नई दिल्ली: इच्छा मृत्यु को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कुछ गाइडलाइंस के साथ इच्छा मृत्यु को मंजूरी दे दी है। सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों ने ये फैसला सुनाया है। गाइड लाइंस में इच्छा मृत्यु की शर्तों के बारे में विस्तार से बताया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर बीमारी से पीड़ित शख्स के लिविंग विल को मंजूरी दी है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की खंडपीड ने अपने फैसले में कहा कि हर शख्स को सम्मान से मरने का अधिकार है।
इच्छामृत्यु के लिए सबसे पहले वर्ष 2011 में नर्स अरुणा शानबाग के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी तभी से इसे लेकर बहस छिड़ी हुई थी। नर्स अरुणा शानबाग 42 साल तक कोमा में रही थीं। वर्ष 2011 में जब ये केस सामने आया था तो इसने सबको हिला कर रख दिया था। अरुणा शानबाग के साथ 1973 में रेप की कोशिश हुई थी। रेप में नाकाम रहने पर अस्पताल के वार्ड ब्वॉय ने उन पर हमला किया था जिसके बाद से वो लगातार कोमा में थीं।
वह निमोनिया से पीड़ित थी। उन्हें लकवा मार गया था, साथ ही उनकी आंखों की रोशनी भी चली गई थी। 24 जनवरी 2011 को घटना के 27 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने अरुणा की दोस्त पिंकी बिरमानी की ओर से यूथेनेशिया के लिए दायर याचिका पर फैसला सुनाया था। कोर्ट ने अरुणा की इच्छा मृत्यु की अर्जी मंजूर करते हुए मेडिकल पैनल गठित करने का आदेश दिया था। हालांकि 7 मार्च 2011 को कोर्ट ने अपना फैसला बदल दिया था।
वहीं वार्ड ब्वॉय सोहनलाल पर हत्या के प्रयास और रेप का मुकदमा चला लेकिन रेप का आरोप साबित नहीं हो सका। हत्या करने के प्रयास में सोहनलाल को 7 साल की सजा हुई जिसे काटकर वो आम जिंदगी जीने लगा लेकिन उस घटना के बाद से अरुणा मरते दम तक लगभग 4 दशक तक कोमा में रहीं और साल 2015 में 68 साल की उम्र में अरुणा शानबाग की मौत हो गई।
क्या है Euthanasia?
जब कोई मरीज बहुत ज्यादा पीड़ा से गुजर रहा होता है या उसे ऐसी कोई बीमारी होती है जो ठीक नहीं हो सकती और जिसमें हर दिन मरीज मौत जैसी स्थिति से गुजरता है तो उन मामलों में कुछ देशों में इच्छा मृत्यु दी जाती है। बेल्जियम, नीदरलैंड, स्विट्जरलैंड और लक्जमबर्ग में इच्छामृत्यु की इजाजत है। अमेरिका के सिर्फ 5 राज्यों में ही इसकी इजाजत है।
भारत में यह मुद्दा विवादास्पद है। धार्मिक वजहों से लोग ये मानते हैं कि किसी को इच्छामृत्यु की इजाजत देना ईश्वर के खिलाफ जाने के समान है। मरीज के परिवार के लोग भी इसे लेकर सहज नहीं रहते। यह उम्मीद भी रहती है कि मरीज किसी दिन अपनी बीमारी से बाहर आ जाएगा।