Friday, May 03, 2024
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पारसनाथ सम्मेद शिखर विवाद में अब आदिवासी भी कूदे, पहाड़ को बताया अपना धर्म स्थान, 10 जनवरी को जुटेंगे लोग

झारखंड स्थित सम्मेद शिखर पारसनाथ पहाड़ी पर आदिवासी संगठनों ने अपना दावा ठोंका है। इसके साथ ही आगामी 10 जनवरी को यहां देश भर के आदिवासियों से जुटने की अपील की गई है।

Pankaj Yadav Edited By: Pankaj Yadav @ThePankajY
Published on: January 07, 2023 23:34 IST
पारसनाथ सम्मेद शिखर - India TV Hindi
पारसनाथ सम्मेद शिखर

झारखंड स्थित सम्मेद शिखर पारसनाथ पहाड़ी के विवाद में अब आदिवासी संगठन और स्थानीय लोग भी कूद पड़े हैं। आदिवासी संगठनों ने पहाड़ी को अपना धरोहर और पूज्य स्थान बताते हुए इसपर दावा ठोंका है। धरोहर को बचाने के आह्वान के साथ आगामी 10 जनवरी को यहां देश भर के आदिवासियों से जुटने की अपील की गई है। खास बात यह कि इन संगठनों की अगुवाई झामुमो के वरिष्ठ विधायक लोबिन हेंब्रम कर रहे हैं। पहाड़ी के आस-पास के लगभग 50 गांवों के लोगों ने कहा है कि इसकी तराई में वे पीढ़ियों से रहते आए हैं और इसपर किसी खास समुदाय का अधिकार नहीं हो सकता।

जैन धर्म के लोग कर रहे थे विरोध-प्रदर्शन

सम्मेद शिखर पारसनाथ पहाड़ी को पर्यटन स्थल के रूप में नोटिफाई किए जाने के विरोध में देश-विदेश में जैन धर्मावलंबी लगातार प्रदर्शन कर रहे थे। इसके बाद बीते 5 जनवरी को केंद्र सरकार ने इस नोटिफिकेशन में संशोधन करते हुए यहां पर्यटन की सभी गतिविधियां स्थगित करने का आदेश जारी किया था। केंद्र सरकार ने यहां मांस-शराब की बिक्री पर रोक लगाने और इस स्थान की पवित्रता को अक्षुण्ण रखने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने के निर्देश भी राज्य सरकार को दिए हैं। अब आदिवासी संगठनों का कहना है कि इस स्थान पर भी सबसे प्राचीन समय से आदिवासी रहते आए हैं। यह पहाड़ हमारा मरांग बुरू है। मरांग का अर्थ होता है देवता और बुरू का अर्थ है पहाड़। सदियों से हम यहां अपने प्राचीन तौर-तरीकों से पूजा करते आए हैं। अगर केंद्र या राज्य सरकार के किसी भी आदेश के जरिए यहां के मूल निवासियों और आदिवासियों को इस स्थान पर जाने या फिर अन्य तरह की परंपराओं के निर्वाह से रोका जाएगा तो इसका पुरजोर विरोध होगा। 

अब आदिवासी इस पहाड़ को बता रहे अपना

झामुमो विधायक लोबिन हेंब्रम सहित आदिवासी संगठनों के नेता नरेश मुर्मू, पीसी मुर्मू, अजय उरांव, सुशांतो मुखर्जी ने कहा कि जैन मुनि यहां तपस्या करने आए और यहां उनका निधन हो गया तो इसका अर्थ कतई नहीं कि यह पूरा पहाड़ जैन धर्मावलंबियों का हो गया। इस धरोहर को बचाने के लिए आगामी 10 जनवरी को यहां पूरे देश से आदिवासी जुटेंगे। दावा किया गया है कि इस दिन हजारों लोग पहुंचेंगे। इस मांग को लेकर 25 जनवरी को बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलिहातू गांव में भूख हड़ताल भी की जाएगी। हाल के महीनों में स्थानीय भाषाओं और मूलवासियों के अधिकारों को लेकर सैकड़ों जनसभाएं करने वाले युवा नेता जयराम महतो ने भी कहा है कि इस पहाड़ की तराई में रहने वाले हर व्यक्ति का इस पर अधिकार है। अगर स्थानीय लोगों को किसी भी तरह इस पहाड़ पर जाने से रोकने की कोशिश हुई तो जोरदार आंदोलन होगा।

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