मृत्यु के अंतिम दिनों में भी उन्होंने अपना ध्यान करने की दिनचर्या को नहीं बदला। दमा और शुगर के अतिरिक्त उन्हें और भी शारीरिक रोगों ने घेर रखा था। उन्होंने अपने शिष्यों को कहा भी था की ये बीमारी मुझे 40 तक भी नहीं जीने देगी। ' 4 जुलाई, 1902 को बेलूर में रामकृष्ण मठ में उन्होंने ध्यानमग्न अवस्था में महासमाधि धारण कर प्राण त्याग दिए।
उनके शिष्यों और अनुयायियों ने उनकी स्मृति में वहाँ एक मंदिर बनवाया और समूचे विश्व में विवेकानंद तथा उनके गुरु रामकृष्ण के संदेशों के प्रचार के लिए 130 से अधिक केंद्रों की स्थापना की।
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