Saturday, May 04, 2024
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फ्री... फ्री... फ्री... के लॉलीपॉप में फंसा लोकतंत्र! जानिए क्या है मुफ्तखोरी की योजनाओं का खेल?

लोकलुभावन मुफ्त की योजनाओं से लोकतंत्र भी कमजोर होता है और अर्थतंत्र भी गड़बड़ा जाता है। जानिए कैसे मुफ्तखेरी की योजनाएं लोगों को आलसी बना रही है। कहां और कैसे हुई शुरुआत, कौनसी पार्टी है लोकलुभावन में सबसे आगे?

Deepak Vyas Edited by: Deepak Vyas @deepakvyas9826
Updated on: March 11, 2022 16:15 IST
Govt. Schemes- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO Govt. Schemes

कर्म ही पूजा मानने वाले देश में वोटों की राजनीति के चलते चुनावी वादों के रूप में मुफ्त में खाद्य सामग्री से लेकर दूसरी वस्तुएं बांटने का जो दौर चला है, ये साफ इशारा करता है कि इस देश का लोकतंत्र फ्री के लॉलीपॉप में अपना फंस गया है। लोकलुभावन मुफ्त की योजनाओं से लोकतंत्र भी कमजोर होता है और अर्थतंत्र भी गड़बड़ा जाता है। इसके बहुत से नुकसानों में से सबसे अहम यह होता है कि मुफ्तखोरी की आदत के चलते ही लोग आलसी होने लगे हैं। आज फसल काटने के समय मजदूर नहीं मिलता। दरअसल, इसकी व्यापक स्तर पर शुरुआत होती है मनरेगा से। यह योजना जिस उद्देश्य के लिए बनी थी, वो मकसद भले ही अच्छा था लेकिन इसकी परिणिति मुफ्तखोरी पर आकर टिक गई है। इसके बाद राजनीतिक पार्टियों ने सत्ता के लिए मुफ्त की योजनाओं को अपना सबसे बड़ा हथियार बना लिया। विभिन्न राज्यों में किसानों की कर्ज माफी से शुरू हुआ ये सिलसिला अब मुफ्त उपहारों में तब्दील हो चुका है।

दक्षिण के राज्यों से शुरू हुई मुफ्त की प्रलोभनकारी योजनाएं

दक्षिण के राज्यों में यह प्रवृत्ति सबसे पहले पनपी। साड़ी, प्रेशर कुकर से लेकर टीवी, वॉशिंग मशीन तक मुफ्त बांटी जाने लगी। जयललिता के राज में अम्मा कैंटीन खूब फली—फूली। लेकिन परिणाम यह हुआ कि अर्थव्यवस्था रसातल में जाने लगी। कालांतर में वहां सरकारों ने इस पर आंशिक ही सही अंकुश लगाया लेकिन यह प्रवृत्ति उत्तर के राज्यों में आ गई। मनरेगा के कारण खेती या अन्य कार्य के लिए मजदूर नहीं मिलते हैं।

सुविधा और प्रोत्साहन में अंतर

सुविधा और प्रोत्साहन की योजनाएं अलग-अलग होती हैं। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि केंद्र सरकार ने किसानों को 6 हजार रुपये प्रति वर्ष नकद देने की योजना लागू की है। वहीं दिल्ली सरकार ने मुफ्त बिजली और पानी देने का वादा किया। दोनों मुफ्त सुविधाएं हैं। अंतर है कि किसान को नकद राशि मिलने से उसका खेती के प्रति रुझान बढ़ता है और देश की खाद्य व्यवस्था सुदृढ़ होती है, जबकि बिजली मुफ्त बांटने से ऐसा लाभ नहीं मिलता। 

मुफ्त की योजनाओं का लॉलीपॉप देने में 'आप' सबसे आगे

यूपी चुनाव 2022 में भले ही बीजेपी जीत गई हो। लेकिन आप ने उत्तर प्रदेश में फ्री बिजली का पासा फेंका था। उसने इस बात की अनदेखी की कि यूपी पॉवर कारपोरेशन की वितरण कंपनियां पहले से 90 हजार करोड़ रुपये के घाटे में हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में 80 फीसदी उपभोक्ता बिजली का बिल नहीं दे रहे हैं और वर्तमान सरकार राजनीतिक दबाव में वसूली भी नहीं कर पा रही है। 

दिल्ली में भी 'फ्री' का प्रलोभन देकर सत्ता में आई थी 'आप' 

