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ऑपरेशन कैक्टस की कहानी जब मालदीव पहुंची थी भारतीय सेना

विदेशी धरती पर आजादी के बाद भारत का यह पहला सैन्य अभियान था जिसे ऑपरेशन कैक्टस नाम दिया गया और इसकी अगुवाई पैराशूट ब्रिगेड के ब्रिगेडियर फारुख बुलसारा कर रहे थे।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published : February 08, 2018 10:07 IST
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ऑपरेशन कैक्टस की कहानी जब मालदीव पहुंची थी भारतीय सेना

नई दिल्ली: मालदीव की सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच जारी टकराव के कारण वहां पैदा हुए संकट के बीच चीन ने अप्रत्यक्ष रूप से भारत को इस देश हस्तक्षेप को लेकर चेताया है और कहा है कि देश के राजनीतिक संकट में बाहरी 'हस्तक्षेप' से स्थिति और जटिल होगी। चीन ने यह बयान ऐसे समय में दिया है, जब एक दिन पहले मंगलवार को मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने देश में गहराते संकट के बीच भारतीय सेना से हस्तक्षेप का आग्रह किया था। वहीं भारत सरकार के सूत्रों ने भी संकेत दिए कि भारत इस मामले में मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) का पालन कर सकता है, जिसमें सेना को तैयार रखना शामिल है। सूत्रों ने कहा कि दक्षिण भारत के एक प्रमुख एयरबेस पर सैनिकों की गतिविधियां देखी जा रही हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय के कई सदस्यों ने भी भारत से इस मामले में उसी तरह दखल देने को कहा है जिस तरह साल 1988 में भारतीय सेना ने ऑपरेशन कैक्टस चलाकर महत्वपूर्ण कदम उठाया था।

क्या है ऑपरेशन कैक्टस

पीपल्स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम के करीब 200 श्रीलंकाई आतंकवादियों ने 1988 में मालदीव पर हमला कर दिया था जिसके बाद मालदीव की तरफ से आए इमरजेंसी मैसेज के 9 घंटे बाद ही भारतीय सेना के कमांडो मालदीव गए थे और कुछ ही घंटों में सब कुछ अपने नियंत्रण में लिया और तख्तापलट को नाकाम कर दिया। ईलम के हथियारबंद उग्रवादी स्पीडबोट्स के जरिये पर्यटकों के भेष में मालदीव पहुंचे थे। श्रीलंका में कारोबार करने वाले मालदीव के अब्दुल्लाह लथुफी ने उग्रवादियों के साथ मिलकर तख्ता पलट की योजना बनाई थी जिसमें पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नसीर पर भी साजिश में शामिल होने का आरोप था।

मालदीव के प्रमुख सरकारी भवन, एयरपोर्ट, बंदरगाह और टेलिविजन स्टेशन पर उग्रवादियों के नियंत्रण के बाद उसे आजाद करने के लिए 3 नवंबर 1988 की रात को ऑपरेशन कैक्टस शुरू हुआ जब भारतीय वायुसेना ने भारतीय सेना की पैराशूट ब्रिगेड के करीब 300 जवानों को माले पहुंचाया। नौ घंटे के भीतर ही नॉन स्टॉप उड़ान भरते हुए भारतीय सेना हुलहुले एयरपोर्ट पर पहुंची। यह एयरपोर्ट माले की सेना के नियंत्रण में था।

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ऑपरेशन कैक्टस की कहानी जब मालदीव पहुंची थी भारतीय सेना

हुलहुले से भारतीय टुकड़ी राजधानी माले पहुंची। भारतीय सेना की इस मौजूदगी ने उग्रवादियों के मनोबल को तोड़ दिया। इसी दौरान भारतीय सेना ने सबसे पहले माले एयरपोर्ट को अपने नियंत्रण में लिया और राष्ट्रपति गय्यूम को सुरक्षित किया। भारतीय नौसेना के युद्धपोत गोदावरी और बेतवा ने माले और श्रीलंका के बीच उग्रवादियों की सप्लाई लाइन काट दी और कुछ ही घंटों के भीतर भारतीय सेना माले से उग्रवादियों को खदेड़ने लगी। वापस श्रीलंका की ओर भागते लड़ाकों ने एक जहाज को अगवा कर लिया। अगवा जहाज पर आईएनएस गोदावरी से एक हेलिकॉप्टर के जरिए मरीन कमांडो उतार दिये जिसमें 19 लोग मारे गए। इस दौरान दो बंधकों की भी जान गई।

विदेशी धरती पर आजादी के बाद भारत का यह पहला सैन्य अभियान था जिसे ऑपरेशन कैक्टस नाम दिया गया और इसकी अगुवाई पैराशूट ब्रिगेड के ब्रिगेडियर फारुख बुलसारा कर रहे थे। दो दिन के भीतर पूरा अभियान खत्म हो गया। भारत के इस कार्रवाई को संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और ब्रिटेन समेत कई देशों ने तारीफ की लेकिन श्रीलंका ने इसका कड़ा विरोध किया। माले में ऑपरेशन कैक्टस आज भी दुनिया के सबसे सफल कमांडो ऑपरेशनों में गिना जाता है।

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