Saturday, April 20, 2024
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‘यूज एंड थ्रो’ की नीति पर चल रहा ड्रेगन, कई एशियाई व अफ्रीकी देशों का विदेशी मुद्रा भंडार हुआ खाली

चीन डॉलर डिप्लोमेसी से एशिया के गरीब देशों को अपने मकड़जाल में फंसा रहा है। इसका ताजा उदाहरण श्रीलंका और पाकिस्तान हैं। वह एशियाई व गरीब अफ्रीकी देशों को के साथ ‘यूज एंड थ्रो’ की नीति अपनाता है। इस नीति की अमेरिका कई बार आलोचना कर चुका है।

IndiaTV Hindi Desk Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: April 14, 2022 12:04 IST
China President, Jinping- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO China President, Jinping

चीन डॉलर डिप्लोमेसी से एशिया के गरीब देशों को अपने मकड़जाल में फंसा रहा है। इसका ताजा उदाहरण श्रीलंका और पाकिस्तान हैं। चीन ने कर्ज में डूबे पाकिस्तान को फिर लोन देने में कोई रुचि नहीं दिखाई है। पा​किस्तान ने मार्च में ही 4 बिलियन डॉलर चीन को चुकाए थे। वहीं श्रीलंका भी कर्ज की चपेट में है। अमेरिका चीन की कर्ज देकर कंगाल करने की नीति पर उसकी कई बार आलोचना कर चुका है। 

श्रीलंका पर चीन का कितना कर्ज?

श्रीलंका के ऊपर फिलहाल 45 अरब डॉलर से ज्यादा का विदेशी कर्ज हो गया है। यहां कोलंबो से गॉल की तरफ जाने वाली चीनी सड़क भले ही मखमली चादर में लिपटी हो, लेकिन वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक इस देश का विदेशी कर्ज साल 2019 में जीडीपी का 70 फीसदी तक पहुंच गया, जबकि 2010 में यह केवल 39% था। श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार 5 अरब डॉलर से घटकर 1 अरब डॉलर का रह गया है। श्रीलंका के ऊपर 5 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज़ है, जिसमें अकेले चीन का हिस्सा करीब 20 % है।

चीनी सामान के बारे में अक्सर कहा जाता है कि यह ‘यूज एंड थ्रो’ है, लेकिन चीन के इस कर्ज के मकड़जाल में कई कई देश घिर कर अब अपना सिर पीट रहे हैं। इनमें पाकिस्तान, नाइजीरिया, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, मलेशिया, यूएई और सिंगापुर जैसे देश भी शामिल हैं। 100 देशों को ‘बेल्ट एंड रोड’ योजना से जोड़ने का सपना सजाने वाले चीन ने कई देशों की नींद उड़ा दी है। अमेरिका के डॉलर डिप्लोमेसी जहां आर्थिक रूप से कमजोर देशों को अपने पक्ष में करने की थी, वहीं चीन का कर्ज़ अपने दोस्तों को भी कंगाल बनाकर छोड़ता है। इसका सबसे ताजा उदाहरण श्रीलंका है।

श्रीलंका बीते दो दशक से चीन से आर्थिक मदद ले रहा था। हालांकि, श्रीलंका सरकार को लगातार विशेषज्ञों और विरोधियों ने चेतावनी भी दी थी, लेकिन अब हालत यह है कि श्रीलंका चीन के कर्ज में इस कदर डूबा है कि उसकी सड़कों पर आंदोलन हो रहे हैं। रोजमर्रा की चीजें दुकानों से गायब हैं। डीजल की बिक्री बंद है। पेट्रोल की कीमतें आसमान से भी ऊपर पहुंच चुकी है। देश भर में 15 -15 घंटे बिजली की कटौती की जा रही है। केरोसिन तेल के लिए हजारों लोग कतार में खड़े हैं।

चीनी कर्ज का महाजंजाल

2009 में तमिल अलगाववादियों के साथ संघर्ष खत्म होने के बाद श्रीलंका ने अपने विकास के लिए चीनी कर्ज़ का सहारा लिया। LTTE से संघर्ष के दौरान श्रीलंका भले ही आर्थिक तौर पर बच गया हो उसके बाद चीन ने उसे अपने चंगुल में फंसा लिया। श्रीलंका को अपना हंबनटोटा पोर्ट को 99 साल के लिए 2017 में चीन को सौंपना पड़ा, क्योंकि वह चीनी कर्ज नहीं उतार पाया।

श्रीलंका का बुरा हाल

हांगकांग पोस्‍ट की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बीच श्रीलंका की यदि बात की जाए तो कोरोना महामारी ने यहां के पर्यटन उद्योग की कमर तोड़ने का काम किया, जिसका यहां की अर्थव्‍यवस्‍था में एक अहम योगदान रहा है। पर्यटन यहां पर विदेशी मुद्रा कमाने का अहम जरिया रहा है। चीन के कर्ज के जाल में फंसकर श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार खाली होता चला गया।

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