भारतीय सेना के सूत्रों से मिली खबर के अनुसार, Patrolling Point 17 (Hot Springs इलाका) से भी चीन की सेना पीछे हट गई है, जिसके बाद भारतीय सैनिक भी पीछे हटे हैं।
चीनी लोगों को चीनी फ़ौज सारा सामान दे रही है ताकि वो दिन और रात लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल की निगरानी करने में साथ दे सके।
चीन ने गलवान घाटी में अप्रैल 2020 के यथास्थिति को मानते हुए पीछे हटने का फैसला लिया और फिलहाल पेट्रोलिंग प्वॉइंट 14 से अपने सारे स्ट्रक्चर और गाड़ियों को हटा लिया है। वहीं पेट्रोलिंग प्वॉइंट 15 पर चीन ने लगभग अपनी बीस टेंट और करीब 200 जवानों को पीछे किया है।
ग्लोबल टाइम्स ने चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का बयान भी छापा है जिसमें कहा गया है कि मंगलवार (30 जून) को कमांडर स्तर की बातचीत में तनाव कम करने के लिए भारत और चीन की तरफ से सक्रिय प्रयास हुआ है।
भारत और चीन की सेनाओं ने मंगलवार को करीब 12 घंटे की कमांडर स्तरीय वार्ता में प्राथमिकता के साथ जल्द, चरणबद्ध और क्रमिक तरीक से तनाव घटाने पर जोर दिया। सैन्य सूत्रों ने इस बारे में बताया है।
पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ तल्ख सीमा गतिरोध की पृष्ठभूमि में भारतीय नौसेना ने अपने निगरानी अभियानों में वृद्धि करते हुए हिंद महासागर क्षेत्र में परिचालन तैनाती को बढ़ा दिया है।
भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी में जारी तनाव के बीच दोनों देशों में कोर कमांडर लेवल की मीटिंग कल मंगलवार (30 जून) को सुबह साढ़े दस बजे चुशूल के सामने मॉलडो में होगी।
गौरतलब है कि पूर्वी लद्दाख में 15 जून को चीन के साथ हिंसक झड़प में भारत के 20 सैन्यकर्मी शहीद हो गए। पूर्व रक्षा मंत्री ने कहा कि भारत संचार उद्देश्यों के लिए अपने क्षेत्र के भीतर गलवान घाटी में एक सड़क बना रहा था।
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता Zhao Lijian गलवान में हुई खूनी झड़प के बाद से ही चीन के मृतक सैनिकों से जुड़ी जानकारी को लेकर दुनियाभर के पत्रकारों के सवालों की बौछार का सामना करना पड़ रहा है।
सेना के हाथ खोलने के भारत के कदम से तिलमिलाया चीन अब ग्लोबल टाइम्स के जरिए कह रहा है कि यह एक गैर जिम्मेदाराना कदम है और इसके जरिए दोनो देशों के बीच हुए सबसे अहम समझौता टूट सकता है और इसके जरिए अनचाहा सैन्य मतभेद पैदा हो सकता है।
इस संघर्ष के बाद दोनों सेनाओं के बीच मेजर जनरल लेवल टॉक्स सुबह से शुरू हुई, जो तीन दिन तक चलने के बाद फिर स्थिति सामान्य हुई, लेकिन अभी भी पेट्रोलिंग पॉइंट 14 पर तनाव बरकरार है।
लद्दाखियों के शौर्य और वीरता की अनेक कहानियां हैं। फिर चाहे वह सैनिकों या स्वयंसेवकों रूप में पहाड़ की चोटी पर सामग्री ले जाने में मदद करने की हो या प्रतिकूल परिस्थितियों में 1962 के भारत-चीन युद्ध और 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान अपना अहम योगदान देना रहा हो।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने राहुल गांधी के ट्वीट का जवाब देते हुए एक ट्वीट किया और कहा कि लद्धाख के गलवान घाटी में एलएसी पर हमारे जवान निहत्थे नहीं थे बल्कि हमारे जवानों ने हथियारों का इस्तेमाल नहीं करने के संधि का पालन किया।
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