Wednesday, April 24, 2024
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आज करें श्री गणेश के महामंत्र का जाप, मिलेगा हर संकट से छुटकारा

आज के दिन गणेश जी के निमित्त व्रत करने से व्यक्ति की समस्त इच्छाओं की पूर्ति होती है। साथ ही हर तरह के संकटों से छुटकारा मिलता है, ज्ञान की प्राप्ति होती है और धन-संपत्ति में भी बढ़ोतरी होती है।

India TV Lifestyle Desk Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: February 27, 2020 8:26 IST
Ganesha chaturthi- India TV Hindi
Ganesha chaturthi

प्रत्येक महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को वैनायकी श्री गणेश चतुर्थी व्रत करने का विधान है और आज शुक्ल पक्ष की चतुर्थी है। लिहाजा  वैनायकी श्री गणेश चतुर्थी व्रत किया जायेगा। हमारी संस्कृति में भगवान श्री गणेश जी को प्रथम पूजनीय देवता का दर्जा दिया गया है। किसी भी देवी-देवता की पूजा से पहले भगवान श्री गणेश की पूजा का ही विधान है और आज तो स्वयं गणपति जी का दिन है। श्री गणेश को चतुर्थी तिथि का अधिष्ठाता माना गया है। साथ ही इन्हें बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। गणेश जी की उपासना शीघ्र फलदायी मानी गयी है और आज के दिन गणेश जी के निमित्त व्रत करने से व्यक्ति की समस्त इच्छाओं की पूर्ति होती है। साथ ही हर तरह के संकटों से छुटकारा मिलता है, ज्ञान की प्राप्ति होती है और धन-संपत्ति में भी बढ़ोतरी होती है। 

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आज चतुर्थी तिथि के दौरान शुभ मुहूर्त में घर के किसी एकांत जगह पर जप स्थान निर्धारित करके वहां आसन लगाकर पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठ जाये फिर भगवान गणेश के मूलमंत्र से आचमन तथा प्राणायाम करके भूतशुद्धि, प्राणप्रतिष्ठा, अंतमातृका, बहिमातृका न्यास सर्वदेवोपयोगि- पद्धति से करके पूर्ववत गणेशकलामातृका न्यास करके प्रयोगोक्त न्यास आदि करना चाहिए। न्यास के क्रम है-
ऋष्यादिन्यास-
ॐ भार्गवर्ष्ये नमः शिरिसि।
ॐ अनुष्टुप्छन्दसे नमः मुखे।
ॐ विघ्नेशदेवतायै नमः हृदि।
ॐ बं बीजाय नमः गुह्ये।
ॐ यं शक्तये नमः पादयोः।
ॐ विनियोगाय नमः सर्वाग्ड़े।

इसके बाद-
करन्यास-
ॐ नं नमः अंगुष्ठाभ्यां नमः।
ॐ क्रं नमः तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ तुं नमः मध्यमाभ्यां।
ॐ डां नमः अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ यं नमः कनिष्ठीकाभ्यां नमः।
ॐ हुं नमः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।

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इसके बाद-
हृदयादि षडग्ड़ेन्यास-
ॐ वं नमः हृयाय नमः।
ॐ क्रं नमः शिरसे स्वाहा।
ॐ तुं नमः शिखायै वषट्।
ॐ डां नमः कवचाय हुं।
ॐ यं नमः नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ हुं नमः अस्त्राय फट्।

इसके बाद-
वर्णन्यास-
ॐ वं नमः भ्रूमध्ये।
ॐ क्रं नमः कण्ठे।
ॐ तुं नमः हृदये।
ॐ डां नमः नाभौ।
ॐ यं नमः लिंगे।
ॐ हुं नमः पादयो। 

इस प्रकार न्यास करने के बाद ध्यान करें और ध्यान के दौरान इस मंत्र का जप करें। मंत्र है –
उद्यछ्छीनेश्वररूचिं निजहस्तपद्यै: पाशांकुशाभयवरान्दधतं गजास्यं।
रक्ताम्बरं सकलदुःखहरं गणेशं ध्योयेत्प्रसन्नमखिलाभरनाभिरामम। 

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इस प्रकार ध्यान करने के बाद रचित गणेशमण्डल में मंडूकादि परतत्त्वांत पीठ देवताओं की पद्धतिमार्ग से स्थापना करके इस मंत्र। मंत्र है-
ॐ मं मंडूकादि परतत्त्वांत पीठदेवताभ्यो नमः’ ..से पूजा करें।
 
इसके बाद स्वर्णादि से निर्मित यंत्र या मूर्ति को ताम्रपात्र में रखकर घी से अभ्यंग करें। उसके बाद दूध और जल से स्नान कराकर पुष्पासन दें और पुष्पासन देते समय इस मंत्र का जप करें। मंत्र है- ‘ॐ ह्रीं सर्वशक्तिकमलासनाय नमः’

इस मंत्र से पुष्पासन देने के बाद पीठ के मध्य में मूर्ति को स्थापित कर दें। उसके बाद पद्धतिमार्ग से प्रतिष्ठा करके मूल मंत्र से मूर्ति की कल्पना कर आवरण पूजा करें। आवरण पूजा करने के लिए पुष्पांजली ले और मंत्र पढ़े। मंत्र है- ‘ॐ संविन्मयः परो देवः परामृतरसप्रियः।

अनुज्ञां देहि गणपतिपरिवरार्चनाय मे।| .इस मंत्र का जप करते हुये पुष्प अर्पित कर दें और पुष्प अर्पित करते समय ‘पूजितास्तपिताः सन्तु’ कहें। इस प्रकार आज्ञा लेकर षट्कोणकेसरों षडग्डों की पूजा इन मन्त्रों से करें। मंत्र है-
‘आग्नेयादिचतुदिरक्षु मध्ये दिक्षु च।

