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रतन टाटा को TATA NANO कार बनाने का आइडिया कहां से आया? बेहद रोचक है इसके पीछे की वजह

रतन टाटा की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक टाटा नैनो का उद्देश्य मध्यम वर्ग को आराम देना था। 2000 के दशक की शुरुआत में, इस परियोजना का मकसद मध्यम वर्ग के भारतीयों को एक सुरक्षित और सस्ती चार पहिया वाहन प्रदान करना था।

Edited By: Sourabha Suman @sourabhasuman
Published : Oct 10, 2024 13:17 IST, Updated : Oct 10, 2024 13:17 IST
साल 2008 में नई दिल्ली में ऑटो एक्सपो में पहली बार इस कार पर से पर्दा उठाया गया था। - India TV Paisa
Photo:FILE साल 2008 में नई दिल्ली में ऑटो एक्सपो में पहली बार इस कार पर से पर्दा उठाया गया था।

रतन टाटा ने भारत के आम लोगों की जिंदगी को कैसे और आसान बनाया जा सके, इसको लेकर हमेशा होमवर्क करते रहते थे। इसी कड़ी में मध्यम वर्ग जो कार नहीं खरीद सकता था, वह कार पर चलने के सपने को कैसे पूरा कर सकता है, रतन टाटा ने इस पर सोचा और काम भी किया। परिणामस्वरूप टाटा नैनो कार के तौर पर भारत की एकमात्र लखटकिया कार बाजार में पेश हुई। यह तब हर किसी के मन में एक कौतूहल का विषय बन गया था, कि भला एक लाख में भी कोई कार उपलब्ध हो सकती है। लेकिन रतन टाटा ने सच में इसे कर दिखाया।

सबसे पहले 2008 ऑटो एक्सपो में डिस्प्ले की गई टाटा नैनो

रतन टाटा की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक टाटा नैनो का उद्देश्य मध्यम वर्ग को आराम देना था। 2000 के दशक की शुरुआत में, इस परियोजना का मकसद मध्यम वर्ग के भारतीयों को एक सुरक्षित और सस्ती चार पहिया वाहन प्रदान करना था। साल 2008 में नई दिल्ली में ऑटो एक्सपो में पहली बार इस कार पर से पर्दा उठाया गया था। नैनो को आधिकारिक तौर पर मार्च 2009 में लॉन्च किया गया था।

रतन टाटा ने बताया था कि क्यों लॉन्च किया नैनो कार

लॉन्च के काफी समय बाद, रतन टाटा ने इंस्टाग्राम पर शेयर करते हुए बताया था कि उन्हें ऐसी कार बनाने का आइडिया कैसे आया। उन्होंने लिखा- जिस चीज ने मुझे प्रेरित किया और इस तरह की कार को बनाने की इच्छा जगाई, वह यह कि मैं लगातार भारतीय परिवारों को स्कूटर पर देखता था, शायद बच्चा मां और पिता के बीच बैठा होता था, अक्सर फिसलन भरी सड़कों पर स्कूटर चलाता था। उन्होंने कहा कि नैनो हमेशा से हमारे सभी लोगों के लिए थी। स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर में होने का एक लाभ यह था कि इसने मुझे खाली समय में डूडल बनाना सिखाया। पहले हम यह पता लगाने की कोशिश कर रहे थे कि दोपहिया वाहनों को कैसे सुरक्षित बनाया जाए, डूडल चार पहियों वाले बन गए, कोई खिड़कियां नहीं, कोई दरवाज़े नहीं, बस एक साधारण ड्यून बग्गी। लेकिन मैंने आखिरकार तय किया कि यह एक कार होनी चाहिए।

खराब मार्केटिंग के चलते नैनो आगे नहीं बढ़ सकी

लॉन्च के बाद, नैनो अपनी सस्ती कीमत के कारण सुर्खियों में आई। हालांकि, कार को लेकर हलचल धीरे-धीरे कम हो गई। बाद में तो यह बननी भी बंद हो गई। टाटा नैनो की लॉन्चिंग के कुछ साल बाद रतन टाटा ने एक मौके पर टाटा नैनो की असफलता के पीछे उसकी खराब मार्केटिंग को जिम्मेदार ठहराया था। उन्होंने एक इवेंट में कहा था कि टाटा नैनो को डिजाइन करने वालों की औसत उम्र 25-26 साल थी। एक लाख रुपये में एक अफोर्डेबल कार डेवलप करने का यह एक उत्साहवर्द्धक प्रयास था। जो सबसे बड़ी गलती रही, जो हमारी गलती थी, वह थी टाटा मोटर्स के सेल्स के लोगों की। उन्होंने इस कार की मार्केटिंग सबसे सस्ती कार के तौर पर कर दी, जिसका नुकसान हुआ, जबकि इसकी मार्केटिंग आम लोगों के लिए एक अफोर्डेबल कार के तौर पर करनी चाहिए।

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