Thursday, March 28, 2024
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बिहार के शेल्टर होम्स में शारीरिक और यौन शोषण के मामलों की जांच सीबीआई करेगी: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के 16 आश्रय गृहों में रहने वाले बच्चों के शारीरिक और यौन शोषण के मामलों की जांच बुधवार को केन्द्रीय जांच ब्यूरो को सौंप दी।

IndiaTV Hindi Desk Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: November 28, 2018 19:00 IST
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नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के 16 आश्रय गृहों में रहने वाले बच्चों के शारीरिक और यौन शोषण के मामलों की जांच बुधवार को केन्द्रीय जांच ब्यूरो को सौंप दी। इन आश्रय गृहों की गंभीर स्थिति के बारे में टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) ने अपनी रिपोर्ट में जिक्र किया था। टीआईएसएस की रिपोर्ट में राज्य के कई आश्रय गृहों में रहने वालों के साथ कथित रूप से शारीरिक और यौन शोषण किये जाने की घटनाओं को प्रमुखता से उजागर किया गया था। 

जस्टिस मदन बी लोकुर, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने इन मामलों की जांच सीबीआई को नहीं सौंपने और राज्य सरकार को समस्याओं को दूर करने के लिये एक सप्ताह का समय देने का अनुरोध ठुकरा दिया। इन आश्रय गृह से संबंधित इन मामलों की जांच अभी तक बिहार पुलिस कर रही थी। 

शीर्ष अदालत ने कहा कि बिहार सरकार को इस साल के प्रारंभ में सौंपी गई टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) की रिपोर्ट में राज्य के 17 आश्रय गृहों के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की गयी थी। इसलिए केन्द्रीय जांच ब्यूरो को इनकी जांच करनी ही चाहिए। राज्य के इन 17 आश्रय गृहों में से एक मुजफ्फरपुर आश्रयगृह में लड़कियों के कथित रूप से बलात्कार और यौन शोषण कांड की जांच केन्द्रीय जांच ब्यूरो पहले ही कर रहा है। 

इस मामले की सुनवाई शुरू होते ही केन्द्रीय जांच ब्यूरो के वकील ने पीठ से कहा कि उन्होंने इन मामलों की जांच अपने हाथ में लेने के बारे में जांच एजेन्सी से आवश्यक निर्देश प्राप्त कर लिये हैं। उन्होंने कहा, ‘‘अंतरिम निदेशक (सीबीआई) ने मुझसे कहा कि न्यायालय संख्या एक (शीर्ष अदालत) ने मुझे कोई नीतिगत फैसला नहीं लेने के लिये कहा है। कल सीबीआई का मामला न्यायालय संख्या एक में आ रहा है।’’ 

जांच ब्यूरो के वकील चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की पीठ के समक्ष ब्यूरो के निदेशक आलोक कुमार वर्मा की याचिका पर बृहस्पतिवार को होने वाली सुनवाई का जिक्र कर रहे थे। आलोक वर्मा ने उन्हें निदेशक के अधिकारों से वंचित करने और अवकाश पर भेजने के सरकार के निर्णय को चुनौती दे रखी है। 

जांच ब्यूरो के वकील द्वारा नीतिगत निर्णय नहीं लेने संबंधी आदेश का हवाला देने पर पीठ ने कहा, ‘‘आदेश यह नहीं कहता कि सारी जांच रोक दी जानी चाहिए।’’ 

पीठ ने जांच एजेन्सी के वकील से कहा , ‘‘आप मालूम कीजिये कि क्या जांच ब्यूरो इनकी जांच अपने हाथ में लेने के लिये तैयार है। पांच मिनट में हमें बतायें।’’ बिहार सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि उन्होंने आवश्यक सुधार किये हैं और आश्रय गृहों के मामलों की जांच कर रहे अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि कुछ मामलों में आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी में भारतीय दंड संहिता की धारा 377 (अप्राकृतिक अपराध) सहित कठोर प्रावधान शामिल किये जायें। 

