Thursday, April 18, 2024
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Rajat Sharma's Blog: अपने क्लीनिक खोलने से इनकार क्यों कर रहे हैं प्राइवेट डॉक्टर?

सरकार को फिर से काम शुरू करने में असमर्थता जता रहे प्राइवेट डॉक्टरों और अस्पतालों की आशंकाओं एवं समस्याओं को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए। एक अभूतपूर्व समय में समाधान भी अभूतपूर्व ही होने चाहिए।

Rajat Sharma Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: May 08, 2020 16:39 IST
Rajat Sharma's Blog: अपने क्लीनिक खोलने से इनकार क्यों कर रहे हैं प्राइवेट डॉक्टर?- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Rajat Sharma's Blog: अपने क्लीनिक खोलने से इनकार क्यों कर रहे हैं प्राइवेट डॉक्टर?

इंडिया टीवी पर गुरुवार रात को अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में हमने मुंबई के सायन और कूपर अस्पतालों के वीडियो दिखाए थे जिनमें मरीज वॉर्ड में बिस्तरों पर लेटे हुए दिखाई दे रहे थे, और उसी वॉर्ड में काले पॉलीथिन में लिपटे हुए कोरोना वायरस से मरने वालों के शव बिस्तरों पर पड़े थे। जरा सोचिए कि उन अस्पतालों में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों का क्या हाल होगा और उनके मनोबल पर क्या असर पड़ रहा होगा। किसी ने कभी नहीं सोचा था कि मुंबई जैसे शहर में हालात इस हद तक बिगड़ जाएंगे।

बीजेपी नेता नितेश राणे और किरीट सोमैया ने सोशल मीडिया पर ये वीडियो पोस्ट करते हुए आरोप लगाया कि शव मॉर्चरी में नहीं भेजे जा रहे हैं, और 24 घंटे से भी ज्यादा समय तक बिस्तर पर पड़े रहते हैं। कूपर अस्पताल का वीडियो राज ठाकरे की पार्टी के नेता अखिल चित्रे ने पोस्ट किया था। मुंबई की मेयर किशोरी पेडनेकर अस्पतालों में पहुंची और जांच के आदेश दिए। इंडिया टीवी के रिपोर्टर राजीव सिंह दोनों अस्पतालों में गए। डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि लापरवाही के कारण शव बेड पर नहीं पड़े थे। कुछ मामलों में, COVID-19 के टेस्ट रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा था।

डॉक्टरों ने कहा कि पहले कुछ मौकों पर ऐसा हुआ कि शव परिजनों को सौंप दिए गए, लेकिन बाद में जब टेस्ट का रिजल्ट आया तब पता चला कि मरीजों की मौत कोरोना वायरस से हुई थी। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को फिर अंतिम संस्कार और शोक सभाओं में शामिल हुए सभी कॉन्टैक्ट्स का पता लगाना पड़ा था। मानक प्रोटोकॉल यही है कि कोरोना वायरस से मृत रोगी के शव को तब तक नहीं सौंपा जा सकता है जब तक कि टेस्ट की रिपोर्ट नहीं आती है, और यदि रिपोर्ट पॉजिटिव आती है, तो दाह संस्कार स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा पूरी सुरक्षा के तहत किया जाता है। ऐसे में परिवार के कुछ ही सदस्यों को इसमें शामिल होने की इजाजत दी जाती है।

यह पूछे जाने पर कि शवों को मॉर्चरी में क्यों नहीं रखा गया, डॉक्टरों ने बताया कि सभी शवों को काले पॉलीथिन में लपेट कर रखा गया था क्योंकि बॉडी कवर की कमी थी। उन्होंने बताया कि वीडियो शायद तब लिए गए होंगे जब शवों को काली पॉलीथिन में लपेटकर रखा गया था। जब किसी मरीज की कोरोना वायरस से मौत हो जाती है तो उसके शरीर को अच्छी तरह से साफ किया जाता है और फिर कवर में लपेट दिया जाता है। इस प्रक्रिया में समय लगता है और डॉक्टरों का कहना है कि हेल्थ वर्कर्स इस प्रॉसेस को करने के लिए डर के मारे तैयार नहीं होते जबकि उन्हें पीपीई भी उपलब्ध कराया जाता है।

प्रोसेसिंग के बाद परिजनों को बुलाया जाता है और शव को अंतिम संस्कार के लिए भेज दिया जाता है। एक अस्पताल के डीन ने कहा कि कई मामलों में परिवार के सदस्य शव लेने से इनकार कर देते हैं और फोन कॉल ही काट देते हैं। इससे मॉर्चरी में लाशों का ढेर लग जाता है। मुंबई में कोरोना वायरस से संक्रमण के मामलों की कुल संख्या पहले ही 11,000 को पार कर चुकी है, जबकि महाराष्ट्र में कुल मामले 17,000 के करीब हैं। बीते एक दिन में 1,250 नए मामले सामने आए। मुंबई की ऑर्थर रोड जेल में 72 कैदियों और 7 जेल कर्मचारियों के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने की खबर थी।

