Saturday, May 11, 2024
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karnataka High Court Judgement: पति की नपुंसकता का झूठा आरोप लगाना मानसिक प्रताड़ना : कर्नाटक हाईकोर्ट

karnataka High Court Judgement: पति का आरोप है कि उसकी पत्नी कई बार अपने रिश्तेदारों से कहती रही है कि उसका पति संबंध बनाने में असमर्थ है। इससे वह अपमानित महसूस करता है।

Deepak Vyas Edited by: Deepak Vyas @deepakvyas9826
Updated on: June 16, 2022 12:03 IST
karnataka High Court Judgment- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO karnataka High Court Judgment

Highlights

  • धारवाड़ फैमिली कोर्ट ने रद्द की याचिका, तब हाईकोर्ट में स्थानांतरित की
  • 2013 में हुआ था याचिकाकर्ता का विवाह
  • पति ने कहा-'चिकित्सकीय प​रीक्षण कराने के लिए तैयार'

karnataka High Court Judgement: कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने एक निर्णय में कहा है कि यदि पत्नी द्वारा बिना किसी साक्ष्य के अपने पति पर नपुंसकता का आरोप लगाया जाता है तो यह भी मानसिक प्रताड़ना या उत्पीड़न की केटेगरी में आएगा। हाईकोर्ट ने ऐसे मामले में पति अपनी पत्नी से अलग होने के लिए याचिका दायर कर सकता है। कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सुनील दत्त यादव की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने धारवाड़ के एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका के संबंध में यह आदेश दिया, जिसमें धारवाड़ परिवार न्यायालय द्वारा तलाक देने की उसकी याचिका को खारिज करने के आदेश को रद्द करने की मांग की गई थी।

धारवाड़ फैमिली कोर्ट ने रद्द की याचिका, तब हाईकोर्ट में स्थानांतरित की

पति का आरोप है कि उसकी पत्नी कई बार अपने रिश्तेदारों से कहती रही है कि उसका पति संबंध बनाने में असमर्थ है। इससे वह अपमानित महसूस करता है। इसी कारण पत्नी से अलग होने की मांग की। 17 जून 2015 को धारवाड़ फैमिली कोर्ट ने उनकी तलाक की याचिका खारिज कर दी थी। तब पति ने याचिका को हाईकोर्ट में स्थानांतरित ​कर दिया था।

2013 में हुआ था याचिकाकर्ता का विवाह

याचिकाकर्ता ने महिला से 2013 में विवाह किया था। उसके कुछ माह बाद ही उसके कुछ माह के पश्चात ही उसने धारवाड़ की फैमिली कोर्ट में तलाक की मांग करते हुए याचिका दायर की। उनका दावा है कि शुरुआत में उनकी पत्नी ने वैवाहिक जीवन के लिए सहयोग किया, लेकिन बाद में उनका व्यवहार बदल गया।

याचिकाकर्ता को पुनर्विवाह होने तक 8 हजार का गुजारा भत्ता देने के आदेश

कर्नाटक हाईकोर्ट की इस खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को पुनर्विवाह होने तक 8 हजार रुपए प्रतिमाह का गुजारा भत्ता देने का निर्देश भी दिए। अदालत ने कहा, 'पत्नी ने आरोप लगाया है कि उनका पति विवाह के दायित्वों को पूरा नहीं कर रहा है और यौन गतिविधियों में असमर्थ है। लेकिन, उसने अपने आरोपों को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं दिया है।' कोर्ट ने माना कि ये निराधार आरोप पति की गरिमा को ठेस पहुंचाएंगे। पीठ ने कहा कि पति द्वारा बच्चों को जन्म देने में असमर्थ होने का आरोप मानसिक प्रताड़ना की श्रेणी में आता है।

पति ने कहा-'चिकित्सकीय प​रीक्षण कराने के लिए तैयार'

पति ने कहा है कि वह चिकित्सकीय परीक्षण के लिए तैयार है। इसके बावजूद पत्नी मेडिकल टेस्ट से अपने आरोप साबित करने में नाकाम रही है। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 के अनुसार, नपुंसकता नाराजगी का कारण नहीं हो सकती है। हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे झूठे आरोप मानसिक उत्पीड़न की तरह हैं और यदि पति चाहे तो इस पृष्ठभूमि में तलाक की डिमांड भी कर सकता है।

...इसलिए पति ने अपमानित होकर पत्नी से अलग होने की मांग की

पति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी ने बार-बार अपने रिश्तेदारों से कहा कि वह संबंध बनाने में असमर्थ है और वह इससे अपमानित महसूस करता है। इसी पृष्ठभूमि में उसने पत्नी से अलग होने की मांग की। हालांकि, धारवाड़ फैमिली कोर्ट ने 17 जून 2015 को तलाक के लिए उनकी याचिका खारिज कर दी थी। पति ने याचिका को हाईकोर्ट में स्थानांतरित कर दिया था। 

इनपुट:आईएएनएस

 

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