Friday, May 23, 2025
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Kesari Chapter 2 Review: पहले ही सीन से नम हो जाएंगी आंखें, इंसाफ की कहानी दिखाने में अक्षय-माधवन 100% के साथ पास

Kesari Chapter 2 Review: अक्षय कुमार, आर माधवन और अनन्या पांडे स्टारर फिल्म 'केसरी चैप्टर 2' सिनेमाघरों में आज रिलीज हो गई है। फिल्म की कहानी, कलाकारों की एक्टिंग और पिक्चराइजेशन ने मिलकर इस बार बाजी मारी है। फिल्म दमदार है।

जया द्विवेदी
Updated : April 18, 2025 15:24 IST
Kesari Chapter 2 Review
Photo: INSTAGRAM अक्षय कुमार, अनन्या पांडे और आर माधवन।
  • फिल्म रिव्यू: केसरी चैप्टर 2 रिव्यू
  • स्टार रेटिंग: 4 / 5
  • पर्दे पर: 18.04.2025
  • डायरेक्टर: करण सिंह त्यागी
  • शैली: कोर्टरूम ड्रामा

'केसरी चैप्टर 2'- ये कहानी उस शख्स की है जिसने ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा रहते हुए उनकी नींव हिला दी। कभी अंग्रेजों का वफादार कहा जाने वाला ये शख्स बगावती बना और फिर एक ऐसे आंदोलन की शुरुआत की, जिसके लिए उसने न तलवार उठाई और न कलम, उसने सिर्फ अपने कानूनी अधिकारों का सही इस्तेमाल करते हुए इंसाफ की लड़ाई लड़ी और अंग्रेजी हुकूमत को जनता की अदालत में परास्त किया। ये कहानी सर एस शंकरन नायर की है, जिसने अपने एक विद्रोही फैसले से अंग्रेजों के पैरों तले जमीन खिसका दी। इस किरदार को फिल्म में अक्षय कुमार निभा रहे हैं। फिल्म में उनके साथ अनन्या पांडे, आर माधवन, अमित सियाल और मौमिता पाल जैसे शानदार एक्टर की टोली है। फिल्म आज सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। फिल्म की कहानी से लेकर कलाकारों की एक्टिंग के साथ सिनेमैटोग्राफी, एडिटिंग, राइटिंग, बैकग्राउंड स्कोर के साथ ही और भी कई खास पहलुओं पर जोर देंगे। जानने के लिए पढ़ें पूरा रिव्यू। 

कैसी है कहानी?

रिव्यू शुरू करने से पहले इस बात पर जोर देना चाहेंगे कि ये कहानी हर भारतीय को गर्व महसूस कराएगी। कहानी शुरू होती है 13 अप्रैल 1919 से, जहां प्रदर्शनकारियों का एक समूह रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए अमृतसर के जलियांवाला बाग में शांतिपूर्वक इकट्ठा होता है। जनरल डायर, अपने सशस्त्र सैनिकों के साथ घटनास्थल पर पहुंचता है और बिना किसी चेतावनी के निहत्थे लोगों पर गोलियां बरसाने का निर्देश देता है। हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया जाता है। अगले कई घंटों तक लाशों को घटनास्थल पर चील-कौवों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता है। प्रेस को इस बारे में कुछ भी लिखने से रोका जाता है। सरकार का पक्ष अखबरों के पहले पनने पर छपता है, जिसमें लिखा जाता है कि प्रदर्शकारी हथियारबंद आतंकी थे, उनके हमलावर होने के चलते गोलियां चलानी पड़ीं। एक ओर प्रेस का मुंह तो बंद हो गया, लेकिन लोगों के बीच गुस्सा भड़क गया। इसका हल भी ब्रिटिश सरकार ने निकाला, एक ओर 25 रुपये का मुआवजा बांटा तो दूसरी ओर इस मामने में एक फर्जी जांच बैठाने के निर्देश दिए। इसी जांच का हिस्सा थे हाल ही में नाइटहुड की उपाधि हासिल करने वाले सर सी शंकरन नायर।

