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धारा 377 की संवैधानिक वैधता पर सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को सुना सकता है फैसला

सुप्रीम कोर्ट आपसी रजामंदी से समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध घोषित करने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 377 की संवैधानिक वैधता को चुनौती वाली याचिकाओं पर फैसला गुरुवार को सुना सकता है।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated : September 05, 2018 23:33 IST
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नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट आपसी रजामंदी से समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध घोषित करने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 377 की संवैधानिक वैधता को चुनौती वाली याचिकाओं पर बहुप्रतीक्षित फैसला गुरुवार को सुना सकता है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ताओं सहित विभिन्न पक्षों को सुनने के बाद 17 जुलाई को अपना फैसला सुरक्षित रखा था। 

पहले याचिकाओं पर अपना जवाब देने के लिए स्थगनादेश मांगने वाले केन्द्र ने बाद में इस दंडात्मक प्रावधान की वैधता का मुद्दा अदालत के विवेक पर छोड़ दिया था। केन्द्र ने कहा था कि नाबालिगों और जानवरों के संबंध में दंडात्मक प्रावधान के अन्य पहलुओं को कानून में रहने दिया जाना चाहिए। धारा 377 ‘अप्राकृतिक अपराधों’ से संबंधित है जो किसी महिला, पुरुष या जानवरों के साथ अप्राकृतिक रूप से यौन संबंध बनाने वाले को आजीवन कारावास या दस साल तक के कारावास की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। 

धारा 377 का पहली बार मुद्दा एनजीओ ‘नाज फाउंडेशन’ ने उठाया था। इस संगठन ने 2001 में दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी और अदालत ने समान लिंग के दो वयस्कों के बीच यौन संबंधों को अपराध घोषित करने वाले प्रावधान को ‘‘गैरकानूनी’’ बताया था। हाईकोर्ट के 2009 के फैसले को शीर्ष अदालत ने 2013 में पलट दिया था और धारा 377 को बहाल किया था। 

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