Monday, May 13, 2024
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इस्लाम में आचार संहिता बहुत ज्यादा है, सांस्कृतिक तत्व बहुत कम नजर आते हैं: ख़ालिद जावेद

ख़ालिद जावेद ने कहा, ''इस्लाम में मेले ठेले, अगर ईद को छोड़ दें तो सांस्कृतिक परिदृश्य बहुत कम नजर आएगा । एक खास तरह से कुछ नियमों के ऊपर आपको चलना है।''

Shashi Rai Edited By: Shashi Rai @km_shashi
Updated on: December 19, 2022 12:04 IST
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रोफेसर ख़ालिद जावेद - India TV Hindi
Image Source : फाइल फोटो जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रोफेसर ख़ालिद जावेद

दिल्ली: ''हिंदू धर्म आचार संहिता नहीं है बल्कि वह एक संस्कृति है। वहीं इस्लाम में आचार संहिता बहुत ज्यादा है, सांस्कृतिक तत्व बहुत कम नजर आते हैं।'' ऐसा कहना है जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रोफेसर ख़ालिद जावेद का। हिंदू धर्म के चरित्रों को आधार बनाकर साहित्य लेखन में समय-समय पर विभिन्न प्रयोग किए जाते रहे हैं और अब भी हो रहे हैं, लेकिन इस्लाम धर्म में ऐसी कोई परंपरा नहीं पाए जाने की वजह पूछे जाने पर 2014 में लिखे गए अपने उपन्यास 'नेमतखाना' (द पैराडाइज आफ फूड) के लिए हाल ही में वर्ष 2022 के प्रतिष्ठित जेसीबी पुरस्कार से सम्मानित ख़ालिद जावेद ने भाषा को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि इस्लाम धर्म में कहानी कहने के लिए ज़मीन ही नहीं है। 

'हिंदू धर्म में लचीलापन है'

अमीश त्रिपाठी, देवदत्त पटनायक जैसे लेखकों द्वारा हिंदू महाकाव्य रामायण और महाभारत के चरित्रों को आधार बनाकर उपन्यासों की रचना की पृष्ठभूमि में ख़ालिद जावेद से जब यह सवाल किया गया कि इस प्रकार के प्रयोग इस्लाम धर्म के साथ क्यों नहीं किए गए तो उनका कहना था, ''हिंदू धर्म, पूरा का पूरा धर्म होने के साथ ही जीवन शैली भी है । हिंदू धर्म आचार संहिता नहीं है बल्कि वह एक संस्कृति है। भारतीय दर्शन और उसके सभी छह स्कूल पूरी तत्व मीमांसा और ज्ञान मीमांसा की सांस्कृतिक मूल के साथ व्याख्या करते हैं । इसके चलते हिंदू धर्म में लचीलापन है। उसमें चीजों को ग्रहण करने की बहुत बड़ी शक्ति हमेशा से मौजूद रही है।'' 

'इस्लाम में आचार संहिता बहुत ज्यादा है'

उन्होंने आगे कहा, ''हिंदू धर्म उस तरह का धर्म नहीं है जो कानूनी एतबार से चले । इसके भीतर मानवीय मूल्य, सांस्कृतिक तत्वों के साथ मिलकर सामने आते हैं । ऐसी जगह पर कहानी कहने के लिए ज़मीन पहले से मौजूद होती है।'' जामिया मिल्लिया इस्लामिया में प्रोफेसर ख़ालिद जावेद कहते हैं, ''इस्लाम में आचार संहिता बहुत ज्यादा है । कुछ नियम बनाए गए हैं । सांस्कृतिक तत्व बहुत कम नजर आते हैं । इस्लाम में मेले ठेले , अगर ईद को छोड़ दें तो सांस्कृतिक परिदृश्य बहुत कम नजर आएगा । एक खास तरह से कुछ नियमों के ऊपर आपको चलना है।''

'इस्लाम के नियम तोड़ना बहुत मुश्किल है' 

वह कहते हैं, ‘‘इस्लाम के अपने खास नियम है । उन्हें तोड़ना बहुत मुश्किल है। वहां कहानी कहने के लिए जमीन ही नहीं है। उसके चरित्र ही इस तरह के नहीं हैं जिसके भीतर एक किरदार बनने की संभावनाएं पाई जाती हों । इस्लाम के चरित्र इतने ठोस हैं कि उनमें इस तरह का कहानी का चरित्र बनने के लिए, कल्पनाशीलता के लिए गुंजाइश बहुत कम है।’’

‘एक खंजर पानी में’,‘आखिरी दावत’, ‘मौत की किताब’, और ‘नेमतखाना’ के लेखक ख़ालिद जावेद विभिन्न पुरस्कारों से नवाजे जा चुके हैं और न केवल भारत बल्कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में बड़े चाव से पढ़े जाते हैं ।

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