ब्रिटिश सरकार एक जांच आयोग बनाती है। सर सी शंकरन नायर (अक्षय कुमार) इस आयोग में एकमात्र भारतीय हैं, जिनका ब्रिटिश न्याय प्रणाली में पूरा विश्वास है। क्राउन पहले से ही ये बात मानता है कि वो उनके लिए कठपुतली का काम करेंगे। जांच के दौरान ब्रिटिश सरकार इस मामले से जुड़े तथ्यों को दबाती है। इस दौरान नायर की नजर एक युवा क्रांतिकारी लड़के परगट सिंह (कृष्ण राव) पर पड़ती है। इस लड़के से नायर का पुराना कनेक्शन निकलता है। वो क्या है, इसे यहां बताकर सस्पेंस नहीं खत्म करेंगे, लेकिन यही युवा कहानी में टर्निंग पॉइंट लेकर आता है, जो सर सी शंकरन नायर के विचारों को बदल देता है और इस 13 साल के लड़के की मौत उन्हें सबसे बड़े शासक के खिलाफ एक आवाज के तौर पर खड़ा कर देती है। आगे नायर की मुलाकात दिलरीत गिल (अनन्या पांडे) से होती है। नायर का हृदय परिवर्तन असल में इस जूनियर बैरिस्टर से मिलकर ही होता है। कहानी पूरी तरह से करवट लेती है और कोर्ट रूम ड्रामा शुरू होता है। नायर के खिलाफ जनरल डायर का केस नेविल मैककिनले (आर माधवन) लड़ते हैं। इस बीच एक भारतीय, सभी को अपनी उंगलियों पर नचाता नजर आता है, जो ब्रिटिश सरकार का चाटूकार (अमित सियाल) होता है। शंकरन और नेविल का पुराना रिश्ता, उनके बीच की आग को और बढ़ाता है और इसका असर कोर्ट में देखने को मिलता है। अब क्या शंकरन नायर जलियांवाला बाग में मौत के घाट उतारे गए मासूम लोगों को इंसाफ दिला पाते हैं या नहीं, ये देखने के लिए आपको फिल्म देखनी ही पड़ेगी।

निर्देश, स्क्रिप्ट राइटिंग के साथ पिक्चराइजेशन

'केसरी चैप्टर 2' रघु पालत और पुष्पा पालत की किताब ‘द केस दैट शुक द एम्पायर: वन मैन्स फाइट फॉर द ट्रुथ अबाउट द जलियांवाला बाग मैसेकर’ पर आधारित है। फिल्म को पूरी तरह से डॉक्यूमेंट नहीं किया गया है, शायद अगर ऐसा किया जाता तो कहानी बोरिंग हो सकती थी। इस कहानी को पूरे इमोशन के साथ पेश किया गया है। दर्द, आंसू, चीख-पुकार और अपनों को खोने का गम हर एक सीन में चीख-चीख कर पर्दे पर बाहर आ रहा है। कहानी की एस्टैब्लिशिंग शुरुआत ही दर्शकों को बांध देती है। 20-30 मिनट का वक्त नहीं लिया गया है, बल्कि पहले ही सीन से निर्देशक का जोर दर्शकों की आंखें नम करने पर रहा है और ये कहना गलत नहीं होगा कि वो ये करने में पूरी तरह कामयाब रहे। शुरुआत अगर अव्वल दर्जे की रही तो फिल्म का क्लाइमैक्स भी कम नहीं था, ये हर हिंदुस्तानी को तालियां बजाने, सीटी मारने, इंकलाब जिंदाबाद और भारत माता की जय के नारे थिएटर में लगाने के लिए मजबूर करने वाला है। अब आते हैं बीच के हिस्सों पर, फिल्म एक भी भाग में बोछिल नहीं करती है, सही समय पर सही पन्ने खुलते हैं, हर एक एक्टर को उसके किरदार में ढलने का पूरा मौका दिया गया है। फिर चाहे वो जान निसार अख्तर का छोटा सा किरदार ही क्यों न हो। करण सिंह त्यागी और अमृतपाल सिंह बिंद्रा की कहानी अविश्वसनीय है। दोनों पूरी तरह से हर तारीफ के हकदार है। फिल्म हर मोड़ पर बांधे रखती है और अंत में एक उम्मीद के साथ छोड़ती है, आखिर अब तो ये अंग्रेज सॉरी बोल ही देंगे। आर माधवन और अक्षय कुमार के बीच टकराव के पल दिलचस्प हैं। सुमित सक्सेना के लिखे हुए संवाद आपके दिल और दिमाग पर चोट करेंगे। कुछ संवादों पर सीट से उछलने और तालियों की गड़गड़ाहट करने से खुद को रोक नहीं पाएंगे। 

करण सिंह त्यागी का निर्देशन सरल, सुलझा, सटीक और सही दिशा में है, जो कहानी को मकसद से कहीं भी नहीं भटकाता है। बुनियादी स्तर पर यही लगेगा कि ये एक नायक की खलनायक से लड़ाई की कहानी है, लेकिन ये चंद पलों में ही पूरे देश की लड़ाई की कहानी बन जाती है। एक के बाद एक नए कलाकारों की एंट्री होना और सिलसिलेवार तरीके से इसे पेश करना कड़ी दर कड़ी कहानी को आगे बढ़ाता है। मार्था स्टीवंस वाले ट्रैक से क्लाइमेक्स तक पहुंचने में रोमांच हर पल बढ़ता जाता है, क्योंकि कहानी इतिहास से जुड़ी है तो शायद काफी लोगों को मालूम होना स्वाभाविक है, लेकिन फिर भी कहानी में रोमांच की कमी कहीं नहीं होती।

