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न छूटे एक भी वोटर.. जंगल, पहाड़ हो या नदी.. जानें कैसे हर बाधा को लांघ रहा चुनाव आयोग?

Lok Sabha Elections 2024 : लोकसभा चुनाव के लिए देश के दुर्गम स्थलों पर भी चुनाव आयोग की टीम मतदानकर्मियों को पहुंचाने की तैयारियों में जुटी है। चाहे वो जंगल हो.. दुर्गम पहाड़ हो या फिर नदी के बीच से गुजरना पड़े।

Edited By: Niraj Kumar @nirajkavikumar1
Published : Mar 27, 2024 17:31 IST, Updated : Mar 27, 2024 17:32 IST
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Image Source : PTI/FILE लाहौल स्पीति के दुर्गम इलाके में चुनाव आयोग की टीम

नई दिल्ली: देश में लोकसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी है मतदान प्रक्रिया को संपन्न कराने के लिए चुनाव आयोग अपनी तैयारियों में जुटा हुआ है। गिर के जंगलों से लेकर ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों और जंगलों के बीच स्थित गांवों में मतदान कराने के लिए वाकई चुनाव आयोग और मतदान कर्मियों को काफी मशक्कत का सामना करना पड़ता है। भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पर एक मतदान केंद्र ऐसा है जहां एक घंटे तक नाव की सवारी के बाद ही पहुंचा जा सकता है। वहीं भी चुनाव आयोग की टीम पूरी मुस्तैदी से वोटिंग कराने के लिए अपने काम में जुटी है। चुनाव आयोग की इस पूरी कवायद के पीछे यही सोच है कि एक भी वोटर अपने मताधिकार से वंचित न रह जाए। 

हर वोटर अपना वोट डाल सके

देश के मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के मुताबिक मतदान दल को ईवीएम लेकर सबसे दूर, कठिन और दुर्गम इलाकों से गुजरना पड़ता है। इसके पीछे मकसद यही है कि यह यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी मतदाता न छूटे। इसी महीने उन्होंने चुनावों का ऐलान करते हुए कहा "हम अतिरिक्त मील चलेंगे ताकि मतदाताओं को ज्यादा न चलना पड़े। हम बर्फीले पहाड़ों और जंगलों में जाएंगे। हम घोड़ों और हेलीकॉप्टरों और पुलों पर जाएंगे और यहां तक ​​कि हाथियों और खच्चरों पर भी सवारी करेंगे ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि हर वोटर अपना वोट डाल सके। 

मणिपुर में 94 विशेष मतदान केंद्र 

लोकसभा चुनावों में मणिपुर के आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों के लिए राहत शिविरों में मतदान करने के लिए कुल 94 विशेष मतदान केंद्र स्थापित किए जाएंगे। पिछले साल मई से मणिपुर में मैतेई और आदिवासी कुकी समुदायों के बीच जातीय संघर्ष में 200 से अधिक लोगों की जान चली गई है। 50 हजार से ज्यादा विस्थापित लोग इन बूथों पर मतदान करने के पात्र होंगे जो राहत शिविरों में या उसके निकट स्थापित किए जाएंगे।

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Image Source : PTI/FILE
दुर्गम स्थानों पर जाने के लिए हेलिकॉप्टर में सवार होते मतदान कर्मी (फाइल)

ताशीगंग में सबसे ऊंचा मतदान केंद्र 

चुनाव आयोग के रिकॉर्ड के मुताबिक हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति में ताशीगंग में दुनिया का सबसे ऊंचा मतदान केंद्र है। इस मतदान केंद्र की ऊंचाई समुद्र तल से 15,256 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।चुनाव आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक "गांव के सभी 52 मतदाता कड़ाके की ठंड के बावजूद 12 नवंबर, 2022 को अपने वोट का प्रयोग करने आए। हिमाचल प्रदेश में 65 मतदान केंद्र 10,000 से 12,000 फीट की ऊंचाई पर थे और 20 मतदान केंद्र समुद्र के लेवल से 12,000 फीट की ऊंचाई पर थे।

