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दिल्ली: 3 साल तक कलर ब्लाइंड व्यक्ति चलाता रहा सरकारी बस, हाईकोर्ट ने लगाई फटकार

दिल्ली परिवहन निगम द्वारा कलर ब्लाइंड व्यक्ति की चालक के पद पर नियुक्ति किए जाने के मामले में हाईकोर्ट ने फटकार लगाई है। वहीं हाईकोर्ट ने डीटीसी से पूछा है कि वह इस तरह की लापरवाही कैसे कर सकती है।

Edited By: Amar Deep
Published : Jan 23, 2024 10:26 IST, Updated : Jan 23, 2024 16:11 IST
DTC की लापरवाही पर हाईकोर्ट ने मांगा जवाब।- India TV Hindi
Image Source : FILE DTC की लापरवाही पर हाईकोर्ट ने मांगा जवाब।

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली परिवहन निगम (DTC) की लापरवाही को लेकर जमकर फटकार लगाई है। हाईकोर्ट ने DTC से पूछा है कि उसने कैसे एक वर्णांध (कलर ब्लाइंड) व्यक्ति को चालक नियुक्त कर दिया और उसे तीन साल तक बस चलाने की अनुमति दी। न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह ने कहा कि मामला बेहद गंभीर है क्योंकि इसमें जन सुरक्षा शामिल है और DTC की ओर से की गई यह ‘लापरवाही’ बहुत निराशाजनक है। बता दें कि कलर ब्लाइंड व्यक्ति रंगों की पहचान नहीं कर पाते। इसमें विशेषकर हरे और लाल रंग के बीच भेद पर पाना मुश्किल होता है।

कोर्ट के जज ने जताया अफसोस

न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह ने ‘मामलों की खेदजनक स्थिति’ पर अफसोस जताते हुए DTC अध्यक्ष से उचित जांच के बाद एक व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने और 2008 में की गई भर्ती के लिए जिम्मेदार अधिकारी का विवरण बताने को कहा। अदालत ने एक कलर ब्लाइंड चालक की सेवाओं से संबंधित DTC की याचिका पर यह आदेश पारित किया, जिसे जनवरी 2011 में एक दुर्घटना के कारण बर्खास्त कर दिया गया था। अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि ‘‘याचिकाकर्ता प्राधिकार को यह सुनिश्चित करने में उपयुक्त सावधानी और सतर्कता बरतनी चाहिए थी कि उसका चालक उक्त पद पर नियुक्त होने के लिए सभी मानकों के अनुरूप है। इसलिए, यह न्यायालय अब इस तथ्य से अवगत होना चाहता है कि याचिकाकर्ता विभाग ने जन सुरक्षा पर विचार किए बिना प्रतिवादी को क्यों और किन परिस्थितियों में नियुक्त किया था क्योंकि इस तरह के कार्यों से सार्वजनिक सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।’’ 

नियुक्ति के दौरान लगाया गया था प्रमाण-पत्र

अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि ‘‘यह बहुत भयावह स्थिति है कि प्रतिवादी को याचिकाकर्ता विभाग में चालक के रूप में नियुक्त किया गया और 2008 में उसकी नियुक्ति किए जाने के बाद से 2011 तक, यानी तीन सालों तक विभाग की बसें चलाने की अनुमति दी गई।’’ यह पूछे जाने पर कि भर्ती के समय वर्णांधता से पीड़ित एक व्यक्ति को चालक कैसे नियुक्त किया गया तो अदालत को बताया गया कि यह गुरु नानक अस्पताल द्वारा जारी चिकित्सा प्रमाण-पत्र के आधार पर किया गया था। विभाग की ओर से यह भी कहा गया कि कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित 100 से अधिक लोगों को नियुक्त किया गया था, जिसके चलते 2013 में एक स्वतंत्र मेडिकल बोर्ड का गठन करना पड़ा था।

(इनपुट- भाषा)

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