
कभी परदे पर किरदारों को जिया, कभी कैमरे के पीछे कहानियां गढ़ीं, लेकिन अब जिंदगी ने तनिष्ठा चटर्जी को एक ऐसी स्क्रिप्ट सौंप दी है, जिसे जीना आसान नहीं, फिर भी वो इसे पूरे जज्बे के साथ निभा रही हैं। तनिष्ठा, एक अभिनेत्री, निर्देशक और सबसे बढ़कर, एक मां। अपने पिता को कैंसर से खोए हुए अभी एक साल भी नहीं हुआ था कि जिंदगी ने एक और कठोर मोड़ ले लिया। महज चार महीने पहले उन्हें पता चला कि उन्हें मेटास्टेटिक ब्रेस्ट कैंसर है, वो भी स्टेज IV। ये ठीक वैसा है जैसे किसी फिल्म की कहानी अंधेरे में चली जाए। वो एक फिल्म की शूटिंग कर रही थीं, 'एक रुका हुआ फैसला' और उसी दौरान उन्हें अपनी ही जिंदगी का सबसे कठिन फैसला लेना पड़ा। तनिष्ठा कहती हैं, 'पहली बार, मैं थक गई हूँ... मजबूत होने से।'
पिता की कैंसर से हुई मौत और फिर...
पिछले साल जब पिता चले गए, उनके शोक में डूबने का भी वक्त न मिला। मां 70 साल की और 9 साल की बेटी की जिम्मेदारी उनके कंधों पर थी। वो बताती हैं, 'पांच दिन में मैं शूटिंग पर लौट गई थी, क्योंकि रुकने का समय नहीं था। पापा के पसंदीदा गाने सुनकर खुद को याद दिलाती थी कि आगे बढ़ना है।' लेकिन जब उन्हें खुद के कैंसर का पता चला तो सारा आत्मबल जैसे क्षणभर के लिए ढह गया। उनकी आवाज थरथराती है, लेकिन आंखों में फिर भी उम्मीद की चमक है, 'मैंने सोचा, क्यों? मेरे साथ ही क्यों? क्या ये कर्म है?'
एक मां का सबसे कठिन निर्णय
सिंगल मदर होने के नाते एक और फैसला उन्हें झकझोर गया। उन्हें अपनी मासूम सी बेटी को अमेरिका अपनी बहन के पास भेजना पड़ा। तनिष्ठा नहीं चाहती थीं कि उनकी बेटी उन्हें कमजोर देखे। न ही वो चाहती थीं कि उसका बचपन डर और असुरक्षा में बीते। उन्होंने कहा, 'वो सोचती है मैं सुपरवुमन हूं और मैं चाहती हूं कि वो ऐसा ही सोचती रहे। कुछ लोग मानते हैं कि बच्चों को सब कुछ बता देना चाहिए, लेकिन मैं उसे बचाना चाहती थी, जैसे हर मां चाहती है।'
जब मजबूत न होना भी जरूरी होता है
इलाज शुरू हुआ तो डॉक्टरों ने कहा किसी भरोसेमंद को साथ लाओ, कागजात पर हस्ताक्षर करने होंगे। मां और बेटी इस भूमिका में नहीं थीं। तब बहन ने कहा, 'अब समय है मदद मांगने का।' और यहीं पर असली जिंदगी की ‘कास्ट’ सामने आई दोस्त, जो परिवार से कम नहीं। शबाना आजमी, ऋचा चड्ढा, कोंकणा सेन शर्मा, विद्या बालन, दिव्या दत्ता, उर्मिला मातोंडकर और दीया मिर्जा, ये नाम सिर्फ सिनेमा के नहीं, बल्कि तनिष्ठा के सहारे का हिस्सा बन गए। कीमोथेरेपी के दौरान उनके साथ रहे और उन्हें कभी अकेला महसूस नहीं होने दिया।
विदेशी फिल्मों में भी कर चुकी हैं काम
तनिष्ठा कहती हैं, 'सब कुछ बिखर गया है, लेकिन मैं टूटी नहीं हूं।' उनके शब्दों में दर्द नहीं, हिम्मत बोलती है। वो कहती हैं, 'सबसे बड़ी सीख जो मैंने पाई, वो है इंसानियत। लोग परवाह करते हैं। आपको बस उन्हें पुकारना होता है।' तनिष्ठा चटर्जी की कहानी न सिर्फ कैंसर से जूझने की है, बल्कि यह एक मां, एक बेटी, एक इंसान की असाधारण लड़ाई की कहानी है, जो कैमरे की नहीं, जिंदगी की सबसे सच्ची कहानी है। बता दें, तनिष्ठा राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली अभिनेत्री हैं। अगर तनिष्ठा चटर्जी के वर्कफ्रंट की बात करें तो उन्होंने हिंदी सिनेमा के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय फिल्मों में भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है। उन्होंने न सिर्फ विविध किरदार निभाए, बल्कि अपने अभिनय से हर बार दर्शकों और आलोचकों को प्रभावित किया।
इन फिल्मों में किया काम
फिल्म 'देख इंडियन सर्कस' में उनके शानदार अभिनय के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार (नेशनल अवॉर्ड) से सम्मानित किया गया था। तनिष्ठा ने 'बस यूं ही', 'शेडोज ऑफ टाइम', 'बाहर आना', 'जल', 'गुलाब गैंग', 'मानसून शूटआउट', 'सिद्धार्थ', 'भोपाल: प्रेयर फॉर रेन', 'आई लव न्यू ईयर', 'गौर हरी दास्तान' और 'बियॉन्ड द क्लाउड्स' जैसी कई फिल्मों में दमदार भूमिकाएं निभाईं हैं। साल 2024 में रिलीज हुई फिल्म 'द स्टोरीटेलर' में भी तनिष्ठा एक अहम भूमिका में नजर आईं, जिसने एक बार फिर उनके अभिनय के दायरे और गहराई को साबित किया। तनिष्ठा चटर्जी का करियर हमेशा से सीमाओं से परे जाकर अलग और चुनौतीपूर्ण कहानियों को चुनने का उदाहरण रहा है।
बेटी को लिया था गोद
बता दें, तनिष्ठा ने उम्र 44 साल है और उन्होंने शादी नहीं की है, लेकिन उनकी एक बेटी जरूर है। साल 2019 में तनिष्ठा ने एक बेटी को गोद लिया था। उन्होंने बेटी को गोद लेने के बाद कहा था, 'मैं शादीशुदा नहीं हूं, लेकिन अब मेरा एक बच्चा है। मैं अपने कई पुरुष मित्रों और पूर्व प्रेमियों से कहती हूं कि किसी लड़के के साथ वक्त गुजारने से बेहतर है कि मैं एक बच्चा गोद ले लूं। मैं 16 साल की उम्र से ही गोद लेने के बारे में सोच रही थी। मैं बहुत छोटी उम्र से ही स्पष्ट थी कि मैं गोद लेना चाहती हूं। जब आप छोटी उम्र में ये बातें कहते हैं तो लोग इसे यह कहते हुए खारिज कर देते हैं, 'यह तो सिर्फ ऐसा बोल रही है। उस समय, मुझे भी लगा कि मैं बहुत सख्त हो रही हूं और यह एक सामाजिक कारण के बारे में है, क्योंकि हमारे देश में बहुत सारे परित्यक्त बच्चे हैं।'