Thursday, April 25, 2024
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पूरे दक्षिण एशिया की नस्ल एक, सभी के पूर्वज एक, बाहर ने नहीं आए आर्य: प्रोफेसर बसंत शिंदे

हड़प्पा सभ्यता के सबसे बड़े ज्ञात शहर ‘राखीगढ़ी’ से प्राप्त नमूनों पर हुए एक हालिया शोध ने ‘आर्यों के बाहरी होने’ के सिद्धांत पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।

Bhasha Reported by: Bhasha
Published on: September 15, 2019 13:57 IST
Aryans never invaded India, almost all South Asia has the same DNA, says Shinde- India TV Hindi
Representational Image

नई दिल्ली: हड़प्पा सभ्यता के सबसे बड़े ज्ञात शहर ‘राखीगढ़ी’ से प्राप्त नमूनों पर हुए एक हालिया शोध ने ‘आर्यों के बाहरी होने’ के सिद्धांत पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। यह शोध प्रतिष्ठित शोधपत्रिका ‘सेल’ में ‘हड़प्पा के एक प्राचीन जीनसमूह में पूर्वी-यूरोप (स्टेपी) या ईरानी कृषकों का डीएनए अनुपस्थित’ शीर्षक से इसी महीने प्रकाशित हुआ। इसके मुख्य शोधकर्ता एवं पुणे स्थित डेक्कन कॉलेज के पूर्व कुलपति प्रोफेसर बसंत शिंदे से 5 सवाल:​

सवाल: सिंधु घाटी (हड़प्पा) सभ्यता के नष्ट होने का मुख्य कारण आर्यों का हमला बताया जाता है। क्या आर्य बाहर से आये?

जवाब: हमारा शोध प्रकाशित होने के बाद ज्यादातर चर्चा वैज्ञानिक (DNA) साक्ष्यों को लेकर हुई। हमारे शोध में वैज्ञानिक साक्ष्यों के साथ-साथ पुरातात्विक साक्ष्य भी स्पष्ट बताते हैं कि इतिहास में आर्यों का हमला या बड़े स्तर पर पलायन जैसा कुछ नहीं हुआ। लोगों का व्यापार आदि के सिलसिले में संपर्क था, इसके कारण कुछ मिश्रित डीएनए मिलते हैं। आर्य बाहरी थे, यह सिद्धांत अवैज्ञानिक और बेबुनियाद है। यह सिर्फ अनुमानों पर आधारित है। मैं कहना चाहूँगा कि ‘अफगानिस्तान से लेकर बंगाल और कश्मीर से लेकर अंडमान-निकोबार तक, पूरे दक्षिण एशिया’ की नस्ल एक है, सभी के पूर्वज एक हैं। आर्य-अनार्य की बातें गलत सिद्धांत के कारण बाद में होने लगीं। 

सवाल: फिर हड़प्पा का पतन कैसे हुआ?
जवाब: वैज्ञानिक साक्ष्य हड़प्पा सभ्यता के पतन का मुख्य कारण ‘पर्यावरण में बदलाव’ बताते हैं। 2,000 ईसा-पूर्व के आस-पास पर्यावरण शुष्क होने लगा था। इससे सिर्फ हड़प्पा ही नहीं बल्कि मिस्र और मेसोपोटामिया की तत्कालीन सभ्यताओं का भी साथ-साथ पतन हुआ। हड़प्पा सभ्यता की मुख्य बसावटें सरस्वती नदी के आस-पास रहीं। जब सरस्वती सूखने लगी, तो लोग अन्य स्थलों की ओर बढ़ने लगे। इसी कारण वहां की बसावटों का पतन हुआ।

सवाल: आर्यों को बाहरी बताने वाले लोग भाषाई तर्क रखते हैं। उनके अनुसार, संस्कृत समेत अधिकांश भारतीय भाषाएं इंडो-यूरोपीयन हैं और पूर्वी यूरोप से आर्यों के आने से ऐसा हुआ। आपकी राय?
जवाब: हमें भाषा और लिपि का फर्क समझना चाहिए। संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है, इसका विकास 2000 या 1500 ईसा पूर्व में हुआ। हालांकि भाषाई मुद्दे का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिलता है। यह भी कहा जा सकता है कि सभी इंडो-यूरोपीयन भाषाओं का उद्गम संस्कृत है। हमारा शोध बताता है कि पहले यहां के लोग बाहर गये, फिर बाहरी लोग आये। इससे साबित होता है कि संस्कृत का असर वहां की भाषाओं पर पड़ा। अब लिपि की बात। हड़प्पा सभ्यता की लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि हड़प्पा के लोग भी संस्कृतभाषी थे, बस उनकी लिपि अलग थी। अभी दक्षिण भारत को देखें तो संस्कृत सबसे अधिक वहीं जीवित है। दक्षिण भारत की भाषाओं का संस्कृत से बहुत साम्य मिलता है।

सवाल: हड़प्पा सभ्यता को नागरीय और वैदिक सभ्यता को ग्रामीण कहा जाता है, आप क्या कहेंगे?
जवाब: हड़प्पा सभ्यता में सिर्फ 5 बड़े शहर मिलते हैं। इसके अलावा 8-10 छोटे शहर मिले हैं। अभी तक हड़प्पा सभ्यता की 2,000 से अधिक बसावटें मिल चुकी हैं। अधिकांश बसावटें ग्रामीण हैं। वैदिक साहित्य में भी शहरों का जिक्र है। ज्ञात पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर हड़प्पा और वैदिक सभ्यता एक ही साबित होती है। राखीगढ़ी की खुदाई में विभिन्न ज्यामितीय अग्निकुंड मिले हैं। वैदिक साहित्य में भी इन अग्निकुंडों का जिक्र है। हड़प्पा सभ्यता के लोग अग्नि पूजक थे, यह स्पष्ट है। हड़प्पा के लोग ही वैदिक लोग थे, इसका इससे बड़ा क्या सबूत हो सकता है?

सवाल: कुछ खबरों में इस शोध को राजनीति से प्रेरित बताया गया है, क्या कहेंगे?
जवाब: यह शोध 2006 में शुरू हुआ। खुदाई शुरू हुई और हम साक्ष्य जुटाते रहे। हमने कयासों पर नहीं, वैज्ञानिक-पुरातात्विक प्रमाणों पर जोर दिया। प्रतिष्ठित वैश्विक संस्थानों में नमूनों की जांच की गयी। वैज्ञानिक-पुरातात्विक साक्ष्यों के कारण ही हमारा शोध ‘सेल’ में प्रकाशित हुआ। अब सारे परिणाम 2019 में आ पाए तो हम क्या कर सकते हैं? यह पहले हो जाता तब भी लोग कुछ न कुछ कहते। दरअसल जो राजनीति से संचालित हो रहे हैं, उन्हें हर चीज में राजनीति दिखाई देती है।

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