अब आते ही फिल्म के पिक्चराइजेशन पर जो इस कहानी को और ज्यादा प्रभावी बना रहे हैं। फिल्म के बैकग्राउंड स्कोर कई जगहों पर इतने जोरदार है कि ये आपके रोंगटे खड़े करेंगे और तो और शरीर में सिहरन और कंपकपाहट भी पैदा कर सकते हैं। वहीं फिल्म में तीन ही गाने हैं, लेकिन हर एक को बैकग्राउंड म्यूजिक और फील देने के लिए इस्तेमाल किया गया है। फिल्म में 'तेरी मिट्टी' आइकॉनिक केसरी सॉन्ग भी सुनने को मिलेगा। इसके अलावा 'कित्थे गया तू साइयां' और 'शेरा' कहानी को गति देते हैं। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी की खास तारीफ होनी चाहिए। कैमरा एंगल का सही इस्तेमाल किया गया है। कुछ जगहों पर जूम और एक्स्ट्रीम जूम शॉट लिए गए हैं। नरसंहार के दृश्यों को शानदार अंदाज में कैप्चर किया गया है। शंकरन नायर की एंट्री के दौरान सूरज की किरणों के ग्लेयर का सही इस्तेमाल किया गया है। इसके अलावा ये एक वेल एडिटेट फिल्म है, जो अच्छी सिनेमैटोग्राफी को और निखार रही है। देबोजीत रे की सिनेमैटोग्राफी और नितिन बैद की एडिटिंग की तारीफ बनती है। ये कहना गलत नहीं कि वीएफएक्स कम हैं, लेकिन टॉपक्लास हैं।

कैसी है कलाकारों की एक्टिंग

एक्टिंग पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है। अक्षय कुमार में पहले वाली चमक लौट आई है। वो शानदार हैं। उन पर डायलॉग डिलीवरी को लेकर अक्सर आरोप लगते रहे हैं, कहा जाता है कि उनका फ्लो इसलिए टूट जाता है क्योंकि वो टीपी पढ़ते हैं, लेकिन इस बार अक्षय ने इन दावों को गलत साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। उनके हिस्से सबसे प्रभावशाली डायलॉग आए और उन्होंने इसको परफेक्ट अंदाज में पेश किया है। दमदार संवाद उनकी दमदार एक्टिंग के चलते और ज्यागा निखर गए हैं। उनकी योग्यता पर सवाल उठाने वालों पर 'केसरी चैप्टर 2' करारा प्रहार है। अनन्या पांडे ने इस बार साबित किया है कि स्टारकिड में भी टैलेंट हो सकता है। मार्था स्टीवंस वाली केस प्रोसीडिंग वो जिस अंदाज में कोर्ट में खुद स्थापित करती हैं, वो ये साबित कर रहा है कि वो आने वाले समय में बेहतरीन एक्ट्रेसेज में गिनी जाएंगी। उन्होंने मासूमियत, दर्द और हाजिरजवाब, तीनों ही भावों को पर्दे पर लाने में इंसाफ किया है। 

अब आते हैं एक्टिंग के बाजिगर आर माधवन पर, उनकी एंट्री इंटरवल से थोड़ा ही पहले होती है, लेकिन उनका असल मिजाज इंटरवल के बाद देखने को मिलता है। वो देर से आते हैं लेकिन दुरुस्त आते हैं। वो एंट्री के साथ ही छा जाते हैं। उनकी आंखों में बदले की आग और उत्तेजना देखना देखने को मिलती है। कृष राव का किरदार महत्वपूर्ण है और वो छोटे से रोल में भी गहरा प्रभाव छोड़ रहे हैं। अमित सियाल (तीरथ सिंह) के रोल में हमेशा की तरह शानदार और प्रभावी हैं। वो कहानी को स्ट्रेंथ दे रहे हैं। स्टीवन हार्टले (न्यायाधीश मैकआर्डी), सैमी जोनास हेनी (हेरोल्ड लैक्सी; जूरी सदस्य), मार्क बेनिंगटन (माइकल ओ'डायर), एलेक्स ओ'नेल (लॉर्ड चेम्सफोर्ड), रोहन वर्मा (जान निसार), एलेक्जेंड्रा मोलोनी (मार्था स्टीवंस), जयप्रीत सिंह (कृपाल सिंह) और ल्यूक केनी (अपील अदालत के न्यायाधीश) ने भी बहुत अच्छा अभिनय किया है।

क्यों देखें ये फिल्म

'केसरी चैप्टर 2' एक मस्ट वॉच फिल्म है। ये सच, इंसाफ और दर्द की कहानी है, जिसे पूरी इमांदारी से पेश किया गया है। भारतीय इतिहास के एक अनकहे और चौंकाने वाले अध्याय को बयां करती इस कहानी जरूर एक मौका मिलना चाहिए। हम इस फिल्म को 4 स्टार दे रहे हैं। 

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