Saturday, April 20, 2024
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कबाड़ का काम करने वाले के बेटे ने हासिल की बड़ी उपलब्धि, 9वीं बार में मेडिकल प्रवेश परीक्षा में सफल

अन्य उम्मीदवारों के विपरीत, 26 वर्षीय अरविंद कुमार के लिए मेडिकल कॉलेज में दाखिले के लिए अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करना बस केवल एक सपना नहीं था बल्कि उन लोगों को जवाब देने का एक तरीका था जिनके हाथों उसके परिवार ने वर्षों से अपमान झेला।

IndiaTV Hindi Desk Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: October 25, 2020 19:33 IST
Son of Scrap worker succeeds in medical entrance examination in ninth time- India TV Hindi
Image Source : PTI Son of Scrap worker succeeds in medical entrance examination in ninth time

कोटा (राजस्थान): अन्य उम्मीदवारों के विपरीत, 26 वर्षीय अरविंद कुमार के लिए मेडिकल कॉलेज में दाखिले के लिए अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करना बस केवल एक सपना नहीं था बल्कि उन लोगों को जवाब देने का एक तरीका था जिनके हाथों उसके परिवार ने वर्षों से अपमान झेला। उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के निवासी अरविंद का कहना है कि उसका सपना डॉक्टर बनने का था जबकि कबाड़ी का काम करने वाले उसके पिता भिखारी को अपने काम एवं नाम के चलते लगातार गांव वालों से अपमानित होना पड़ता था। हालांकि यह सफलता इतनी आसानी से नहीं मिली। 

वह पहली बार 2011 में ऑल इंडिया प्री-मेडिकल टेस्ट (एआईपीएमटी) में शामिल हुआ था जिसके स्थान पर अब राष्ट्रीय अर्हता -सह प्रवेश परीक्षा (नीट) आ गयी है। अरविंद ने कहा कि इस साल नौवें प्रयास में उसे यह सफलता मिली है , उसने अखिल भारतीय स्तर पर 11603 रैंक हासिल की है और अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी में उसकी रैंक 4,392 है। उसने कहा कि वह कभी भी मायूस नहीं हुआ। 

उसने कहा, ‘‘मैं नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदलने तथा उससे ऊर्जा एवं प्रेरणा लेने की मंशा रखता हूं।’’ उसने कहा कि उसकी इस सफलता का श्रेय उसके परिवार, आत्मविश्वास और निरंतर कठिन परिश्रम को जाता है। उसके अनुसार उसके पिता भिखारी कक्षा पांचवीं तक पढ़े-लिखे हैं और मां ललिता देवी अनपढ़ हैं। 

अरविंद अपने पिता को असामान्य नाम की वजह से अपमानित होते देख बड़ा हुआ। उसके पिता काम के वास्ते परिवार को छोड़कर दो दशक पहले जमशेदपुर के टाटानगर चले गये थे। कुछ साल पहले अपने तीन बच्चों की अच्छी शिक्षा-दीक्षा के लिए भिखारी अपने परिवार को गांव से कुशीनगर शहर ले आये जहां अरविंद ने महज 48.6 फीसदी प्राप्तांक से दसवीं कक्षा पास की। बारहवीं कक्षा में उसे 60 फीसदी अंक मिले और तभी उसके अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए डॉक्टर बनने का ख्याल आया। 

अरविंद के पिता ने जमशेदपुर के टाटानगर से फोन पर बताया कि उनके बेटे के कोटा में रहने का खर्च पूरा करने के लिए उन्हें रोजाना 12 से 15 घंटे तक काम करना पड़ता था। भिखारी ने कहा, '' मेरे बेटे की पढ़ाई का खर्च पूरा करने लायक कमाने के लिए मैं रोजाना 12 से 15 घंटे काम करता था और छह महीने में केवल एक बार ही परिवार के पास बेहद कम समय के लिए कुशीनगर जा पाता था।'' 

उन्होंने कहा, '' मेरे बेटे अरविंद ने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की प्रतिबद्धता को साबित कर दिया है। मुझे उस पर गर्व है।'' पिता ने कहा कि हर प्रयास में बेहतर अंक लाने के लिए उसका भाई अमित भी अरविंद को लगातार प्रोत्साहित करता रहा और सबसे पहले अमित ने ही उसे कोटा जाकर कोचिंग लेने का सुझाव दिया था। अरविंद ने कहा, ''मैं बहुत खुश हूं और मेरे परिवार को मुझ पर गर्व है क्योंकि 1500-1600 लोगों की आबादी वाले गांव में, मैं पहला डॉक्टर बनने जा रहा हूं।'' अरविंद को गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में दाखिले की पूरी उम्मीद है और वह हड्डी रोग विशेषज्ञ बनना चाहते हैं।

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