नई दिल्ली: कांची कामकोटि पीठ के शंकाराचार्य जयेंद्र सरस्वती को आखिरकार लंबी प्रक्रिया के बाद उनके गुरु के बगल में महासमाधि दे दी गई। महासमाधि से पहले परंपरागत तरीके से पूजा-पाठ और सभी जरूरी संस्कार किए गए। बयासी साल की उम्र में शंकाराचार्य जयेंद्र सरस्वती का कल निधन हो गया था। उन्हें सांस लेने में तकलीफ के बाद अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। पिछले साल से ही उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा था। कांची कामकोटि पीठ की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने पांचवीं सदी में की थी। जयेंद्र सरस्वती इस पीठ के उनहत्तरवें शंकाराचार्य थे। जयेंद्र सरस्वती की गिनती मठ में जात-पात को तोड़ने वाले शंकराचार्य के तौर पर होती है। शंकराचार्य के अंतिम संस्कार को बृंदावन प्रवेशा कार्यक्रम कहते हैं जिसमें पूरा दिन लग सकता है।
18 जुलाई 1935 को तमिलनाडु में जन्मे सुब्रमण्यम महादेव अय्यर को पूरा भारत शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती के नाम से जानता है। अपने ज्ञान और हिंदू धर्म के प्रति निष्ठा ने उन्हें हिंदू धर्म के योद्धा के रूप में स्थापित किया। बचपन से ही तेज बुद्धि और दूसरे बच्चों से कुछ अलग जयेंद्र कम उम्र में ही कांची मठ आ गए थे। धर्म के प्रति निष्ठा और वेदों के गहन ज्ञान को देखते हुए मात्र 19 वर्ष की उम्र में उन्हें 22 मार्च 1954 को दक्षिण भारत के तमिलनाडु के कांची कामकोटि पीठ का 69वां पीठाधिपति घोषित किया गया।
पीठाधिपति घोषित किए जाने के बाद ही उनका नाम जयेंद्र सरस्वती पड़ा। उन्हें कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी चंद्रशेखरन सरस्वती स्वामीगल ने अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। कांचीपुरम द्वारा स्थापित कांची मठ एक हिंदू मठ है, जो पांच पंचभूतस्थलों में से एक है। मठ द्वारा कई स्कूल और आंखों के अस्पताल चलाए जाते हैं। 23 साल तक पीठाधिपति रहने के बाद उन्होंने वर्ष 1983 में शंकर विजयेंद्र सरस्वती को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था।