Thursday, April 25, 2024
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हिंदू पुरुष के साथ लिव इन में रह रही थी शादीशुदा मुस्लिम महिला, हाईकोर्ट ने बताया 'हराम'

एक महिला जो पहले से विवाहित होकर दूसरे हिंदू पुरुष के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रह है, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उसके इस रिश्ते को शरियत के प्रावधानों का हवाला देते हुए हराम बताया है।

Swayam Prakash Edited By: Swayam Prakash @swayamniranjan_
Updated on: March 02, 2024 9:50 IST
allahabad high court- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुस्लिम महिला की याचिका खारिज

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए एक पहले से विवाहित मुस्लिम महिला के हिंदू पुरुष के साथ लिव इन रिलेशनशिप को शरियत के हिसाब से हराम बताया है। हिंदू पुरुष के साथ रह रही एक शादीशुदा मुस्लिम महिला को सुरक्षा देने से इनकार करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि कानूनी रूप से विवाहित मुस्लिम महिला शादीशुदा जिंदगी से बाहर नहीं जा सकती और शरियत के मुताबिक, किसी अन्य व्यक्ति के साथ उसका ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रहना जिना (व्यभिचार) और हराम माना जाएगा। 

कोर्ट ने शरियत के प्रावधानों का दिया हवाला

दरअसल, महिला ने अदलात से अपने पिता और रिश्तेदारों से अपने और पुरुष साथी को जान का खतरा बताते हुए सुरक्षा की मांग की थी जिसे खारिज करते हुए जस्टिस रेनू अग्रवाल की पीठ ने कहा कि महिला के “आपराधिक कृत्य” का इस अदालत द्वारा समर्थन नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा, “प्रथम याचिकाकर्ता (महिला) मुस्लिम कानून (शरियत) के प्रावधानों के विपरीत दूसरे याचिकाकर्ता (लिव इन पार्टनर) के साथ रह रही है। मुस्लिम कानून में विवाहित महिला शादीशुदा जिंदगी से बाहर नहीं जा सकती। इसलिए मुस्लिम महिला के इस कृत्य को जिना और हराम के तौर पर परिभाषित किया जाता है।” 

दूसरी पत्नी के साथ रह रहा है महिला का पति

सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा, “याचिकाकर्ता महिला ने अपने पति से तलाक के संबंध में उचित अधिकारी से कोई डिक्री (व्यवस्था) नहीं ली है।” इस मामले के तथ्यों के मुताबिक, याचिकाकर्ता का विवाह मोहसिन नाम के व्यक्ति से हुआ था जिसने दो साल पहले दूसरी शादी कर ली और वह अपनी दूसरी पत्नी के साथ रह रहा है। इसके बाद पहली पत्नी (याचिकाकर्ता) अपने मायके चली गई, लेकिन पति द्वारा गाली गलौज करने की वजह से वह एक हिंदू व्यक्ति के साथ रहने लगी। अदालत ने 23 फरवरी के अपने निर्णय में कहा कि चूंकि मुस्लिम महिला ने धर्म परिवर्तन के लिए संबंधित अधिकारी के पास कोई आवेदन नहीं किया है और साथ ही उसने अपने पति से तलाक नहीं लिया है, वह किसी तरह की सुरक्षा की पात्र नहीं है। 

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