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ये है दुनिया का सबसे बड़ा गड्ढा जहां से शुरू होता है नरक, अंदर से आती हैं चीखती-चिल्लाती आवाजें, जानिए रूस ने क्यों खोदा था इसे

दुनिया में सबसे बड़ा गड्ढा रूस ने खोदा था और इस गड्ढे को इतना खोदा गया था कि इसके बाद खुदाई करने पर भी गड्ढा नहीं होता था।

Written By: Pankaj Yadav @ThePankajY
Published : Jan 16, 2024 21:44 IST, Updated : Jan 16, 2024 21:44 IST
दुनिया का सबसे बड़ा गड्ढा- India TV Hindi
Image Source : SOCIAL MEDIA दुनिया का सबसे बड़ा गड्ढा

1950 के दशक में दुनिया के 2 सबसे ताकतवर देशों के बीच एक अजीब होड़ शुरू हुई और वो थी धरती के अंदर सबसे ज्यादा गहराई में जाने की। ये दो देश थे अमेरिका और सोवियत यूनियन। दोनों देशों के बीच इस होड़ में सोवियत यूनियन ने बाजी मार ली थी। बता दें कि अमेरिका और सोवियत यूनियन के बीच कोल्ड वॉर के दौरान दोनों देशों में धरती के सबसे अंदर तक जाने की होड़ शुरू हो गई। दोनों देखना चाहते थे कि कौन सबसे अंदर तक जा सकता है। 

अमेरिका ने सबसे पहले शुरू किया था ये काम

सबसे पहले अमेरिका ने इस प्रोजेक्ट पर अपना काम शुरू किया। अमेरिका ने इस प्रोजेक्ट को "मोहोल" (Mohole) नाम दिया। अमेरिका ने मैक्सिको के नजदीक ग्वाडलूप आइलैंड  पर एक जगह चुनी और धरती को खोदने का काम शुरू कर दिया। साल 1961 आते-आते अमेरिका ने 601 फिट तक धरती खोद डाली लेकिन 1966 में अमेरिकी कांग्रेस ने बजट और मिसमैनेजमेंट का हवाला देते हुए इस प्रोजेक्ट की फंडिंग से इनकार कर इसे रोक दिया।

रूस अपने काम में जुटा रहा और धरती में कर दिया 12.26 किमी तक ड्रिल

उधर, सोवियत यूनियन यानी कि रूस अपने प्रोजेक्ट पर काम करता रहा। रूस ने धरती में गड्ढा खोदने के लिए मरमंस्क प्रांत में फिनलैंड और नॉर्वे बॉर्डर पर कोला आइलैंड को ड्रिलिंग के लिए चुना। रूस ने इस प्रोजेक्ट को ‘कोला सुपर डीप बोरहोल’ (Kola Superdeep Borehole) नाम दिया। मई 1970 में ड्रिलिंग का काम शुरू किया गया और साल 1989 आते-आते 12.26 किलोमीटर (40,230 फिट) तक ड्रिल कर दिया गया। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि जितना गड्ढा रूस ने खोदा था वह धरती की कुल गहराई का 2% से भी कम था। धरती की इतनी गहराई में तापमान 180 डिग्री सेल्सियस था। 

शुरू हुई असली मुसीबत

1989 के बाद वैज्ञानिकों ने धरती में और गड्ढा खोदने की कोशिश की लेकिन ड्रिलिंग मशीन और दूसरे उपकरण इतने तापमान को झेल ही नहीं पा रहे थे। साल 1992 तक सोवियत यूनियन धरती को और खोदने की कोशिश करता रहा लेकिन वह आगे नहीं बढ़ पाया जितना गड्ढा उसने 1989 में खोदा था उससे आगे वह बढ़ ही नहीं पाया। 180 डिग्री तापमान के आगे नीचे की चट्टानें प्लास्टिक की तरह व्यवहार करने लगी थीं। वैसे रूस का ये प्लान था कि वह 15 किलोमीटर तक धरती को खोद सके लेकिन वह अपने काम में कामयाब नहीं हो पाया। इसी बीच सोवियत यूनियन का पतन हुआ और पैसों की कमी के कारण इस खुदाई को रोकना पड़ा।

इस गड्ढे को खोदने से रूस को क्या मिला

सोवियत रूस भले ही 15 किलोमीटर की गहराई तक नहीं पहुंच पाया, लेकिन उसका प्रोजेक्ट कई मायनों में अहम और सफल था। पूरी ड्रिलिंग के दौरान, गड्ढे से हाइड्रोजन, हीलियम, नाइट्रोजन और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैस बाहर निकलती रहीं लेकिन सबसे ज्यादा चौंकाने वाली अहम चीज 22,000 फीट (6.7 किमी) की गहराई पर मिली थी। वो थी 2 अरब वर्ष पुराने सूक्ष्म जीवाश्मों की 24 प्रजातियां। ये सूक्ष्म जीवाश्म (Microfossils) ऑर्गेनिक कार्बन और नाइट्रोजन कंपाउंड में लिपटे थे। वैज्ञानिकों के मुताबिक इसी के चलते ये इतनी गहराई में भी सुरक्षित रहे और तापमान बर्दाश्त कर पाए।

गड्ढे के अंदर से आने लगीं चीखती-चिल्लाती आवाजें

ऐसा कहा जाता है कि कोला सुपर डीप बोरहोल जब रूस खोद रहा था और जैसे ही उसने 40,230 फिट यानी 12.26 किलोमीटर से आगे ड्रिल करने की कोशिश तभी गड्ढे के अंदर एक चैंबर टूट गया और अंदर से भयानक चीखने-चिल्लाने जैसी आवाजें सुनी गईं। इन आवाजों की वजह से रूस ने खुदाई बंद कर दी। हालांकि इस बात की पुष्टि कभी हुई नहीं लेकिन इसके बाद से ही कोला सुपर डीप बोरहोल को ‘नर्क का द्वार’ कहा जाने लगा। फिलहाल ‘कोला सुपर डीप बोरहोल’ को पूरी तरह सील कर के बंद कर दिया गया है। 

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