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Akshay Navami 2019: आंवला नवमी आज, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

आंवला नवमी के दिन व्रत के पुण्य से सुख-शांति, सद्भाव और वंश वृद्धि का फल प्राप्त होता है | आज के दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु और आंवले के वृक्ष की पूजा-अर्चना करने का विधान है |

India TV Lifestyle Desk Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: November 04, 2019 23:57 IST
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Akshay Navami 2019: कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी व्रत का रखा जाता है। शास्त्रों में अक्षय नवमी का बहुत महत्व बताया गया है। अक्षय का अर्थ होता है- जिसका क्षरण न हो। इस दिन किए गए कार्यों का अक्षय फल प्राप्त होता है। इसे इच्छा नवमी, आंवला नवमी, कूष्मांड नवमी, आरोग्य नवमी और धातृ नवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस बार ये व्रत 5 नवंबर, मंगवार के दिन पड़ रहा है।

आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार आंवला नवमी के दिन व्रत के पुण्य से सुख-शांति, सद्भाव और वंश वृद्धि का फल प्राप्त होता है | आज के दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु और आंवले के वृक्ष की पूजा-अर्चना करने का विधान है | साथ ही आज के दिन तर्पण और स्नान- दान का भी बहुत महत्व है। 

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अक्षय नवमी के दिन संभव हो तो किसी तीर्थ स्थल पर जाकर स्नान करना चाहिए, लेकिन अगर आप कहीं दूर नहीं जा सकते, तो घर पर ही अपने नहाने के पानी में थोड़ा-सा गंगाजल डालकर स्नान जरूर कीजिये। इससे आपको अक्षय फलों की प्राप्ति होगी। जानें अक्षय नवमी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा। 

अक्षय नवमी का शुभ मुहूर्त

सुबह 06 बजकर 36 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 04 मिनट तक।

अक्षय नवमी व्रत पूजा विधि
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद साफ करड़े धारण करें। फिर अपने दाहिने हाथ में जल, अक्षत, फूल लेकर इस मंत्र को पढ़ें- 'अद्येत्यादि अमुक गोत्रोsमुक शर्माहं (अपने गोत्र का नाम) ममाखिलपाप क्षयपूर्वक धर्मार्थ काममोक्ष सिद्धिद्वारा श्रीविष्णु प्रीत्यर्थं धात्रीमूले विष्णुपूजनं धात्रीपूजनं च करिष्ये'

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व्रत संकल्प के बाद आप अपने परिवार के साथ आंवले के पेड़ के नीचे जाएं और पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठ जाए। इसके बाद 'ऊं धात्र्यै नम:' मंत्र से आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करें। फिर नीचे लिखे मंत्रों से आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराते हुए पितरों का तर्पण करें-

पिता पितामहाश्चान्ये अपुत्रा ये च गोत्रिण:।
ते पिबन्तु मया द्त्तं धात्रीमूलेSक्षयं पय:।।

अब इसके बाद कपूर और दीप जलाकर आंवले के वृक्ष की आरती करें। 

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आंवला नवमी की व्रत कथा
काशी नगर में एक निःसंतान धर्मात्मा वैश्य रहता था। एक दिन वैश्य की पत्नी से एक पड़ोसन बोली यदि तुम किसी पराए लड़के की बलि भैरव के नाम से चढ़ा दो तो तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा। यह बात जब वैश्य को पता चली तो उसने अस्वीकार कर दिया। परंतु उसकी पत्नी मौके की तलाश में लगी रही। एक दिन एक कन्या को उसने कुएं में गिराकर भैरो देवता के नाम पर बलि दे दी, इस हत्या का परिणाम विपरीत हुआ। लाभ की जगह उसके पूरे बदन में कोढ़ हो गया तथा लड़की की प्रेतात्मा उसे सताने लगी। वैश्य के पूछने पर उसकी पत्नी ने सारी बात बता दी।

इस पर वैश्य कहने लगा गौवध, ब्राह्यण वध तथा बाल वध करने वाले के लिए इस संसार में कहीं जगह नहीं है। इसलिए तू गंगा तट पर जाकर भगवान का भजन कर तथा गंगा में स्नान कर तभी तू इस कष्ट से छुटकारा पा सकती है। वैश्य की पत्नी पश्चाताप करने लगी और रोग मुक्त होने के लिए मां गंगा की शरण में गई। तब गंगा ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला के वृक्ष की पूजा कर आंवले का सेवन करने की सलाह दी थी। जिस पर महिला ने गंगा माता के बताए अनुसार इस तिथि को आंवला वृक्ष का पूजन कर आंवला ग्रहण किया था और वह रोगमुक्त हो गई थी। इस व्रत व पूजन के प्रभाव से कुछ दिनों बाद उसे संतान की प्राप्ति हुई। तभी से हिंदुओं में इस व्रत को करने का प्रचलन बढ़ा। तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है।

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