Saturday, May 04, 2024
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BLOG: उनकी सोच?... अकेली लड़की वो भी इतनी रात को?

रोज़ाना मैं अपनी शाम की शिफ्ट खत्म कर अपने घर के लिए निकलती हूं तो एक सुकून होता है। बहुत अच्छी फीलिंग होती है... सबकी ऑफिस की शिफ्ट खत्म होने के बाद। सबकी बॉडी language से पता चल जाता है "finally its over for the Day"... मैं भी उस वक़्त को सबसे ज़्यादा

IndiaTV Hindi Desk IndiaTV Hindi Desk
Updated on: April 04, 2017 23:55 IST
Unsafe journey- India TV Hindi
Unsafe journey

रोज़ाना मैं अपनी शाम की शिफ्ट खत्म कर अपने घर के लिए निकलती हूं तो एक सुकून होता है। बहुत अच्छी फीलिंग होती है... सबकी ऑफिस की शिफ्ट खत्म होने के बाद। सबकी बॉडी language से पता चल जाता है "finally its over for the Day"...

मैं भी उस वक़्त को सबसे ज़्यादा एन्जॉय करती हूं क्योंकि वह मेरा अकेला ऐसा पल है जब मैं और मेरा म्यूजिक उसे ख़ास बनाते है। सुनसान सड़क पर बिना किसी ट्रैफिक के....पसंदीदा गानों के साथ गुज़रता वह पल बहुत बहुत अच्छा लगता है। लेकिन हर बार, हर रोज़ वो पल एक झटके में खत्म हो जाता है जब मुझे कोई देख लेता है कि यह लड़की रात को कहीं अकेले जा रही है...?

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रोज़ाना चौराहे पर रेड लाइट की वजह से रूकती हूं और आस-पास खड़ी गाड़ियों के लोगों पर जब गुनगुनातें हुए नज़रे जाती हैं तो सिर्फ मेरी तरफ देखती नज़रे कई सवाल खड़े कर देती है....साफ़ झलकता है उनकी नज़रों से....ये लड़की...इस वक़्त...अकेले ???? फिर अपनी घड़ी में वक़्त देखते....oh ! अकेली लड़की....न जाने क्यों उस वक़्त उनकी गाड़ी स्पीड नहीं ले पाती !

और अगर मैंने तेज़ स्पीड कर कार आगे निकाल ली तो......abeey तेरी.... ये मुझे ओवरटेक करेगी ??? एक तो लड़की ??? ऊपर से अकेले ???? और मुझसे आगे ????

चलिये मान लिया मेरा perception है गलत भी हो सकता है ??? लेकिन ऐसा सिर्फ एक बार नहीं, रोज़ाना वो सवाल हर उस आस-पास की गाड़ी में बैठे ड्राइवर, परिवार के साथ बैठे आदमी या अकेले ड्राइव करते लड़के की नज़रों में नज़र आते ही है !

चलिए रेड लाइट पर तो किसी तरह 120 सेकंड बीत जाते है लेकिन अगर पुलिस चेकिंग और बैरिकेटिंग में आप गाड़ियों की कतार में है और आगे जा रही बस या टेम्पो ट्रैवलर में एम्प्लाइज या लड़के है तब तो ज़ुबान पे ताला लगाना बेहतर है। एक लड़का खड़ा था.... दिख गया जाम में कि पीछे की कार में अकेली लड़की है....उसके बाद लास्ट सीट पर बैठे लड़कों की नज़र घुमी और आगे बैठे लड़कों ने खड़े होकर अटेंडेंस दर्शायी... अरे भाई देखें तो सही कौन है ?? वो भी इस वक़्त ??? अकेले ???

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और उसके बाद मुस्कुराते हुए, घूरते हुए चेहरे मजबूर करते है कि ज़ुबान खोलकर इन सबसे सिर्फ इतना पुछू की जनाब क्या हुआ....ऐसा क्या देख लिया....लेकिन मैं बेचारी अकली लड़की...मैं तो कुछ बोल के उन घूरती नज़रों को चुप भी नही करा सकती... लड़की हूं न इसलिए....क्या पता उसे लगे कि मैं उसे प्रोवोक कर रही हूं अरे भाई लड़का है कुछ भी सोच सकता है।

प्रॉब्‍लम सिर्फ सोच की है...क्या हुआ अगर अकेली लड़की जा रही है....वो अकेले इस वक़्त निकले तो बेचारा काम से लौट रहा होगा...वो लड़कों के साथ है तो घूमने टहलने निकला है...परिवार के साथ है तो ज़रूरी काम होगा और ड्राइवर है तो ड्यूटी पर तैनात है। लेकिन ये लड़की इस वक़्त अकेले क्यों ???

क्या वजह होगी ???

कहीं ये ???

तो फिर अकेले क्यों वो भी इतनी रात को ???

मैं नही जानती की आखिर क्यों मेरा नज़रिया ऐसे सवाल खड़ा करता है की रोज़ाना ये सफर मुझे असहज महसूस कराता हैं। क्यों आखिर में खुद को यकीन नही दिला पाती कि शायद इनकी सोच ऐसी न हो ??

एक बार कहीं पढ़ा था-

""दो आँखें है तुम्हारी....तकलीफ का उमड़ता हुआ समंदर..
इस दुनिया को जितनी जल्दी हो बदल देना चाहिए ""

(ब्‍लॉग लेखिका सुरभि आर शर्मा देश के नंबर वन चैनल इंडिया टीवी में न्‍यूज एंकर हैं) 

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