ॐ वं नमः हृदयाय नम हृदये श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः इति सर्वत्र||
इसके बाद-
ॐ क्रं नमः शिरसे स्वाहा शिरिस श्रीपादंपूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ तं नमः शिखायौ वषट् शिखायां श्रीपादंपूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ डां नमः कवचाय हुं कवचं श्रीपादंपूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ यं नमः नेत्रत्रयाय वौषट् नेत्रत्रये श्रीपादंपूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ हुं नमः अस्त्राय फट् अस्त्रे श्रीपादंपूजयामि तर्पयामि नमः। 

इस प्रकार षडग्डो की पूजा करने के बाद पुष्पांजलि लेकर मूलमंत्र का जप करें। मंत्र है-
‘ॐ अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल।
भक्त्या समर्पये तुभ्यं प्रथमावरनाचरणं।
मंत्र जप के बाद पुष्प अर्पित कर दें और ‘पूजितास्तपिताः सन्तु’ कहे। इति प्रथमावरण।

इसके बाद अष्टदलों में पूज्य और पूजक के अन्तराल को पूर्व दिशा मानकर तदनुसार अन्य दिशाओं की कल्पना करके दाहिने हाथ की तर्जनी और अंगूठे से गंध, अक्षत, पुष्प लेकर प्राची क्रम से आठों दिशाओं में 
ॐ विद्यायौ नमः वक्रतुंड श्रीपादंपूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ विधात्र्यौ नमः विधात्री श्रीपादंपूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ भोगदायै नमः भोगदा श्रीपादंपूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ विघ्नघातिन्यै नमः विघ्नघातिनि श्रीपादंपूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ निधिप्रदीपायै नमः निधिप्रदीप श्रीपादंपूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ पापघ्न्यै नमः पापघ्नी श्रीपादंपूजयामि तर्पयामि नमः।

ॐ पुण्यायै नमः पुण्य श्रीपादंपूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ शशिप्रभायै नमः शशिप्रभ श्रीपादंपूजयामि तर्पयामि नमः। 

इससे

अष्टशक्तियों की पूजा करें। फिर पुष्पांजलि लेकर मूलमंत्र का उच्चारण करके कहें -
अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल। भक्त्या समर्पये तुभ्यं द्वितीयावरर्णाचरणं।

इस मंत्र का जप करने के बाद पुष्प अर्पित कर दें। उसके बाद जलबिंदु डालकर ‘पूजितास्तपिताः सन्तु’ कहे। इति द्वितीयावरण 

फिर दलाग्रो में –
ॐ वक्रतुंडाय नमः वक्रतुण्ड श्रीपादंपूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ एकदंष्ट्राय नमः एकदंष्ट्र श्रीपादंपूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ महोदराय नमः महोदर श्रीपादंपूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ हस्तिमुखाय नमः हस्तिमुख श्रीपादंपूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ लम्बोदराय नमः लम्बोदर श्रीपादंपूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ विकटाय नमः विकट श्रीपादंपूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ विध्नराजाय नमः विध्नराज श्रीपादंपूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ धूम्रवर्णाय नमः धूम्रवर्ण श्रीपादंपूजयामि तर्पयामि नमः।

इससे आठों की पूजा करें इसके बाद पुष्पांजलि लेकर इस मूल मंत्र का उच्चारण करके-
अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल।
भक्त्या समर्पये तुभ्यं तृतीयावरर्णाचरणं। 
इसके बाद पुष्प अर्पित कर दें फिर जलबिंदु डालकर ‘पूजितास्तपिताः सन्तु’ कहे। इति तृतीयावरण  

फिर भूपुर में पूर्वादिक्रमेण-
‘ॐ लं इन्द्राय नमः।
ॐ रं अग्नये नमः।
ॐ मं यमाय नमः।
ॐ क्षं निऋरतये नमः।
ॐ वं वरुणाय नमः।
ॐ थं वायवे नमः।
ॐ कुं कुबेराय नमः।
ॐ हं ईशानाय नमः।
पूर्वेशानयोमरध्ये ॐ आं ब्राह्मणे नमः।
वरुणनैऋरतयोमरध्यो ॐ ह्रीं अनंताय नमः। 
इससे दश दिक्पालों की पूजा करके पुष्पांजलि दें। इति चतुर्थावरण 
फिर इन्द्रादि के समीप-
ॐ बं बज्राय नमः।
ॐ शं शक्तये नमः।
ॐ दं दण्डाय नमः।
ॐ खं खड्गाय नमः।
ॐ पां पाशाय नमः।

ॐ अं अंकुशाय नमः।
ॐ गं गदायै नमः।
ॐ त्रिं त्रिशूलाय नमः।
ॐ पं पद्माय नमः।
ॐ चं चक्राय नमः। 

इससे वज्रादि अस्त्रों की पूजा करें। इस प्रकार आवरण पूजा करके धूपादि नमस्कारांत करें।

इसका पुरश्वरण छः लाख जप है। अष्टद्रव्यों से जप का दशांशहोम करना चाहिए (इक्षु, सत्तू, केला, चिउड़ा, टिल, मोदक, नारियल और धान का लावा इन्हें द्रव्याष्टक कहते है। ‘इक्षव: शक्तवो रम्भाफलानि चिपितसितलाः। मोदका नारिकेलानि लाजा द्रव्याष्टकं स्मृतं।) फिर तत्तद्दशांश तर्पण, मार्जन और ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए। इस प्रकार सिध्द मंत्र से साधक को अपने काम्य प्रयोग सिद्ध करने चाहिए। अगर साधक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुये 12 हजार मंत्रो का जप करे तो 6 महीने के भीतर निश्चित रूप से दारिद्रय का नाश होता है।

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