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बजट 2021 से भारत की क्या हैं उम्मीदें ?

अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए राहत कदमों की श्रंखला के ऐलान के बाद अब वित्त मंत्री के पास एक अवसर है कि वो एक आर्थिक रूपरेखा, पेश करें जिसमें मुसीबत में फंसे क्षेत्रों को मजूबती और बढ़ते हुए क्षेत्रों को प्रोत्साहन दोनो ही हों, साथ ही आम लोगों की उम्मीदों का भी ख्याल रखा जाए।

Om Tiwari Reported by: Om Tiwari
Updated on: January 28, 2021 19:33 IST
बजट से देश की उम्मीदें- India TV Paisa

बजट से देश की उम्मीदें

नई दिल्ली। भारत में दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान की शुरुआत के साथ इस बात की उम्मीदें बढ़ गई हैं कि कोविड 19 महामारी जल्द ही बीते दिनों की बात होगी और देश साल 2024 तक 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ेगा। और ये उम्मीदें बेवजह नहीं है क्योकि कुछ आर्थिक संकेत महामारी के काल में लगाए गए अनुमानों के मुकाबले अर्थव्यवस्था में तेज बहाली की और इशारा कर रहे हैं। हालांकि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लिए 1 फरवरी 2021 को 'अब से पहले न देखा गया' आम बजट पेश कर करते वक्त अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए सभी चुनौतियों से निपटना आसान नहीं होगा। 

अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए राहत कदमों की श्रंखला के ऐलान के बाद अब वित्त मंत्री के पास एक अवसर है कि वो एक आर्थिक रूपरेखा-जो कि पहली बार कागजों पर नहीं होगी, पेश करें जिसमें मुसीबत में फंसे क्षेत्रों को मजूबती और बढ़ते हुए क्षेत्रों को प्रोत्साहन दोनो ही हों, साथ ही आम लोगों की उम्मीदों का भी ख्याल रखा जाए।   

करदाता: वेतन में कटौती और अतिरिक्त खर्चों के साथ, वेतनभोगी वर्ग पर महामारी से मुकाबले के दौरान सबसे ज्यादा असर पड़ा है। वो वित्त मंत्री से प्रोत्साहन और अनुदान के रूप में राहत की उम्मीद कर रहे हैं। भले ही ये आयकर छूट में बढ़त के साथ टैक्स दरों में बदलाव के रूप में हो या फिर स्टैंडर्ड डिडक्शन को 50 हजार रुपये से बढ़ा कर 1 लाख रुपये सालाना करना हो। वो महामारी के दौरान स्वास्थ्य जांच और स्वास्थ्य से जुड़े अन्य खर्चों में डिडक्शन सीमा में बढ़ोतरी की उम्मीद भी कर रहे हैं।

महिलाएं: कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के बाद, महिला कर्मचारियों को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है, अकेले अप्रैल 2020 में ही 13.9 फीसदी को नौकरी गंवानी पड़ी।  सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के मुताबिक पिछले साल नवंबर तक जितने लोगों की नौकरी गई है उसमें से 49 फीसदी महिलाएं हैं। अब वित्त मंत्री को उन्हें मदद करने, नौकरी वापस पाने के लिए रास्ते तलाशने और बराबरी के मौके देने की जरूरत है। इसके साथ ही उन्हे खुद का कारोबार खड़ा करने में मदद देने की भी जरूरत है। दूसरी तरफ अन्य महिलाओं की घरेलू और जरूरी सामान को सस्ता करने की मांग है। 

वरिष्ठ नागरिक: इसमें कोई शक नहीं है कि वरिष्ठ नागरिकों को कोविड 19 के हालातों से सबसे ज्यादा मुश्किल हुई है, और उनकी आम बजट से काफी ज्यादा उम्मीदें हैं। भारत में वरिष्ठ नागरिक जनसंख्या का 8 से 9 प्रतिशत हैं, साथ ही उनमें से 60 लाख करदाता है। उनकी मांग है कि उनकी आय पूरी तरह से कर मुक्त की जाए या कम से कम अतिरिक्त छूट और डिडक्शन मिलें। इसके साथ ही वो अपने जमा पर ज्यादा ब्याज की भी उम्मीद कर रहे हैं। 

युवा: देश में बेरोजगारी काफी लंबे समय से चला आ रहा मुद्दा है, ये नवंबर 2020 में 7.8 प्रतिशत की ऊंचाई पर पहुंच गई, इसमें से भी युवाओं के बीच बेरोजगारी का हिस्सा 20 फीसदी से ज्यादा है।  बजट में  शिक्षा और कौशल विकास के लिए उचित प्रावधान के साथ साथ, सरकार को चाहिए कि वो ग्रामीण युवाओं में कारोबारी क्षमता के विकास के लिए ट्रेनिंग और अन्य मदद पर जोर दे। इस कदम से ग्रामीण इलाकों में छोटे कारोबार की श्रंखला तैयार होगी और इससे रोजगार के मौके भी मिलेंगे। 

कारोबारी: सरकार के लिए वास्तव में जीडीपी सबसे बड़ी चिंता है, ताजा आंकड़ों के संकेत हैं कि 2020-21 में जीडीपी में 7.7 फीसदी की गिरावट आ सकती है। इसलिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का जोर वापस विकास की दिशा में जाने और महामारी के असर में आए क्षेत्रों को उठाने पर है। दलाल स्ट्रीट से लेकर देश के कोने कोने के व्यवसायी और कारोबारी  विकास पर आधारित बजट चाहते हैं, जो कि कारोबारी सुगमता को सुनिश्चित करे और फंड्स तक पहुंच बनाए। 

(डिस्क्लेमर: इस लेख में दिए गए विचार लेखक के अपने विचार हैं, ये इंडिया टीवी की राय प्रदर्शित नहीं करते) 

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