
नई दिल्लीः समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव यूपी में 2027 में होने के वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे हैं। सपा प्रमुख पीडीए का नारा देकर समाज के सभी वर्गों को साध रहे हैं। सियासी तौर पर कमजोर हो चुकी मायावती के आधार वोट दलितों पर सपा की नजर है।
सपा ने मनाई अंबेडकर की जयंती
अखिलेश यादव की नजर मायावती के आधार वोट दलित पर है। इसकी झलक दिखी साबा साहेब भीम राम अंबेडकर की जयंती पर। सपा के प्रमुख खासकर दलित नेता प्रदेश के सभी जिलों में अंबेडकर की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में शिरकत कर मायावती को टेंशन दे दिए हैं। अभी फिलहाल के दिनों पर नजर डाले तो सपा के मुस्लिम और दलित नेता नीले रंग के गमछे में अंबेडकर जयंती से जुड़े कार्यक्रम में शिरकत करते देखे गए। सपा के नेता दलितों को लेकर लगातार सरकार और बीजेपी को घेर रहे हैं। सपा सांसद प्रिया सरोज समेत कई नेता अंबेडकर की जयंती पर कार्यक्रम की तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर शेयर किए।
अखिलेश ने किया अंबेडकर की प्रतिमा का अनावरण
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने 12 अप्रैल को इटावा में बाबसाहेब अंबेडकर की मूर्ति का अनावरण किया। इस अवसर पर अखिलेश यादव ने कहा कि ये सरकार बनाने से ज़्यादा संविधान और आरक्षण बचाने का निर्णायक संघर्ष है, जिसमें पीडीए की बढ़ती एकता और ताक़त से नफ़रती-नकारात्मक प्रभुत्ववादियों को अपनी सत्ता जाती दिख रही है। भाजपा का जो पतन लोकसभा चुनाव में शुरू हुआ था, वो 27 के विधानसभा में पूर्ण हो जाएगा।
सपा के दलित नेता एक्टिव
सपा के दलित नेता एक्टिव हैं और नीले रंग का गमछा लेकर दलितों में जा रहे हैं और कार्यक्रम कर रहे हैं। पिछले कुछ महीनों से सपा के नेताओं के बयान को देखें तो वे पीडीए के साथ दलितों की बात ज्यादा कर रहे हैं। सपा के दलित नेताओं सांसद अवधेश प्रसाद, रामजीलाल सुमन, सांसद प्रिया सरोज, विधायक तूफानी सरोज, इंद्रजीत सरोज, राम अचल राजभर दलित समाज में गहरी पैठ रखते हैं। ये सभी दलितों से जुड़े मुद्दों को प्रमुख से उठा रहे हैं।
अखिलेश के करीब नजर आते हैं सपा के दलित नेता
सपा प्रमुख अखिलेश यादव तो संसद में अयोध्या के सांसद अवधेश प्रसाद को अपने पास ही बैठाते हैं। अगर आपने नोटिस किया होगा तो आप देखेंगे अखिलेश के अगल-बगल दलित नेता खड़े मिलेंगे। अभी हाल में ही कथित विवादित बयान के बाद घिरे रामजीलाल सुमन के साथ सपा खड़ी नजर आई। यहां तक कि अखिलेश यादव ने खुलकर रामजीलाल सुमन का साथ दिया। सपा नेताओं ने यह भी कहना शुरू किया कि दलित होने की वजह से रामजीलाल को निशाना बनाया जा रहा है। हाल के ही दिनों में इंद्रजीत सरोज और रामजीलाल के बयान दलित राजनीति से जोड़कर देखे जा रहे हैं।
अखिलेश ने मायावती के करीबी रहे दद्दू प्रसाद को सपा में शामिल कराया
