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दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारण सांस और आंखों के रोग में तेजी से हुई बढोत्तरी

दिवाली के बाद दिल्ली में स्मॉग खासकर बच्चों में बहुत सारी चिकित्सा समस्याएं लेकर आता है। हमारे अस्पताल में सांस और आंखों की समस्याओं वाले लोगों की संख्या में वृद्धि देखी गई है।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated : November 01, 2019 14:11 IST
Delhi Air pollution- India TV Hindi
Delhi Air pollution

हर साल दिवाली के बाद दिल्ली सहित कई जगहों पर वायु प्रदूषण का भारी प्रकोप होता है। जिसके साथ कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पडता है। इस बार भी दिवाली के बाद वायु प्रदूषण में हुए इजाफे के साथ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अस्पताओं में मरीजों की संख्या बढ़ गई है। अस्पताल पहुंचने वाले मरीजों में अधिकतर सांस की तकलीफ और आंखों की समस्याओं से घिरे लोग शामिल हैं। हवा की गति में कमी के कारण दिवाली के 5 दिन बाद भी दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) तेजी से बिगड़ गया।

श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट में सीनियर कंसल्टेंट अरविंद अग्रवाल ने आईएएनएस को बताया, "दिवाली के बाद दिल्ली में स्मॉग खासकर बच्चों में बहुत सारी चिकित्सा समस्याएं लेकर आता है। हमारे अस्पताल में सांस और आंखों की समस्याओं वाले लोगों की संख्या में वृद्धि देखी गई है।"

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प्रदूषण के कारण हो रही है ये समस्याएं

अग्रवाल ने कहा, "हमने ओपीडी में 20-22 फीसदी की वृद्धि देखी है, जहां मरीजों को आंखों और गले में जलन, शुष्क त्वचा, त्वचा की एलर्जी, पुरानी खांसी और सांस लेने में परेशानी जैसे लक्षणों का सामना करना पड़ रहा है।"

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उन्होंने कहा कि रोगियों, बुजुर्गों और बच्चों को घर के अंदर रहने की कोशिश करनी चाहिए।

धर्मशिला नारायण सुपरस्पेशलिटी अस्पताल में पल्मोनोलॉजी कंसल्टेंट नवनीत सूद के अनुसार, जब भी लोगों को आंखों में लालिमा, सांस लेने में तकलीफ, बेचैनी और लगातार सिरदर्द जैसे लक्षणों का अनुभव हो तो उन्हें तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए।

सूद ने कहा कि दिवाली के बाद दैनिक आधार पर 15-16 रोगी आ रहे हैं, जिनमें तीन-चौथाई मामले अस्थमा और पुरानी फेफड़े की बीमारी से संबंधित हैं।

उन्होंने कहा, "दिवाली के बाद पहले दिन आने वाले मामले निश्चित रूप से पिछले वर्षों की तुलना में कम थे, लेकिन वे सामान्य ओपीडी के मुकाबले 25 फीसदी अधिक रहे।"

स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर-2019 की रिपोर्ट के अनुसार, वायु प्रदूषण के मौजूदा उच्च स्तर में बढ़ने से दक्षिण एशियाई बच्चे का जीवनकाल दो साल और औसतन छह महीने तक कम हो सकता है।

इसके अलावा वायु प्रदूषण गर्भावस्था के दौरान विशेष रूप से हानिकारक है।

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