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7 साल बाद फिर एक साथ राहुल-अखिलेश, लेकिन दोनों में नहीं दिखा तालमेल; आखिर क्या है वजह?

अखिलेश यादव का अमेठी या रायबरेली में प्रचार का कोई कार्यक्रम नहीं है, जहां गांधी परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर है। सूत्रों ने दावा किया कि विपक्ष को चुनाव के बीच में कम से कम एक बार मधुर संबंध दिखाने की जरूरत महसूस हुई, इसलिए कन्नौज में संयुक्त रैली की गई।

Edited By: Khushbu Rawal @khushburawal2
Published : May 10, 2024 21:50 IST, Updated : May 11, 2024 6:33 IST
akhilesh yadav and rahul gandhi- India TV Hindi
Image Source : PTI अखिलेश यादव और राहुल गांधी

कांग्रेस नेता राहुल गांधी और समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव का शुक्रवार को इंडिया ब्लॉक की संयुक्त रैली में एक साथ तो आए, लेकिन तालमेल का अभाव दिखा। यह परिस्थितियों से मजबूर होकर एक अजीब गठबंधन प्रतीत हुआ। दोनों नेता शुक्रवार को कन्नौज में 7 साल बाद मंच पर एक साथ तो बैठे, लेकिन विपरीत दिशाओं में देख रहे थे। उनके भाषणों में विचारों का सामंजस्य भी नहीं था।

अखिलेश यादव ने कन्नौज से अपने संबंधों के बारे में बात की और मुख्य रूप से अपने लिए वोट देने का आग्रह किया। उन्होंने बताया कि जब उन्होंने मुख्यमंत्री आवास को खाली किया था, उसे 'गंगा जल' से धोया गया, उन्हें व्यक्तिगत रूप से अपमानित किया गया। लेकिन राष्ट्रीय मुद्दों के बारे में बात नहीं की। दूसरी ओर, राहुल गांधी ने महंगाई, बेरोजगारी और अन्य मुद्दों से निपटने में सरकार की विफलता के बारे में बात की।

अमेठी, रायबरेली में प्रचार नहीं करेंगे अखिलेश

अपने भाषण के अंत में उन्होंने कन्नौज में अखिलेश यादव को जिताने की अपील जरूर की। हालांकि, समाजवादी पार्टी के सूत्रों ने पुष्टि की है कि अखिलेश यादव का अमेठी या रायबरेली में प्रचार का कोई कार्यक्रम नहीं है, जहां गांधी परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर है। सूत्रों ने दावा किया कि विपक्ष को चुनाव के बीच में कम से कम एक बार मधुर संबंध दिखाने की जरूरत महसूस हुई, इसलिए रैली की गई।

कभी भी मधुर नहीं रहे राहुल-अखिलेश के रिश्ते

गौरतलब है कि राहुल गांधी और अखिलेश यादव के बीच रिश्ते कभी भी मधुर नहीं रहे हैं। हालांकि, दोनों पक्षों ने बातचीत की गुंजाइश हमेशा बनाए रखी। समाजवादी पार्टी हमेशा अमेठी और रायबरेली में उम्मीदवार उतारने से बचती रही है। कांग्रेस ने चुपचाप उसके एहसान को स्वीकार कर लिया है। दोनों नेता 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव के लिए चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के समझाने पर एक साथ आए। यह स्पष्ट है कि अखिलेश को लगता है कि कांग्रेस के साथ दीर्घकालिक गठबंधन उनकी पार्टी के लिए नुकसानदेह है।

कांग्रेस से साथ गठबंधन के पक्ष में नहीं थे मुलायम

दरअसल, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का वोट बैंक कभी कांग्रेस का आधार था। नब्बे के दशक की शुरुआत में जब देश में अयोध्या आंदोलन और मंडल राजनीति की लहर चली, तो समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस से मुस्लिम वोट छीन लिए, जबकि बसपा ने दलितों को अपने पाले में कर लिया। समाजवादी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ''मुलायम सिंह यादव कभी भी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के साथ गठबंधन के पक्ष में नहीं थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि इससे मुसलमानों की कांग्रेस में वापसी का रास्ता खुल सकता है।

कांग्रेस और सपा के एक साथ आने को सुविधा का विवाह कहा जा सकता है। क्योंकि उत्तर प्रदेश में सपा और पूरे देश में कांग्रेस को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसा लगता है कि राहुल गांधी और अखिलेश यादव दोनों को इसका एहसास है, इसलिए वे इस गठबंधन के लिए सहमत हुए हैं। केवल समय ही बताएगा कि क्या सुविधा की यह शादी तलाक की ओर बढ़ रही है। (IANS इनपुट्स के साथ)

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