इस पर पीठ ने कहा, ‘‘क्या कानून के तहत जांच अधिकारियों को ऐसे निर्देश दिये जा सकते हैं?’’ सरकार के वकील ने जब दंड प्रक्रिया संहिता के एक प्रावधान का जिक्र किया तो पीठ ने कहा, ‘‘यह प्रावधान यहां लागू नहीं होता है।’’ पीठ ने अपने आदेश में इस तथ्य को शामिल किया कि वह इन मामलों में कठोर प्रावधानों के तहत अपराधों को शामिल करने के लिये जांच अधिकारियों को भेजे गये संदेश से संतुष्ट नहीं है। 

इसी बीच, सीबीआई के वकील ने कहा कि उन्होंने अंतरिम निदेशक से निर्देश प्राप्त कर लिये हैं और ‘‘सिद्धांत रूप में’’ जांच एजेन्सी इन मामलों की जांच अपने हाथ में लेने के लिये तैयार है। जांच ब्यूरो ने न्यायालय को बताया कि इस मामले में सात दिसंबर तक आरोप पत्र दाखिल किया जा सकता है। बिहार सरकार के वकील ने जब यह कहा कि प्रत्येक मामला जांच ब्यूरो को नहीं सौंपा जाना चाहिए तो पीठ ने टिप्पणी की, ‘‘यदि राज्य सरकारें अपना काम ठीक से करें तो हर मामले को सीबीआई को सौंपने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।’’ 

इस पर वकील ने कहा कि राज्य सरकार पूरी गंभीरता से इन मामलों में कार्रवाई कर रही है और इन्हें जांच ब्यूरो को सौंपने से अंतत: उस पर ही संदेह किया जायेगा। वकील ने कहा, ‘‘कृपया अभी यह आदेश पारित नहीं करें। हमें एक सप्ताह का वक्त दें। हम स्थिति रिपोर्ट दाखिल करेंगे। आप स्थिति रिपोर्ट का अवलोकन कर सकते हैं और फिर भी अगर आपको इन मामलों को सीबीआई को सौंपने की आवश्यकता हो तो आप ऐसा सकते हैं।’’ 
न्यायालय ने राज्य सरकार के इस तर्क को अस्वीकार करते हुये सीबीआई को इन सभी मामलों की जांच करने का आदेश दिया। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि बिहार में आश्रय गृहों की जांच कर रहे जांच ब्यूरो के किसी भी अधिकारी का उसकी पूर्व अनुमति के बगैर तबादला नहीं किया जाये। 

जांच एजेन्सी के वकील ने कहा कि चूंकि जांच ब्यूरो को इन सभी मामलों की जांच का आदेश दिया गया है, अंतरिम निदेशक ने अनुरोध किया है कि जांच दल का विस्तार किया जाना चाहिए। पीठ ने यह अनुरोध स्वीकार कर लिया और अंतरिम निदेशक को जांच दल का विस्तार करने की अनुमति प्रदान करते हुये राज्य सरकार को जांच एजेन्सी को सारी सहायता उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। 

सुनवाई के अंतिम क्षणों में न्याय मित्र अपर्णा भट ने केन्द्र की एक रिपोर्ट का जिक्र करते हुये कहा कि देश में 1028 आश्रय गृहों में रहने वालों के शारीरिक और यौन शोषण की घटनायें हुयी हैं। इस पर पीठ ने कहा, ‘‘ इस मामले के साथ इसे नहीं मिलायें। इसके साथ ही न्यायालय ने इस मामले को 12 दिसंबर के लिये सूचीबद्ध कर दिया। न्यायालय बिहार में आश्रय गृहों में बड़े पैमाने पर शारीरिक और यौन शोषण की घटनाओं की शीर्ष अदालत की निगरानी में किसी स्वतंत्र एजेन्सी से जांच के लिये दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था। 

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