मुंबई के कुछ अस्पतालों के हालात खराब हो सकते हैं, लेकिन कोरोना वायरस से निपटने की तैयारी पूरे जोर पर है। बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स में 1,000 बेड वाला एक मेगा हॉस्पिटल तैयार किया जा रहा है। इस अस्पताल की क्षमता को 5,000 बेड तक बढ़ाया जा सकता है। महालक्ष्मी रेस कोर्स, नेहरू विज्ञान केंद्र और नेहरू तारामंडल में ऑइसोलेशन वॉर्ड बनाए गए हैं। गंभीर रूप से बीमार रोगियों के लिए मुंबई में आईसीयू बेड की संख्या 200 से बढ़ाकर 10,000 कर दी गई है।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने सेना, नौसेना और रेलवे से अनुरोध किया है कि यदि आवश्यक हो तो आईसीयू बेड तैयार रखें। ये तैयारियां इसलिए की जा रही हैं क्योंकि एक केंद्रीय टीम ने भविष्यवाणी की थी कि मई के अंत तक कोरोना रोगियों की संख्या 6,50,000 तक पहुंच सकती है। हालांकि मुंबई के डॉक्टर इस आकलन से सहमत नहीं हैं, फिर भी राज्य सरकार ने कोरोना वायरस के मरीजों के इलाज की निगरानी के लिए 9 बड़े डॉक्टरों की एक टास्क फोर्स का गठन किया है।

एक मुश्किल जरूर दिखाई दे रही है। मुंबई के अधिकांश प्राइवेट डॉक्टरों, जो प्राइवेट अस्पतालों में काम करते हैं या नर्सिंग होम चलाते हैं, ने काम करना बंद कर दिया है। प्राइवेट नर्सिंग होम नहीं खुल रहे हैं क्योंकि यदि कोरोना वायरस से संक्रमित एक शख्स भी वहां आता है तो पूरे स्टाफ को क्वॉरन्टीन करना होगा और नर्सिंग होम को व्यावहारिक रूप से सील करना होगा।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने लगभग 25,000 प्राइवेट डॉक्टरों से फिर से काम शुरू करने की अपील की है। राज्य सरकार ने चेतावनी दी है कि यदि वे काम फिर से शुरू नहीं करते हैं तो उनका लाइसेंस कैंसिल कर दिया जाएगा। राज्य सरकार ने निर्देश दिया है कि गंभीर बीमारी से पीड़ित या 55 वर्ष से अधिक आयु वाले लोगों को छोड़कर सभी प्राइवेट डॉक्टरों को काम फिर से शुरू करना होगा और महीने में कम से कम 15 दिनों के लिए मानक प्रोटोकॉल के अनुसार COVID-19 के रोगियों का इलाज करना होगा। खबरें आ रही हैं कि प्राइवेट डॉक्टरों ने यूपी, एमपी, गुजरात और बिहार में भी काम करना बंद कर दिया है।

बिहार में तो कई सरकारी डॉक्टरों ने भी ड्यूटी पर जाना बंद कर दिया है। 37 जिला अस्पतालों में करीब 362 डॉक्टर ड्यूटी से गैरहाजिर बताए गए हैं। इन डॉक्टरों को राज्य सरकार ने कानूनी कार्रवाई की धमकी देते हुए नोटिस जारी किए हैं। वहीं दूसरी तरफ, बिहार में प्राइवेट डॉक्टरों ने भी 22 मार्च से अपने अस्पतालों और नर्सिंग होम्स को बंद कर रखा है। बिहार के प्राइवेट अस्पतालों में 48,000 और सरकारी अस्पतालों में 22,000 बेड हैं। इस समय सभी सरकारी अस्पताल कोरोना वायरस के मरीजों की देखभाल का बोझ उठा रहे हैं। बिहार सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि 90 प्रतिशत से अधिक प्राइवेट डॉक्टर मरीजों की सामान्य बीमारियों का इलाज भी नहीं कर रहे हैं। अस्पतालों में लगभग 90 फीसदी ओपीडी ने काम करना बंद कर दिया है।

इसी तरह गुजरात में अहमदाबाद नगर निगम ने सभी प्राइवेट अस्पतालों और नर्सिंग होम्स को चेतावनी दी है कि यदि वे फिर से नहीं खुलते हैं और अगले 48 घंटे के अंदर मरीजों का इलाज शुरू नहीं करते हैं तो उनका लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा।

उत्तर प्रदेश में कहानी थोड़ी अलग है। यहां राज्य सरकार की सख्त कार्रवाई के कारण प्राइवेट अस्पतालों ने काम करना बंद कर दिया। आगरा में 3 प्राइवेट अस्पतालों ने कोरना वायरस के रोगियों का इलाज किया था और सरकार को उनके बारे में जानकारी दिए बिना ही उन्हें छुट्टी दे दी थी। इसके परिणामस्वरूप शहर में कोरोना वायरस बीमारी फैल गई थी। अस्पताल के मालिकों और डॉक्टरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई, जिसके बाद राज्य के अधिकांश प्राइवेट अस्पतालों ने काम करना बंद कर दिया।

यूपी के स्वास्थ्य मंत्री का कहना है कि राज्य के 660 प्राइवेट अस्पतालों में काम करने वाले कर्मचारियों को अब कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों का इलाज करने के लिए ट्रेनिंग दी गई है। यहां लगभग 5,000 प्राइवेट अस्पताल और नर्सिंग होम हैं, और उनमें से 660 अस्पतालों में मानक प्रोटोकॉल का पालन करके कोरना वायरस के रोगियों के इलाज की इजाजत दी गई है।

इस बात में कोई शक नहीं है कि डॉक्टर कोरोना वायरस के रोगियों का इलाज करते समय अपना सर्वश्रेष्ठ कर रहे हैं। वे खुद अपनी जान खतरे में डाल रहे हैं। देश इन डॉक्टरों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का सम्मान करता है। लेकिन बिहार के उन डॉक्टरों की तरह, सामान्य रोगियों का भी इलाज करने से मना कर देना पाप है। सरकार को फिर से काम शुरू करने में असमर्थता जता रहे प्राइवेट डॉक्टरों और अस्पतालों की आशंकाओं एवं समस्याओं को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए। एक अभूतपूर्व समय में समाधान भी अभूतपूर्व ही होने चाहिए। (रजत शर्मा)

देखिए, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 07 मई 2020 का पूरा एपिसोड

 

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