नाव ही एकमात्र साधन

मेघालय के पश्चिमी जैंतिया हिल्स जिले के कामसिंग गांव में नदी के किनारे बने मतदान केंद्र पर मतदान कर्मियों को लाइफ जैकेट पहननी पड़ी और गोताखोरों के साथ जाना पड़ा। सुपारी की खेती और सौर ऊर्जा पर निर्भर रहने वाले इस गांव में मेघालय का सबसे दूरस्थ मतदान केंद्र है जहां मोटरगाड़ी से नहीं पहुंचा जा सकता है। यह जोवाई में जिला मुख्यालय से 69 किमी दूर और उप-जिला मुख्यालय (तहसीलदार कार्यालय) अमलारेम से 44 किमी दूर स्थित है। चुनाव आयोग के मुताबिक इस गांव तक केवल छोटी देशी नावों द्वारा ही पहुंचा जा सकता है।

वहीं भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित एक गांव तक पहुंचने में एक घंटे का लंबा सफर तय करना पड़ता है। गांव में रहने वाले 23 परिवारों के 35 मतदाताओं, 20 पुरुष और 15 महिलाओं के लिए गांव में एक मतदान केंद्र स्थापित किया गया था। मतदान कर्मियों को लाइफ जैकेट पहननी पड़ी और उनके साथ कुछ गोताखोर भी थे।

एक वोटर के लिए मतदान के इंतजाम

चुनाव आयोग द्वारा प्रकाशित चुनावों पर पुस्तक "लीप ऑफ फेथ" के अनुसार, 2007 से गिर के जंगलों में स्थित बानेज में सिर्फ एक मतदाता महंत हरिदासजी उदासीन के लिए एक विशेष मतदान केंद्र स्थापित किया गया है। वह इलाके में स्थित एक शिव मंदिर में पुजारी हैं। मंदिर के पास वन कार्यालय में एक बूथ बनाया गया है। बूथ स्थापित करने और अकेले मतदाता को अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए आवश्यक व्यवस्था हेतु एक समर्पित मतदान दल नियुक्त किया जाता है।

बाणेश्वर महादेव मंदिर गिर जंगल के अंदर स्थित है। गिर का जंगल एशियाई शेरों का अंतिम जीवित प्राकृतिक आवास है। जंगली जानवरों के डर से राजनीतिक दल इस क्षेत्र में प्रचार नहीं करते हैं। 10 लोगों वाली मतदान टीम ने एक मतदाता के लिए बूथ स्थापित करने के लिए 25 किलोमीटर की यात्रा की। चुनाव आयोग की किताब के मुताबिक "हरिदास उदासीन महंत भरतदास दर्शनदास के उत्तराधिकारी हैं, जो नवंबर, 2019 में निधन से पहले लगभग दो दशकों तक मतदान केंद्र में एकमात्र मतदाता थे।

 चार दिनों में 300 मील की यात्रा 

अरुणाचल प्रदेश के मालोगम में अकेले मतदाता वाले एक अन्य गांव में, चुनाव कर्मियों ने 2019 में एक मात्र मतदाता के लिए घुमावदार पहाड़ी सड़कों और नदी घाटियों के माध्यम से चार दिनों में 300 मील की यात्रा की। मालोगम अरुणाचल प्रदेश में जंगली पहाड़ों में एक सुदूर गांव है जो चीन की सीमा के करीब है। इसी तरह गिर सोमनाथ जिले के तलाला क्षेत्र में 14वीं और 17वीं शताब्दी के बीच भारत आए पूर्वी अफ्रीकियों के वंशज सिद्दियों के लिए भी मतदान केंद्र बनाए गए हैं। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार इस इलाके में ऐसे 3,500 से अधिक मतदाता हैं।

देश के पूर्वी तट से दूर सुदूर अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पर चुनाव आयोग की टीम को 2019 में नौ मतदाताओं के लिए मगरमच्छ और दलदल का सामना करना पड़ा। चुनाव आयोग ने 2022 में उन मतदान अधिकारियों के मानदेय को दोगुना करने का निर्णय लिया था, जिन्हें दूरदराज और कठिन क्षेत्रों में स्थित मतदान केंद्रों तक पहुंचने के लिए तीन दिन पहले चुनाव ड्यूटी के लिए जाना पड़ता है।

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