jun 20, 2025 14:24 IST
shani dev
Image Source : INDIA TV शनिवार के उपाय

शनिवार का दिन शनि देव को समर्पित माना गया है, ऐसे में इस दिन विशेष रूप में शनिदेव की पूजा और अर्चना की जाती है। शनि देव को न्याय का देवता कहा जाता है, माना जाता है कि वह मनुष्य को उसके कर्मों के हिसाब से फल देते हैं। हर शनिवार लोग शनिदेव के मंदिर जाते हैं और सरसों का तेल का दीया जलाते हैं। वहीं, जिन पर शनि की ढैय्या और साढ़ेसाती चल रही होती है वह भी शनि की पूजा करते रहते हैं, ऐसे में पूजा करते समय जातकों को दशरतकृत शनि स्तोत्र का पाठ जरूर करना चाहिए।

दशरतकृत शनि स्तोत्र

दशरथ उवाच:

प्रसन्नो यदि मे सौरे ! एकश्चास्तु वरः परः॥

रोहिणीं भेदयित्वा तु न गन्तव्यं कदाचन्।
सरितः सागरा यावद्यावच्चन्द्रार्कमेदिनी॥

याचितं तु महासौरे ! नऽन्यमिच्छाम्यहं।
एवमस्तुशनिप्रोक्तं वरलब्ध्वा तु शाश्वतम्॥

प्राप्यैवं तु वरं राजा कृतकृत्योऽभवत्तदा।
पुनरेवाऽब्रवीत्तुष्टो वरं वरम् सुव्रत॥

स्तोत्र:

नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:॥1॥

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते॥2॥

नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते॥3॥

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने॥4॥

नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च॥5॥

अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते॥6॥

तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:॥7॥

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥8॥

देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:॥9॥

प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ॥10॥

दशरथ उवाच:

प्रसन्नो यदि मे सौरे ! वरं देहि ममेप्सितम्।
अद्य प्रभृति-पिंगाक्ष ! पीडा देया न कस्यचित्॥

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

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