Tuesday, April 16, 2024
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पुलिसकर्मियों को रोकने के लिए विकास दुबे ने किसे JCB मशीन से रास्ता रोकने के लिए कहा था? बताया इसका राज

उत्तर प्रदेश के कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के मुख्य आरोपी और कुख्यात अपराधी विकास दुबे को बृहस्पतिवार सुबह मध्य प्रदेश के उज्जैन के महाकाल मंदिर के बाहर से गिरफ्तार करने के बाद वह कई राज खोल रहा है।

IndiaTV Hindi Desk Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: July 09, 2020 17:58 IST
Vikas Dubey- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Vikas Dubey

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के मुख्य आरोपी और कुख्यात अपराधी विकास दुबे बृहस्पतिवार सुबह मध्य प्रदेश के उज्जैन के महाकाल मंदिर के बाहर से गिरफ्तार होने के बाद वह कई राज खोल रहा है। उसने पूछताछ में बताया कि हम लोगों को सूचना थी कि पुलिस सुबह आएगी। लेकिन पुलिस रात में ही रेड करने आ गयी।कानपुर कांड के मुख्य आरोप विकास दुबे ने गिरफ्तारी के बाद पूछताछ में बताया कि घटना के बाद घर के ठीक बग़ल में कुएं के पास पांच पुलिसवालों की लाशों को एक के ऊपर एक रखा गया था जिससे उनमें आग लगा कर सबूत नष्ट कर दिये जाये। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक आग लगाने के लिये घर में गैलनों में तेल रखा गया था। पचास लीटर के गैलन में रखे तेल से शवों को जलाने का इरादा था। लेकिन लाशें इकट्टठा करने के बाद उसे मौक़ा नहीं मिला। मौके पर पुलिस आ गई, फिर वो फ़रार हो गया।

विकास दुबे ने पूछताछ में बताई कई बातें

  • उसने अपने सभी साथियों को अलग-अलग भागने के लिये कहा था। 
  • गांव से निकलते वक्त ज्यादातर साथी जिधर समझ में आया भाग गये। 
  • हम लोगों को सूचना थी कि पुलिस भोर सुबह आयेगी। लेकिन पुलिस रात में ही रेड करने आ गयी। 
  • हमने खाना भी नहीं खाया था। जबकि सबके लिये खाना बन चुका था। 
  • घटना के अगले दिन मारा गया विकास का मामा जेसीबी मशीन का इंचार्ज था लेकिन वो जेसीबी नहीं चला रहा था। 
  • रात मे राजू नाम के एक साथी ने जेसीबी मशीन को बीच सड़क मे पार्क किया था। 
  • मामा को अगले दिन पुलिस ने एनकाउंटर में मार दिया था। 
  • विकास दुबे ने कहा कि चौबेपुर थाना ही नही बारे के थानों में भी उसके मददगार थे। जो तमाम मामलों में उसकी मदद करते थे। 

विकास दुबे का अपराध जगत से गहरा नाता रहा है। राजनीति संरक्षण के कारण उसका अपराध फलता-फूलता रहा। अपने संरक्षण के लिए राजनीति का भी उसने चोला ओढ़ रखा था। इसके खिलाफ 60 अपराधिक मुकदमें दर्ज है।

हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे वर्ष 2001 में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री संतोष शुक्ला हत्याकांड का मुख्य आरोपी है। वर्ष 2000 में कानपुर के शिवली थानाक्षेत्र स्थित ताराचंद इंटर कॉलेज के सहायक प्रबंधक सिद्घेश्वर पांडेय की हत्या में भी विकास का नाम आया था। कानपुर के शिवली थानाक्षेत्र में ही वर्ष 2000 में रामबाबू यादव की हत्या के मामले में विकास पर जेल के भीतर रहकर साजिश रचने का आरोप है।

2004 में केबल व्यवसायी दिनेश दुबे हत्या मामले में भी विकास पर आरोप है। वहीं 2018 में अपने ही चचेरे भाई अनुराग पर विकास दुबे ने जानलेवा हमला करवाया था। इस दौरान भी विकास जेल में बंद था और वहीं से सारी साजिश रची थी। इस मामले में अनुराग की पत्नी ने विकास समेत चार लोगों को नामजद किया था।

हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे का जघन्य आपराधिक इतिहास रहा है। बचपन से ही वह अपराध की दुनिया का बेताज बदशाह बनना चाहता था। इसीलिए उसने अपना एक गैंग बनाकर लूट, डकैती, हत्याएं करने लगा।

विकास दुबे ने कम उम्र में ही अपराध की दुनिया में कदम रख दिया था। कई नव युवा साथियों को साथ लेकर चलने वाला विकास कानपुर नगर और देहात का वांछित अपराधी बन गया। चुनावों में अपने आतंक व दहशत के दाम हार जीत भी तय करता था।

मृतक राज्यमंत्री संतोष शुक्ला के भाई मनोज शुक्ल जो कि कानपुर देहात के भाजपा पूर्व जिला उपाध्यक्ष रह चुके है। उन्होंने आईएएनएस को बताया था कि "विकास दुबे बहुत शातिर अपराधी है। उसको राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होंने के कारण वह लगातार बचता रहा है। उसने हमारे भाई संतोष शुक्ल की हत्या 12 अक्टूबर 2001 में थानें के अंदर हत्या की थी। जिसके गवाह उस समय करीब 25 से ज्यादा पुलिस वाले थे। लेकिन राजनीतिक संरक्षण के चलते इस मामले में भी वह बरी हो गया था। 1995- 96 में अपने को बचाने के लिए बसपा में शामिल हो गया था। इसके बाद जिलापंचायत सदस्य भी बना। इसके बाद उसकी पत्नी जिला पंचायत का चुनाव सपा के समर्थन से लड़ी है। 20 सालों से अभी तक उसे किसी मामले में सजा न होंनें के पीछे उसका राजनीतिक घुसपैठ मजबूत होंना ही है।"

मनोज शुक्ला ने कहा था कि "हत्या के समय भी हमारी पार्टी के कुछ नेताओं का संरक्षण था। नाम लेना ठीक नहीं है। 2005 में विकास दुबे इस मामले में बरी हो गया था। पुलिस ने गवाही देने की जहमत नहीं उठाई, इसीलिए न्याय नहीं मिल सका। अपने को बचाने के लिए राजनीतिक चोला ओढ़े बैठा है। अब प्रशासन से युद्घ लिया है। इस पर कार्यवाही निश्चित होगी, क्योंकि इसने प्रशाासन और सरकार से लड़ाई ली है। जब भैया की हत्या की थी उस समय ही उसके उपर 45 मुकदमें थे। जमीन हड़पना, पैसा छिनना, गाड़ी लूट लेना उसका पेशा था। पंचायत और निकाय चुनावों में इसने कई नेताओं के लिए काम किया और उसके संबंध प्रदेश की सभी प्रमुख पार्टियों से हो गए।"

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