Monday, December 16, 2024
Advertisement
  1. Hindi News
  2. धर्म
  3. कन्याकुमारी नाम के पीछे जुड़ी है ये रोचक कथा, आज भी यहां देवी कर रही हैं शिव जी का इंतजार

कन्याकुमारी नाम के पीछे जुड़ी है ये रोचक कथा, आज भी यहां देवी कर रही हैं शिव जी का इंतजार

कन्याकुमारी का नाम तो आप सभी ने सुना होगा, लेकिन आज हम आपको बताएंगे कि भारत के दक्षिण में स्थित इस क्षेत्र को कन्याकुमारी कहते क्यों हैं।

Written By: Naveen Khantwal
Published : May 31, 2024 18:31 IST, Updated : May 31, 2024 18:40 IST
Kanyakumari- India TV Hindi
Image Source : FILE Kanyakumari

भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में स्थित है कन्याकुमारी शहर, ये जगह हिंदू धर्म के प्रमुख आस्था केंद्रों में से एक है। तीनों ओर से समुद्र से घिरी यह जगह चोल, पांड्य और चेर शासकों के अधीन रह चुकी है। इन शासकों के शिल्प और कारीगरी की छाप आज भी यहां के स्मारकों पर आपको देखने को मिल सकती है। इस स्थान का इतिहास इन शासकों से भी बहुत पुराना है। इस जगह का नाम कन्याकुमारी पड़ने के पीछे भी एक रोचक कथा हमें सुनने को मिलती है। आज हम आपको कन्याकुमारी से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियां और इस जगह से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। 

कैसे पड़ा कन्याकुमारी नाम?

प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, बानासुरन (कई स्थानों पर इस राक्षस राजा का नाम बाणासुर और बानासुर भी लिखा गया है) नाम के एक असुर का वध करने के लिए माता पार्वती ने जन्म लिया था। बानासुरन को ब्रह्मा जी से ये वरदान प्राप्त था कि, उसकी मृत्यु किसी कुवांरी कन्या के द्वारा ही हो सकती है। बानासुरन को अहंकार हो गया था कि, कोई भी कुंवारी कन्या तो उसका वध कर नहीं पाएगी और बाकी सब को वो आसानी से परास्त कर पाएगा। 

बानासुरन शक्ति का करने लगा दुरुपयोग 
अपनी शक्ति का गलत इस्तेमाल करते हुए बानासुरन ने इंद्र को भी परास्त कर दिया और स्वर्ग को भी अपने अधीन कर दिया। इंद्र के साथ ही अग्नि, वरुण आदि देव भी बानासुरन के आतंक से परेशान होने लगे। देवताओं ने बानासुर के आतंक से मुक्ति पाने के लिए माता शक्ति से मदद मांगी। माना जाता है कि तब माता ने धरती पर जन्म लेने का निर्णय लिया। 

माता ने लिया धरती पर जन्म
बानासुरन का आतंक जब चरम पर था, तब देवी शक्ति ने उस दौर के एक प्रसिद्ध राजा भरत के घर में जन्म लिया। राजा भरत की 8 पुत्रियां और एक पुत्र था, इनमें से ही उनकी एक पुत्री थी कुमारी जो देवी का स्वरूप थीं। अंत समय में राजा ने अपने राज्य का बंटवारा किया तो उनकी पुत्री कुमारी के हिस्से में वर्तमान का कन्याकुमारी वाला क्षेत्र आया। कहा जाता है कि बचपन से ही कुमारी भगवान शिव की परम भक्त थीं। शिव से विवाह करने के लिए कुमारी ने कठोर तप किया, और उनकी तपस्या देखकर भगवान शिव भी विवाह करने के लिए मान गए। लेकिन नारद जी जानते थे कि अगर कुमारी और शिव जी का विवाह हुआ तो बानासुरन का आतंक कभी खत्म नहीं हो पाएगा। 

नारद जी ने नहीं होने दिया विवाह
ऐसा माना जाता है कि, जब भगवान शिव ने कुमारी से विवाह करने के लिए शुचीन्द्रम से यात्रा शुरू की, तो नारद जी ने विवाह रोकने के लिए मुर्गे को बांग देने के लिए कहा। मुर्गे की बांग इस बात का संकेत थी कि, विवाह के लिए अब शुभ मुहूर्त निकल चुका है। मुर्गे की बांग को सुनकर भगवान शिव भी यह सोचकर रुक गए कि, अब शुभ मुहूर्त निकल चुका है। जब सही मुहूर्त पर शिव जी विवाह के लिए नहीं पहुंचे तो कुमारी को बहुत क्रोध आया, लेकिन क्रोध शांत होने के बाद यह सोचकर वो फिर से तप करने लगीं कि, उनकी तपस्या में ही कुछ कमी रह गई होगी। 

बानासुरन तक पहुंची कुमारी की ख्याति
कुमारी की तपस्या और उनकी सुंदरता के बारे में जब बानासुरन को पता चला तो उसने विवाह का प्रस्ताव कुमारी के पास भेज दिया। बानासुरन के इस दुस्साहस से कुमारी बहुत क्रोधित हुईं, लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने बानासुरन के समक्ष ये प्रस्ताव रखा कि अगर वो युद्ध में उन्हें हरा दे तो, वो विवाह प्रस्ताव को मान लेंगी। इसके बाद बानासुरन और कुमारी के बीच एक भयानक युद्ध शुरू हुआ।  

युद्ध के दौरान ही बानासुरन समझ चुका था कि जिससे वो लड़ रहा है वो कोई साधारण कन्या नहीं है। अंत में कुमारी ने बानासुरन को परास्त कर दिया। मृत्यु से कुछ क्षण पहले बानासुरन को ज्ञात हुआ कि, ये कन्या कोई और नहीं बल्कि साक्षात देवी शक्ति का रूप हैं। मृत्यु से पहले बानासुर ने अपनी गलतियों के लिए माता से क्षमा भी मांगी। माना जाता है कि इसके बाद कुमारी अपने मूल रूप में आयीं और शिव लोक को चली गईं, लेकिन कुमारी ने अम्मन मंदिर में अपनी उपस्थिति बनाए रखी। मान्यताएं के अनुसार, आज भी कुमारी इस मंदिर में भगवान शिव का इंतजार कर रही हैं। माता शक्ति के कुमारी रूप की याद में ही इस स्थान का नाम कन्याकुमारी पड़ा था। 

कुमारी अम्मन मंदिर
कन्याकुमारी का अम्मन मंदिर कुमारी रूप को समर्पित है। मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में भक्तों की हर मुराद पूरी होती है। इसके साथ ही आत्मचिंतन और मनन के लिए भी यहां भक्त जाते हैं। मन की सभी उलझनों को माता दूर कर देती हैं, इसलिए आध्यात्म पथ पर चलने वालों के लिए भी यह स्थान बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

ये भी पढ़ें-

ये 3 राशियां गुस्से में बिगाड़ती हैं अपना ही काम, क्या आपकी राशि भी है इनमें शामिल?

कैसे शुरू हुई थी भंडारा करवाने की प्रथा? जानें इससे जुड़ी पौराणिक कथा और धार्मिक महत्व

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। News in Hindi के लिए क्लिक करें धर्म सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement