Friday, April 19, 2024
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Birthday Special: कौन हैं हिंदी सिनेमा के जनक? जिनके नाम पर दिया जाता है सिनेमा का सर्वश्रेष्ठ 'दादा साहब फाल्के' अवॉर्ड

Dadasaheb Phalke के फिल्मी करियर के शुरू होने में फिल्म 'द लाइफ ऑफ क्राइस्ट' का बड़ा योगदान है क्योंकि यही वो फिल्म थी जिसे मुंबई के थिएटर में देखने के बाद उन्होंने फिल्में बनाने की ठानी थी।

Akanksha Tiwari Written By: Akanksha Tiwari @akankshamini
Updated on: April 30, 2023 7:25 IST
Dadasaheb Phalke birth anniversary- India TV Hindi
Image Source : TWITTER/FILMHISTORYPIC Dadasaheb Phalke birth anniversary

हिंदी सिनेमा के जनक कहे जाने वाले दादा साहब फाल्के की आज बर्थ एनिवर्सरी है। 30 अप्रैल 1970 को जन्मे Dadasaheb Phalke एक निर्देशक होने के साथ-साथ जाने-माने निर्माता और स्क्रीन राइटर भी थे। दादा साहब फाल्के का असली नाम धुंडिराज गोविंद फाल्के था। दादा साहब फाल्के ने अपने 19 साल के फिल्मी करियर में 95 फीचर फिल्में और 26 शॉर्ट फिल्में बनाईं। बचपन से ही कला का शौक रखने वाले दादा साहब फाल्के के पिता शास्त्री फाल्के संस्कृत के विद्धान थे।

दादा साहब फाल्के की फिल्मी शुरुआत

दादा साहब फाल्के को बचपन से कला में रुचि थी ऐसे में उन्होंने मुंबई के जेजे कॉलेज ऑफ आर्ट और बड़ौदा के कलाभवन में इसकी बारीकियां सीखीं। इसके बाद उन्होंने फोटोग्राफर के तौर पर काम किया लेकिन ज्यादा समय तक उन्हें ये काम रास नहीं आया और आखिर में वह अपने दोस्तों से पैसे लेकर लंदन गए और वहां से फिल्म बनाने की बारीकियां सीखीं और इसके लिए जरूरत की मशीनें लेकर भारत वापस आ गए। भारत आकर उन्होंने 'फाल्के फिल्म कंपनी' बनाई और पहली फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' बनाने की शुरुआत की। फिल्म बनाने में उन्हें परिवार का भी साथ मिला और करीब 6 महीने की मेहनत के बाद फिल्म बन गई। उस जमाने में 15000 की लागत से बनी इस फिल्म में काम करने वाले लोगों के लिए दादा साहब फाल्के की पत्नी खुद ही खाना बनाती थीं। फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' 1913 में रिलीज हुई और पहली बार मुंबई के कोरनेशन सिनेमा हॉल में  दिखाई गई, जो कि सुपरहिट साबित हुई।

दादा साहब फाल्के अवॉर्ड की शुरुआत

दादा साहब फाल्के के सिनेमा में एतिहासिक योगदान के लिए भारत सरकार ने साल 1969 में 'दादा साहब फाल्के' अवार्ड की शुरुआत हुई और पहला पुरस्कार अभिनेत्री देविका रानी चौधरी को दिया गया। दादा साहब फाल्के के फिल्मी करियर की आखिरी फिल्म 'गंगावतरण' थी जो साल 1937 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म को दर्शकों का प्यार नहीं मिला और बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप साबित हुई। जिसके बाद से उन्होंने फिल्में बनाना छोड़ दिया। हिंदी सिनेमा के महान फिल्मकार दादा साहब फाल्के ने देश की आजादी से पहले 16 फरवरी 1944 को दुनिया को अलविदा कह दिया।

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