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'स्कूली बच्चे को सुधारने के लिए शारीरिक दंड देना शिक्षा का हिस्सा नहीं...,' जानिए हाई कोर्ट ने क्यों की ये टिप्पणी?

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रवींद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने स्कूली बच्चों के मामलों को लेकर ये अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि स्कूली बच्चों की सही से देखभाल की जानी चाहिए।

Edited By: Dhyanendra Chauhan @dhyanendraj
Published : Aug 04, 2024 13:51 IST, Updated : Aug 04, 2024 14:04 IST
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी

'अनुशासन या शिक्षा के नाम पर स्कूल में बच्चे को शारीरिक हिंसा के लिए मजबूर करना क्रूरता है। बच्चे को सुधारने के लिए शारीरिक दंड देना शिक्षा का हिस्सा नहीं है।' छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक छात्रा को आत्महत्या के लिए उकसाने की आरोपी एक महिला टीचर की याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।

टीचर के खिलाफ बच्चे ने दर्ज कराई FIR

याचिकाकर्ता के वकील रजत अग्रवाल ने कहा कि फरवरी में सरगुजा जिले के अंबिकापुर में कार्मेल कॉन्वेंट स्कूल की टीचर सिस्टर मर्सी उर्फ ​​एलिजाबेथ जोस (43) के खिलाफ कक्षा 6 की छात्रा को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई थी।

मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा की खंडपीठ ने की टिप्पणी

हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रवींद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में एफआईआर और आरोपपत्र को रद्द करने की मांग करने वाली टीचर जोस की याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की थी।

जीवन के अधिकार में वह सब शामिल- हाई कोर्ट

29 जुलाई के अपने आदेश में हाई कोर्ट की पीठ ने कहा कि बच्चे को शारीरिक दंड देना भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत जीवन के उसके अधिकार के अनुरूप नहीं है। साथ ही हाई कोर्ट ने कहा, 'जीवन के अधिकार में वह सब शामिल है जो जीवन को अर्थ देता है और इसे स्वस्थ और जीने लायक बनाता है। इसका मतलब जीवित रहने या पशुवत अस्तित्व से कहीं बढ़कर है। अनुच्छेद 21 में  कहा गया है कि जीवन के अधिकार में जीवन का वह पहलू भी शामिल है, जो इसे गरिमापूर्ण बनाता है।'

बच्चों की सही से देखभाल की जानी चाहिए

कोर्ट ने कहा कि छोटा होना किसी बच्चे को वयस्क से कमतर नहीं बनाता है। अनुशासन या शिक्षा के नाम पर स्कूल में बच्चे को शारीरिक हिंसा के अधीन करना क्रूरता है। बच्चा एक अनमोल राष्ट्रीय संसाधन है, इसलिए उसका पालन-पोषण और सही से देखभाल की जानी चाहिए, न कि क्रूरता के साथ व्यवहार किया जाए। बच्चे को सुधारने के लिए उसे शारीरिक दंड देना शिक्षा का हिस्सा नहीं हो सकता है। 

पीटीआई के इनपुट के साथ 

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