2015 में दिल्ली में फ्री बिजली और पानी के नाम पर सरकार बनी, तब से इसमें प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है। मुफ्त बस यात्रा योजना के बाद दिल्ली में डीटीसी को 1750 करोड़ का नुकसान हुआ। यही नहीं दिल्ली का राजकोषीय घाटा 2 साल में 55 गुना से ज्यादा बढ़ गया।  

कहीं वेनेजुएला न बन जाएं हम

यही हाल रहा तो हमारी हालत भी वेनेजुएला जैसी हो जाएगी। गौरतलब है कि वेनेजुएला हाल के वर्षों में घोर वित्तीय संकट से घिरा हुआ है। रोजमर्रा की जरूरत के लिए वहां मार-काट हो रही है। वहां के वर्तमान हालात के लिए मुफ्तखोरी ही जिम्मेदार है। एक समय था वेनेजुएला सबसे अमीर देशों की श्रेणी में था। पेट्रो उत्पादों के बदौलत देश में आ रही सम्पत्ति को सही इसे इस्तेमाल करने के बजाए वहां के शासकों ने जनता को मुफ्तखोरी की आदत डाल दी। अच्छे समय में वहां की सरकार ने जनता को सब कुछ फ्री दिया। जब दुनिया के सामने वित्तीय संकट आया तब वेनेजुएला के पास विदेशों से व्यापार के लिए पर्याप्त धन नहीं बचा। आज वह देश कंगाल हो चुका है। भारी कर्ज में डूबा हुआ है।

पंजाब में असर कर गया केजरीवाल का फ्री मॉडल

राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि पंजाब में केजरीवाल के फ्री के मॉडल पर मुहर लगी। पंजाब में आम आदमी पार्टी ने 300 यूनिट मुफ्त बिजली का वादा किया है। फ्री शिक्षा समेत कई तरह के वादे किए हुए हैं, इनमें खासतौर पर अनुसूचित जाति के बच्चों का ध्यान रखा जाएगा। हर महिला को प्रतिमाह एक हजार रुपये देने की घोषणा की गई। दवाइयां और सभी टेस्ट समेत इलाज मुफ्त करने के वादे के साथ ही हर व्यक्ति को हेल्थ कार्ड देने का वादा किया गया। जिसमें उसकी हर जानकरी दर्ज होगी। 16000 मोहल्ला क्लीनिक खोले जाएंगे। हर गांव में मोहल्ला क्लीनिक होगा। सरकारी अस्पतालों को ठीक किया जायगा।  बड़े स्तर पर नए अस्पताल खोले जाएंगे और किसी का रोड एक्सीडेंट होने पर पूरा इलाज सरकार करवाएगी।

राज्य सरकारों की फ्री राशन योजना ने भी किया प्रभावित

केंद्र सरकार ने कोरोना में फ्री राशत वितरण का ऐलान किया था। इस योजना को मार्च 2022 तक पूरे देश में चलाया जा रहा है। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने इस योजना को आगे बढ़ाने का फैसला किया। प्रदेश के लोगों को फ्री राशन योजना का लाभ देने के लिए सरकार 1200.42 करोड़ रुपये का खर्चा हर महीने वहन करेगी। इससे मार्च तक योगी सरकार पर करीब 4801.68 करोड़ रुपये का बोझ आ जाएगा। यही नहीं यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने विद्यार्थियों को फ्री स्मार्टफोन और टैबलेट वितरित किए थे। इससे पहले सपा सरकार ने भी यही किया था। केवल यूपी ही नहीं, एमपी, बिहार, राजस्थान हर राज्यों में मुफ्त की योजनाएं धड़ल्ले से चल रही हैं। यूपी के सीएम योगी ने फ्री राशन योजना की शुरुआत की। वहीं प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना  की शुरुआत की। जिसमें सरकार ने देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन दिया।

स्विटजरलैंड जैसे देशों से लेना चाहिए सीख

जून 2016 में स्विटजरलैंड सरकार ने अपने देश में बेसिक इनकम गारंटी मुद्दे पर जनमत संग्रह करावाया था। इसमें हर वयस्क नागरिक को बिना काम भी करीब डेढ़ लाख रुपये प्रतिमाह देने की पेशकश की गई। परंतु 77 फीसद नागरिकों ने मुफ्तखोरी को ठुकरा दिया। उन्होंने बेरोजगारी भत्ता नहीं रोजगार को चुना। भारत की जनता को भी ये समझना होगा कि खुशहाली मुफ्तखोरी में नहीं आत्मनिर्भर बनने में है। 

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