दलित वोटर्स पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए इरादे से अखिलेश यादव मायावती के करीबी रहे नेताओं को सपा में शामिल करा रहे हैं। इसी कड़ी में पूर्व कैबिनेट मंत्री रहे दद्दू प्रसाद को अप्रैल के पहले सप्ताह में ही सपा शामिल कराया गया। इस मौके पर अखिलेश यादव ने खुद दद्दू प्रसाद का पार्टी में स्वागत किया। दद्दू प्रसाद तीन बार मानिकपुर सुरक्षित सीट से विधायक भी रहे।
मायावती के करीबी नेताओं को साध रहे हैं अखिलेश यादव
कभी मायावती के करीबी रहे बसपा के कई सीनियर नेताओं को अखिलेश यादव सपा में शामिल करा चुके हैं। रामअचल राजभर, इंद्रजीत सरोज, लालजी वर्मा, बाबू सिंह कुशवाहा और दद्दू प्रसाद समेत कई नेता सपा में शामिल हो चुके हैं।
लोकसभा चुनाव में सपा को मिला था दलितों का साथ
अखिलेश यादव ने पीडीए ( पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक, अगड़ा) की राजनीति करके 2024 के लोकसभा चुनाव में 37 सीटें जीती जोकि सपा के इतिहास में सबसे ज्यादा है। इतनी सीट तो मुलायम सिंह यादव सरकार में रहते हुए भी नहीं जीत पाए थे। पीडीए की रणनीति के तहत सपा में दलित नेताओं को तबज्जो भी दी जा रही है। लोकसभा चुनाव में सपा को दलितों का साथ भी मिला था। सपा से दलित नेता अवदेश प्रसाद, प्रिया सरोज, पुष्पेंद्र सरोज, नारायणदास अहिरवार, आर के चौधरी, दरोगा प्रसाद सरोज, छोटेलाल और रमाशंकर राजभर चुनाव जीतकर लोकसभा भी पहुंचे हैं।
मायावती को भी है एहसास
ऐसा नहीं है कि बसपा प्रमुख मायावती को अखिलेश यादव के सियासी कदम का एहसास नहीं है। तभी तो वह बीजेपी को कम सपा पर ज्यादा हमलावर रहती हैं। मायावती ने अब तो खुलकर कहना शुरू कर दिया है कि दलित सपा के नेताओं के बहकावे में न आएं। मायावती ने 17 अप्रैल को ट्वीट कर कहा कि ' सपा दलितों के वोटों के स्वार्थ की खातिर किसी भी हद तक जा सकती है। अतः दलितों के साथ-साथ अन्य पिछड़ों व मुस्लिम समाज आदि को भी इनके किसी भी बहकावे में नहीं आकर इन्हें इस पार्टी के भी राजनीतिक हथकण्डों का शिकार होने से ज़रूर बचना चाहिए।
मायावती ने 27 मार्च को सपा के खिलाफ एक और ट्वीट किया था। जिसमें उन्होंने लिखा था कि ' सपा अपने राजनैतिक लाभ के लिए अपने दलित नेताओं को आगे करके जो घिनौनी राजनीति कर रही है अर्थात् उनको नुकसान पहुंचाने में लगी है, यह उचित नहीं। दलितों को इनके सभी हथकण्डों से सावधान रहना चाहिये। आगरा की हुई घटना अति चिन्ताजनक।
बुरे दौर से गुजर रही है बसपा
बता दें कि यूपी में मायावती इस समय अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही हैं। यूपी के 2022 के चुनाव में बसपा को एक सीट मिली थी। जबकि लोकसभा चुनाव में बसपा के एक भी सांसद चुनकर नहीं आए। संसद के दोनों सदनों में बसपा का एक भी सांसद नहीं है। जबकि बसपा कभी राष्ट्रीय पार्टी हुआ करती थी। लोकसभा चुनाव में इस बार बसपा को मात्र 9.39 फीसदी ही वोट मिले थे। यह बसपा का अब तक का सबसे खराब वोट प्रतिशत है।