Friday, April 26, 2024
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Rajat Sharma’s Blog: यूपी विधानसभा चुनावों के लिए क्या है योगी की रणनीति?

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के अन्य शीर्ष नेताओं से मुलाकात की।

Rajat Sharma Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: June 12, 2021 16:15 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के अन्य शीर्ष नेताओं से मुलाकात की। इसके साथ ही यूपी की लीडरशिप को लेकर चल रही सभी अटकलों पर विराम लग गया। जो राजनीतिक पंडित ये अटकलें लगा रहे थे कि उत्तर प्रदेश में अगला विधानसभा चुनाव योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में लड़ा जाएगा या नहीं, उन्हें जवाब मिल गया। जो लोग दावा कर रहे थे कि पीएम मोदी योगी के काम करने के तरीके से नाखुश हैं, उन्होंने अब कयास लगाना बंद कर दिया है। अब यह तय है कि उत्तर प्रदेश में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ ही बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री पद के दावेदार होंगे।

दिल्ली में पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा के साथ योगी की इस बात को लेकर चर्चा हुई कि चुनाव के लिए रोड मैप कैसे बनाया जाए और संगठन को कैसे गियर अप किया जाए। उत्तर प्रदेश में बीजेपी के ब्राह्मण नेता और ब्राह्मण समाज के गैर राजनीतिक नेता कई दिनों से शिकायत कर रहे हैं कि सूबे में ब्राह्मणों की उपेक्षा की जा रही है। जब उन्हें बताया जाता है कि सरकार में दिनेश शर्मा उपमुख्यमंत्री हैं, श्रीकांत शर्मा, ब्रजेश पाठक, रीता बहुगुणा जैसे बड़े-बड़े ब्राह्मण चेहरे मंत्री हैं, तो वे कहते हैं कि ये लोग सरकार का हिस्सा तो हैं, लेकिन सरकार में उनकी चलती नहीं है। पार्टी नेतृत्व ने यह विश्वास दिलाने की कोशिश की है कि ब्राह्मण समुदाय की उपेक्षा नहीं की जाएगी। इसके अलावा पार्टी हाईकमान ओबीसी कुर्मी समुदाय की बड़ी नेता अनुप्रिया पटेल की नाराजगी को दूर करने की कोशिश कर रहा है। अति पिछड़े मल्लाह समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले संजय निषाद से भी कई राउंड की बातचीत की गई है। पार्टी नेतृत्व आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए जातिगत समीकरण को जोड़ने की कोशिश कर रहा है।

जहां तक योगी आदित्यनाथ का सवाल है, मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि किसी भी पार्टी के लिए एक ऐसे लीडर को बनाना, जिसकी पूरे देश में स्वीकार्यता हो, कोई आसान काम नहीं होता। पिछले 2-3 साल में बीजेपी ने अरुण जेटली, सुषमा स्वारज और मनोहर पर्रिकर जैसे कई नेताओं को खो दिया जो बरसों की मेहनत के बाद पार्टी का राष्ट्रीय चेहरा बने थे। पिछले 5-6 सालों में अमित शाह एक ताकतवर राष्ट्रीय नेता के रूप में उभरकर आए हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश में पहले लोकसभा और फिर विधानसभा चुनावों में पार्टी के झंडे गाड़कर अपनी छाप छोड़ी। उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद पिछले 3-4 साल में योगी आदित्यनाथ ने भी राष्ट्रीय स्तर पर खुद की छाप छोड़ी है। वह बीजेपी की राष्ट्रीय पहचान का हिस्सा बने और बंगाल, महाराष्ट्र, ओडिशा और कर्नाटक विधानसभा चुनावों में पार्टी के स्टार कैम्पेनर बनाए गए। यह सोचना गलत है कि बीजेपी नेतृत्व योगी को यूपी की लीडरशीप से हटाकर उन्हें साइडलाइन कर देगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बात को बड़े अच्छे से समझते हैं कि एक नेता को राष्ट्रीय पहचान हासिल करने में सालों लग जाते हैं और ऐसे नेताओं का उपयोग पार्टी के राजनीतिक आधार को बढ़ाने के लिए भलीभांति किया जाना चाहिए।

 
ममता के पास वापस क्यों गए मुकुल रॉय?

इस बीच पश्चिम बंगाल में शुक्रवार को हुए राजनीतिक घटनाक्रम में बीजेपी उपाध्यक्ष मुकुल रॉय और उनके बेटे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस में वापस लौट आए। मुकुल रॉय 2017 में पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल होने वाले पहले तृणमूल नेता थे। उनके बीजेपी में शामिल होने के बाद बंगाल विधानसभा चुनावों से पहले टीएमसी के कई विधायकों और अन्य नेताओं ने भगवा दल का दामन थाम लिया था।

मुकुल रॉय ने इस बार बीजेपी के टिकट पर कृष्णानगर दक्षिण से चुनाव जीता था। ममता के भारी बहुमत से सत्ता बरकरार रखने के साथ ही अब तृणमूल से बीजेपी में गए नेताओं की ‘घर वापसी’ शुरू हो गई है। ममता बनर्जी ने शुक्रवार को कहा कि वह उन नेताओं का तृणमूल में स्वागत करेंगी जिन्होंने बीजेपी में शामिल होने के बाद भी अच्छा बर्ताव किया है। मुकुल रॉय शारदा घोटाले और नारदा स्टिंग में अभी भी आरोपी हैं।

रॉय ने शायद तृणमूल इसलिए छोड़ी क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि एक तो सीबीआई उन पर हाथ डालने से बचेगी, और दूसरा बंगाल बीजेपी का कोई बड़ा नेता न होने की वजह से उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाएगा। लेकिन उनकी कोई भी उम्मीद पूरी नहीं हुई। न तो दोनों घोटालों से उनके नाम हटे और न ही बीजेपी ने उन्हें सीएम उम्मीदवार बनाया। बंगाल विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार के साथ ही मुकुल रॉय के सामने एक और बड़ी चुनौती है। वह अपने बेटे को सूबे की सियासत में खड़ा करना चाहते हैं।

इसके अलावा मुकुल रॉय को उस समय भी बुरा लगा जब नंदीग्राम में ममता बनर्जी को हराने वाले शुभेंदु अधिकारी को विपक्ष का नेता बना दिया गया। मुकुल रॉय पर तृणमूल कांग्रेस की नजर बराबर लगी हुई थी। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान मुकुल रॉय ने ममता बनर्जी के खिलाफ एक लफ्ज़ भी नहीं कहा था। जब मुकुल रॉय के बेटे ने फेसबुक पर बीजेपी को नसीहत दी कि जनता के समर्थन से आई सरकार की आलोचना करने वालों को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए, तब तृणमूल कांग्रेस ने इस सिग्नल को कैच कर लिया, और पिता-पुत्र की जोड़ी को पार्टी में शामिल होने के लिए न्योता दे दिया। मुकुल रॉय अब कम से कम उम्मीद कर सकते हैं कि उनके बेटे का राजनीतिक भविष्य संवर जाएगा। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 11 जून, 2021 का पूरा एपिसोड

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